18 Jan जन्मदिन ममतामयी ऊषादीदी


 जन्मदिन

ममतामयी ऊषादीदी==== ========(18.01.1930)======                                                                   वि.हिं.प.के.अंतरराष्ट्रीय.अध्यक्ष.श्री.अशोकसिंगलजीकीप्यारीइकलौती=प्रियबहन ममतामयी उषादीदी===                                                                                    मां का हृदय सदा ही ममता से भरा होता है;पर अपने बच्चों के साथ अन्य बच्चों को भी वैसा ही स्नेह प्रेम देने वाली उषा दीदी का जन्म18 जनवरी1930में आगरा में अत्यधिक सम्पन्न परिवार में हुआ* सात भाइयों के बीच इकलौती बहिन होने के कारण उन्हें घर में खूब प्रेम मिला।उनके बड़े भाई श्री अशोक सिंहल"विश्व हिन्दू परिषद"के अध्यक्ष थे।श्री अशोक जी की ही तरह उषा जी भी एक सुकंठ गायक थीं ।अशोक जी के कारण घर में संघ के विचारों का भी प्रवेश हुआ,जिसका प्रभाव उषा जी पर भी पड़ा।विवाह के बाद 1964में गृहस्थ जीवन के दायित्वों के बावजूद मा0 रज्जू भैया के आग्रह पर वे विश्व हिन्दू परिषद के महिला विभाग से सक्रियता से जुड़ गयीं।उन्होंने अपने बच्चों को भी हिन्दुत्व के प्रति प्रेम और समाज सेवा के संस्कार दिये। मुंबई में1968में जब मारीशस के छात्रों के लिए संस्कार केन्द्र खोला गया,तो उसकी देखभाल उन्होेंने मां की तरह की।कुछ समय बाद वे विश्व हिन्दू परिषद के काम के लिए प्रवास भी करने लगीं ।प्रवासी जीवन बहुत कठिन है।वे इसकी अभ्यासी नहीं थीं;पर जिम्मेदारी स्वीकार करने के बाद उन्होंने कष्टों की चिन्ता नहीं की।कभी कार से नीचे पैर न रखने वाली उषा दीदी गली- मोहल्लों में कार्यकर्ताओं से मिलने पैदल और रिक्शा पर भी घूमीं।उ.प्र.,म.प्र.दिल्ली, राजस्थान में उन्होंने महिला संगठन को मजबूत आधार प्रदान किया।महिलाओं को संगठित करने के लिए बने ‘मातृशक्ति सेवा न्यास’ के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.1979में प्रयागराज में हुए द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन तथा 1987में आगरा में हिन्दी भाषी क्षेत्र की महिलाओं के अभ्यास वर्ग के लिए उन्होेंने घोर परिश्रम किया.1989में प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित तृतीय धर्म संसद में श्रीराम शिला पूजन कार्यक्रम की घोषणा हुई थी।उसकी तैयारी के लिए उषा दीदी एक महीने तक प्रयाग में रहीं और कार्यक्रम को सफल बनाया.1984में श्रीराम जन्मभूमि पर पहली पुस्तक भी उन्होंने ही लिखी.1994में दिल्ली में महिला विभाग का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।उसके लिए धन संग्रह की पूरी जिम्मेदारी उन्होेंने निभाई और 45लाख रु0 एकत्र किये."साध्वी शक्ति परिषद"के सहòचंडी यज्ञ की पूरी आर्थिक व्यवस्था भी उन्होंने ही की।उनके समृद्ध मायके और ससुराल पक्ष की पूरे देश में पहचान थी।इस नाते वे जिस धनपति से जो मांगती,वह सहर्ष देता था।इसके साथ ही वे यह भी ध्यान रखती थीं कि धन संग्रह,उसका खर्च तथा हिसाब-किताब संगठन की रीति-नीति के अनुकूल समय से पूरा हो।उषा दीदी तन,मन और धन से पूरी तरह हिन्दुत्व को समर्पित थीं।संघ के प्रचारकों तथा विश्व हिन्दू परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को वे मां और बहिन जैसा प्यार और सम्मान देती थीं।संगठन के हर आह्नान और चुनौती को उन्होेंने स्वीकार किया। 1990और फिर1992 की कारसेवा के लिए उन्होेंने महिलाओं को तैयार किया और स्वयं भी अयोध्या में उपस्थित रहीं।अनुशासनप्रिय उषा दीदी परिषद की प्रत्येक बैठक में उपस्थित रहती थीं।चुनौतीपूर्ण कार्य को स्वीकार कर,उसके लिए योजना निर्माण,प्रवास,परिश्रम, सूझबूझ और समन्वय उनकी कार्यशैली के हिस्से थे। इसलिए संगठन ने उन्हें जो काम दिया,उसे उन्होंने शत- प्रतिशत सफल कर दिखाया.40वर्ष तक परिषद के काम में सक्रिय रही. *उषा दीदी का19नव.2010को दिल्ली में 81वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ.सादर वंदन.सादर नमन

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