18 Jan पुण्यतिथि प्रचारक श्रीअपारबल सिंह जी

 पुण्यतिथि प्रचारक श्रीअपारबल सिंह जी

18.01.2020

 भोपाल-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ट प्रचारक श्री अपारबल सिंह जी उपाख्य ठाकुर साहब का निधन- शुक्रवार रात-09बजे भोपाल के एक अस्पताल में हुआ। ठाकुर साहब पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे एवं 2-3 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे।श्रीअपारबलसिंह जी विद्यार्थी जीवन में स्वयंसेवक के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एवं वर्ष1965में प्रचारक निकले और निरंतर समाज निर्माण के कार्य में सक्रिय रहे।भिंड में जिला एवं विभाग प्रचारक का दायित्व सँभालने के बाद वर्ष-1986 में इंदौर के प्रांत कार्यालय प्रमुख के दायित्व का निर्वहन किया।वर्ष1993में ठाकुर साहब क्षेत्रीय कार्यालय प्रमुख के दायित्व के साथ भोपाल आये एवं लगभग27 वर्षों तक भोपाल में सक्रिय रहे।आपातकाल के समय ठाकुर साहब ने सत्ता के खिलाफ आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, भूमिगत रहकर उन्होंने पूरे आन्दोलन को दिशा दी थी। *भाद्रपद मास के मध्य में-08अगस्त1938को लहार रोड पर भिंड से-20 की.मी.दूर स्थित ग्राम लहरोली में अपारवल सिंह जी उपाख्य ठाकुर साहब का जन्म हुआ* पिताजी चार भाई थे.एक भाई अविवाहित तो दूसरे निसंतान ।दूसरे नंबर के अविवाहित चन्दन सिंह ही परिवार के मुखिया.उन दिनों जागीरदारी प्रथा थी.सो लगान बसूली करना,पंचायत में बैठना आदि जिम्मेदारियां चन्दन सिंह जी ही निभाते. पिताजी सबसे छोटे और उनके भी चार लड़कों में सबसे छोटे हमारे ठाकुर साहब अपारवल सिंह जी. चारों भाइयों की संताने हैं. 60-70लोगों का भरापूरा परिवार.बड़े भाईयों में से हवलदार सिंह जी तथा सुदर्शन सिंह जी का स्वर्गवास हो चुका है.बड़े भाईयों में केवल राम दुलारे सिंह जी ही हैं,जो लहरौली गाँव के सरपंच भी रह चुके हैं.आज भी परिवार की जमीन नही बटी,मकान भी संयुक्त ही है.भले ही काम धंधों के कारण अलग अलग शहरों में रहते हों,किन्तु सुख दुःख में सब एक राय से काम करते हैं.13वर्ष की आयु में ही शादी के वन्धन में बंध गए !पर शादी को कभी वन्धन नही बनने दिया. इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि शादी के बाद ही बी.ए. किया.बड़े भाई की इच्छा थी कि अपारवल सिंह जी पुलिस की नौकरी में जाएँ, किन्तु इनकी रूचि नही थी. गाँव के प्राईवेट स्कूल में नारायण गुरू शासकीय सेवा छोडकर प्रधानाचार्य बने तो सन1960में अपारवल जी भी बहां अवैतनिक अध्यापक हो गए.नारायण गुरू जब ट्रेनिंग में मुरैना गए तब श्री लज्जाराम तोमर स्कूल में वाईस प्रिंसीपल बनकर आये.शाखा तो गाँव में सन-55से लगती थी.पर अपारवल सिंह जी को पहली बार लज्जाराम जी भिंड प्राथमिक वर्ग में आग्रह करके ले गए.वर्ग के मुख्य शिक्षक रौन के रामपाल सिंह कुशवाह थे.रामपाल सिंह जी-1948के प्रतिवंधकाल की जेल यात्रा के कारण शासकीय शिक्षक पद से हटा दिए गए थे.उन्होंने बाद में मानिकचंद जी वाजपेयी मामाजी की प्रेरणा से एक मुद्रणालय स्थापित किया.वर्ग से आने के बाद अपारवल जी भिंड तहसील कार्यवाह बने.