20 Jan पुण्यतिथि ठक्कर बाप्पा=


 पुण्यतिथि 

ठक्कर बाप्पा= ======== ========(20.01.1951)======                अपने सेवा‌ कार्यों के लियेप्रसिद्ध.उनकी सेवा- भावना का स्मरण करके ही हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था‌- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी,ठक्कर बाप्पा की मूर्ती आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।"देश की आजादी के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे थे.ठक्कर बाप्पा का जन्म 29 नव.1869को काठियावाड़ के भावनगर नामक स्थान पर हुआ.* उनका मूल नाम अमृतलाल ठक्कर था।बाद में सेवा‌-कार्य में प्रसिद्धि के बाद ही वे ठक्कर बाप्पा कहलाए। उनके पिता विट्ठलदास लालजी ठक्कर साधारण स्थिति के व्यक्ति थे।पर ठक्कर बाप्पा के ही नहीं, पूरे समाज के बच्चों की शिक्षा की ओर उनका विशेष ध्यान था।पिता की सेवावृत्ति का प्रभाव ठक्कर बाप्प के जीवन पर भी पड़ा‌‌‌‌‌.उस समय समाज में छुआछूत कलंक बुरी तरह से फैला हुआ था।ठक्कर के अंदर इसके प्रति विरोध का भाव बचपन से ही पैदा हो चुका था।ठक्कर बाप्पा ने छात्रवृत्ति मिलने पर पुणे से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की थी।ठक्कर बाप्पा ने कुछ समय तक शोलापुर और भावनगर में रेलवे की नौकरी की।परंतु अन्य अधिकारियों की भांति रिश्वत न लेने के कारण वे अधिक समय तक इस नौकरी में नहीं रह सके। फिर ठक्कर बाप्पा ने बढ़वण और पोरबंदर राज्य में काम किया।युगांडा (अफ्रीका) जाकर एक रेलवे लाइन बिछाई।लौटने पर कुछ दिन सांगली राज्य में नौकरी के बाद उन्हें मुंबईनगरपालिका  में उस रेलवे में काम मिला. जो पूरे शहर का कचरा बाहर ले जाती थी।वहां ठक्कर बाप्पा ने देखा कि कूड़ा उठाने का काम पाने के लिऐ भी अछूतों को रिश्वत देनी पड़ती है।इससे उनके अंदर हरिजनों की सेवा का भाव और भी जाग्रत हुआ।उन्होंने 23वर्ष तक नौकरी की थी।ठक्कर बाप्पा ने1914में ‘"भारत सेवक समाज’"के संस्थापक गोपालकृष्ण गोखले से समाज सेवा की दीक्षा ली और जीवनपर्यंत लोक-सेवा में ही लगे रहे। इसी कारण वे ठक्कर बाप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुए।ठक्कर बाप्पा ने काठियावड़ में खादी का काम आगे बढ़ाया.उड़ीसा केअकाल में लोगों की सहायता की,देशी रियासतों में लोंगों पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया।ठक्कर बाप्पा ने 1922से आगामी दस वर्ष भीलों की सेवा करते हुए गुज़ारे।भारत का शायद ही कोई प्रदेश होगा,जहां किसी-न-किसी सेवा-कार्य से ठक्कर बाप्पा न पहुंचे हों।देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे।इस पद का उपयोग भी उन्होंने दलितों और आदिम जातियों की सेवा में ही किया ।उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने कहा था‌-"जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी,ठक्कर बाप्पा की मूर्ती आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।"इस बीच जब गाँधी जी की प्रेरणा से‘"अस्पृश्यता निवारण संघ’"जो बाद में "‘हरिजन सेवक संघ’"कहलाया,बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए.1933में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उसके साथ थे।उन्होंने हरिजनो के मंदिर प्रवेश तथा जलाशयों के उपयोग के उनके अधिकारों के आंन्दोलन को भी आगे बढ़ाया.1946-1947के सांप्रदायिक दंगों के दौरान गाँधी जी की नोआख़ाली यात्रा में भी वे उनके साथ थे.                     *20जन.1951को ठक्कर बाप्पा का देहांत हुआ. सादर वंदन.सादर नमन👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*

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