1. Jan जन्मदिन डो संपूर्णानंद


 जन्मदिवस= 

साहित्यप्रेमी राजनेता

डा.सम्पूर्णानन्द

01.01.1890

साहित्य और राजनीति दो अलग प्रकार के क्षेत्र हैं।राजनीति में उठापटक और गुटबाजी के बिना काम नहीं चलता,जबकि साहित्य की साधना शान्ति और एकान्त चाहती है।अत:ऐसे लोग बहुत कम ही हुए हैं,जिन्होंने दोनों क्षेत्रों में समान अधिकार से काम किया है।ऐसी ही एक विभूति थे डा. सम्पूर्णानन्द।

*सम्पूर्णानन्द जी का जन्म काशी के एक विद्वान् श्री विजयानन्द के घर में एक जनवरी,1890 को हुआ* उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई।कुछ बड़े होने पर उन्हें काशी के विख्यात हरिश्चन्द्र स्कूल और फिर क्वीन्स कॉलिज में पढ़ने भेजा गया।उन दिनों प्रयाग शिक्षा का प्रसिद्ध केन्द्र था।अतःये प्रयाग आ गये।यहाँ से बी.एस- सी और फिर एल.टी की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की।इनकी रुचि पढ़ने के साथ पढ़ाने में भी थी।अतःये वृन्दावन के प्रेम महाविद्यालय में अध्यापक के नाते कार्य करने लगे।अध्यापन के साथ-साथ स्वाध्याय की ओर भी उनका पूरा ध्यान था।मूलतःविज्ञान के छात्र होते हुए भी उन्होंने शिक्षा,साहित्य,धर्म,दर्शन, ज्योतिष और वेदान्त आदि का गहन अध्ययन किया।हिन्दी में वैज्ञानिक विषयों पर निबन्धों का अभाव था। अतःउन्होंने इस क्षेत्र में काफी काम किया।उनके निबन्धों के विषय यद्यपि जटिल होते थे;पर लेखन की शैली सरल एवं प्रवाहमयी होने के कारण छात्र उन्हें आसानी से समझ लेते थे।इन उपलब्धियों के लिए वे"'विद्या वाचस्पति’"की उपाधि से विभूषित किये गये।उन दिनों देश में ब्रिटिश शासन होने के कारण लोगों का रुझान अंग्रेजी की ओर बढ़ रहा था।सम्पन्न घरों के लोग अंग्रेजी बोलने और पढ़ने में गौरव अनुभव करते थे।अंग्रेजी विद्यालयों की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी;पर अंग्रेजी के विद्वान होते हुए भी डा0 सम्पूर्णानन्द सदा हिन्दी के पक्षधर रहे।उन्होंने हिन्दी की श्रीवृद्धि के लिए ‘"समाजवाद’"नामक पुस्तक पर"‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’" भी मिला.1940में वे ‘"अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन’"के सभापति निर्वाचित हुए।लम्बे समय तक वे"'नागरी प्रचारिणी सभा’"के भी अध्यक्ष और फिर संरक्षक रहे।देश की सेवा के लिए डा. सम्पूर्णानन्द ने राजनीति को माध्यम बनाया।उन दिनों राजनीति आज की तरह कलुषित नहीं थी।स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल की यातनाएँ सहनी पड़ी ।पर वे इस पथ पर डटे रहे.1936में जब संयुक्त प्रान्त की अन्तरिम विधान सभा का गठन हुआ,तो वे विधान सभा के सदस्य चुने गये। शिक्षा के प्रति उनके रूझान, अनुभव और प्रेम को देखकर उन्हें शिक्षा मन्त्री का कार्य दिया गया।इस पद पर रहकर शिक्षा में सुधार के लिए उन्होंने सराहनीय काम किया ।वाराणसी संस्कृत विश्वविद्या लय की स्थापना उनके प्रयत्नों से ही हुई.1955में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने।राजनेता होते हुए भी डा.सम्पूर्णानन्द ने चिद्विलास, जीवन दर्शन,समाजवाद, महात्मा गांधी,चितरंजनदास सम्राट हर्षवर्धन,अन्तरिक्ष यात्रा,गणेश आदि पुस्तकों की रचना की।वे हिन्दी की ‘"मर्यादा’"एवं अंग्रेजी की ‘"टुडे’"नामक पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे।भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी धर्मनगरी काशी से अपने जीवन की यात्रा प्रारम्भ करने वाले *प्रख्यातसाहित्यकार. विचारक.लेखक.पत्रकार.सम्पादक.व स्वतन्त्रता सेनानी राजनेता डा.सम्पूर्णानन्द का काशी की पुण्यभूमि पर ही 10जन.1969को निधन हुआ.

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