घर की कोई विशेष जिम्मेदारी ना होने के कारण सतत प्रवास करने में कोई दिक्कत नही थी.1961 में दमोह से प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग करने के बाद लहरौली की विद्यालय शाखा के मुख्य शिक्षक बने.इस विद्यालय में बड़ी संख्या में आसपास के कई गाँवों के बच्चे पढने आते थे.इस कारण यह शाखा स्कूल की छुट्टी के बाद लगाना शुरू किया.इस शाखा के माध्यम से आसपास के18गाँवों में संघ का प्रवेश हुआ.1967में तहसील विस्तारक भिंड बनाए गए तथा मुख्यालय भिंड रखा गया.जिला प्रचारक गवारीकर जी की सादगी,स्वाभिमान तथा कर्मठता ने इन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित किया.दोनों साथ साथ चान्ना होटल पर भोजन करते जहां चार आने की एक रोटी के साथ दालफ्री मिलती थी.इससे सस्ते में भोजन हो जाता.गवारीकर जी का भोजन तो आठ आने में ही निबट जाता.दो रोटी और चार कटोरी दाल में ही पेट भर जाता.उन दिनों ईमानदारी की स्थिति यह थी कि तत्कालीन समाजवादी विधायक स्व.रघुवीरसिंह कुशवाह भी पैसे के अभाव में भोजन करने बहां आते थे. इसी प्रकार जेठा टी शॉप पर चाय के साथ गप्प गोष्ठी होती.चाय की स्थिति तो यह थी कि जब आपातकाल में कार्यालय से अपारवल जी गिरफ्तार किये गए तब बहां तलाशी में गवारीकर जी की डायरी मिली.उसमेंअधिकांश तः चाय के खर्चे लिखे हुए थे. यह देखकर पुलिसअधिकारी ने पूछा कि कोई चाय का होटल चलाते थे क्या?1970 -71में अपारवल जी को सह जिला प्रचारक मान्य किया गया.उसी दौरान गवारीकर जी स्वास्थ्य कारणों से इंदौर गए तो पूरा दायित्व भार ठाकुर साहब पर ही आ गया. तभी 1972में पत्नी के देहावसान ने मन को व्यथित तो किया किन्तु समाज के प्रति और अधिक दायित्व वोध प्रदान किया.ठाकुर साहब दूनी गति से कार्य में जुट गए.प्रांत प्रचारक बनने के बाद मा.सुदर्शन जी ने संघ प्रचारकों को स्वयं गण लेने हेतु निर्देशित किया.भिंड में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरकिशन भूता जी का दबदबा था.भूताशाही के उस दौर में भी अपारवल जी साईकिल में दंड बांधकर प्रतिदिन अलग अलग शाखाओं पर जाते तथा तरुणों को उत्साह पूर्वक एकत्रित कर गण लेते.पहले ही वर्ष-40नई शाखाएं क्षेत्र में खड़ी हो गईं.दूसरे वर्ष नगर में अनेक जैन नौजवान शाखा पर आने लगे.परिवार भले ही कांग्रेसी हो पर युवक संघ से जुडने लगे.भिंड नगर में-21शाखाएं लगने लगीं.श्री राम जाटव,पवन जैन,विजय जैन,विष्णु खंडेलवाल, मनमोहन बोहरे,जयकुमार जैन आदि उसी समय संघ से जुड़े.सब दंड लेकर शाखा आते.संघ की धाक का समय था वह. 73-74में एस.पी.बब्बर से व्यक्तिगत संपर्क बढ़ा.एक बस संचालक माधोसिंह नगर का कुख्यात दादा था.जिससे उधार लेता बापिस करने का नाम भी नही लेता.कोई डर के कारण कुछ नहीं कहता ! बही उसने एक स्वयंसेवक नरेंद्र जैन के साथ भी किया ! उनकी दूकान से किराना उधार ले जाकर उसका भुगतान नही किया.नरेंद्र के पिताजी ने माँगा तो उन्हें अपमानित कर दिया.इस पर योजना बनाकर नरेंद्र जैन और माधोसिंह की बातचीत रिकार्ड कारबाई,जिसमें माधोसिंह दादा एस.पी.को भी अपशब्द बोल रहा था. बह टेप एस.पी.बब्बर को सुनबाया !फिर क्या था ? खुद एस.पी.ने जाकर उसे ना केवल गिरफ्तार किया बल्कि पूरा जुलूस ही निकाल दिया. इस पर कांग्रेसियों ने बब्बर की शिकायत की कि बह संघी हो गया है.एस.पी. बब्बर ने जबाब दिया गुंडों को ठीक करना पुलिस की ड्यूटी है.आप लोग कोई संघी गुंडा बताओ,मैं उसे छोडूं तब कहना.कांग्रेसी निरुत्तर हो गए.1974में ही- 200 स्वयंसेवकों का पथ संचलन निकला.विशेष बात यह थी कि यह संचलन स्वयं के घोष के साथ निकला.इस हेतु दिल्ली से नया घोष लाया गया.इस अवसर पर बौद्धिक हेतु मा.तराणेकर जी पधारे थे.उनसे संचलन के पूर्व ही कह दिया कि गाँधी जी के बन्दर याद रखिये. कुछ देखना सुनना बोलना नहीं है.घोष खुद का तो है, पर अभ्यास नही हुआ है. सीखते हुए ही बजायेंगे. संचलन के बाद हुए बौद्धिक में तराणेकर जी ने भिंड के उत्साह की भूरि भूरि प्रशंसा की.इतना ही नहीं तो विभाग शारीरिक प्रमुख प्रभाकर अम्बरडेकर जी को भी इस विषय में बताया.उस समय जैन डिग्री कालेज नसिया के मैदान में शाखा लगती थी. प्रवंधन उसे बंद कराना चाहता था.कुछ संघ के स्वयंसेवक भी प्रवंधन में थे. उन्होंने इस विषय में जानकारी दी!उन्हें सलाह दी गई कि वे भी प्रवंधन की बैठक में इस बात का समर्थन ही करें और शाखा बंद करने के लिए एक समिति गठित करबायें, जिसका अध्यक्ष भी किसी संघ विरोधी को बनबा दें!उन लोगों ने ऐसा ही किया,पर कोई भी अध्यक्ष बनने को तैयार ही नही हुआ!आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?बात बहीं फेल हो गई.1975के आपातकाल में मामा जी ने योजनापूर्वक एक स्वयंसेवक को कांग्रेस की टोपीपहनाकर थाने में बैठा दिया.जो बहां के समाचार तो लाकर देता ही, साथ ही साथ कान्ग्रेसियों के ही नाम संघी बताकर थाने में लिखवा देता.कांग्रेसी बेचारे पुलिस के चक्कर में फंस जाते.यह कला भिंड के अलावा कहाँ मिलेगी?आपातकाल के दौरान ठाकुर साहब को शिवपुरी का दायित्व दिया गया.अपारबल सिंह जी उन दिनों अलग अलग घरों में रहा करते थे.वे किसी परिवार में बच्चों के मामा तो कहीं ताऊ तो कहीं भाई बनकर रह.एक डुप्लीकेटिंग मशीन पिपरसमा गाँव में श्री दिनेश गौतम के खलिहान में छुपा कर रखी गईजहाँ से हस्त लिखित पेम्पलेट छापकर रात के समय घरों में और दुकानों में डाल दिए जाते थे.इन पर्चों ने जन जागरण में बड़ा योगदान दिया.आपात- काल की समाप्ति के पश्चात अपारवल जी ने संघ प्रचारक के रूप में बिखरे सूत्रों को जोड़कर पुनःसंघ कार्य को गतिमान बनाया.इन्ही के समय संघ कार्य की दृष्टि से शिवपुरी को विभाग बनाया गया,और अपारवल सिंह जी उपाख्य ठाकुर साहब को प्रथम विभाग प्रचारक.बाद में आपको भोपाल के प्रांतीय संघ कार्यालय समिधा की व्यवस्था का दायित्व दिया गया. *मध्यभारत प्रान्त में संघ कार्य को बीज से बृक्ष बनता देखने वाले ठाकुर साहब-82 वर्ष की आयु में हमे छोड़कर अनन्त की यात्रा पर निकल गए.प्रभु उनको अपने श्री चरणों मे स्थान दें.ठाकुर साहब का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए समिधा कार्यालय में रखा गया।जहाँ भारी संख्या में स्वयंसेवकों एवं नागरिकों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।फिर रात पार्थिव शरीर को उनके पैत्रिक गाँव लहरैली, भिंड ले जाया गया.जहाँ सरस्वती शिशु मंदिर में सुबह08से10बजे सामान्य जनों के लिए दर्शन के लिये रखा.उसके पश्चात शाम03 बजे अंतिम संस्कार किया. सादर वंदन.

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