20 Jan पुण्यतिथि भारत रत्न सीमान्त गांधी
पुण्यतिथि
भारत रत्न सीमान्त गांधी
20.01.1988
अफगानिस्तान से लगे ऐसे ही एक भाग पख्तूनिस्तान के उतमानजई गाँव में 24दिस.1890और कई पर06फरवरी1890को अब्दुल गफ्फार खाँ का जन्म हुआ.वे महान राजनेता थे.जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य, निष्ठा के कारण"सरहदी गांधी(सीमांत गांधी),और बाचा खान"तथा"बादशाह खान"के नाम से पुकारे जाने लगे.* पख्तूनिस्तान अफगानिस्तान को उन दिनों इसे भारत का नार्थ वेस्ट या फ्रण्टियर क्षेत्र कहा जाता था।इस क्षेत्र के लोग स्वभाव से विद्रोही एवं लड़ाकू थे।अंग्रेज शासकों ने इन्हें बर्बर और अपराधी कहकर यहाँ ‘फ्रंटियर क्राइम्स रेगुलेशन ऐक्ट’लगा दिया और इसके अन्तर्गत यहाँ के निवासियों का दमन किया।अब्दुल गफ्फार खाँ का मत था कि शिक्षा के अभाव में यह क्षेत्र पिछड़ा है और लोग मजबूरी में अपराधी बन रहे हैं।अत:17वर्ष की अवस्था में इन्होंने मौलवी अब्दुल अजीज के साथ मिलकर अपने गाँव में एक विद्यालय स्थापित किया,जहाँ मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती थी।थोड़े समय में ही विद्यालय की ख्याति हो गयी।इससे प्रेरित होकर और लोगों ने भी ऐसे ही मदरसे खोले.1921में इन्होंने अंजुमन इस्लाह अल् अफशाना आजाद हाईस्कूल की स्थापना की।इस प्रकार इनकी छवि शिक्षा के माध्यम से समाज सेवा करने वाले व्यक्ति की बन गयी.हाईस्कूल करने के बाद ये अलीगढ़ आ गये,जहाँ इनकी भेंट अनेक स्वतन्त्रता सेनानियों से हुई।वहाँ ये गांधी जी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।पेशावर की खिलाफत समिति के अध्यक्ष पद पर रहकर इन्होंने सीमा प्रान्त में शिक्षा का पर्याप्त विस्तार किया।फिर ये सेना में भर्ती हो गये।एक बार ये अपने एक सैनिक मित्र के साथ अंग्रेज अधिकारी से मिलने गये।वहाँ एक छोटी सी भूल पर इनके मित्र को उस अधिकारी ने बहुत डाँटा।अब्दुल गफ्फार खां के मन को इससे भारी चोट लगी और इन्होंने सेना छोड़ दी।अब इन्होंने एक संस्था ‘खुदाई खिदमतगार’तथा उसके अन्तर्गत‘लाल कुर्ती वालंटियर फोर्स’बनाई। इसके सदस्य लाल रंग के कुर्ते पहनते थे।खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने सदा अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजों का विरोध किया।प्रतिबन्ध के बावजूद ये जनसभाओं का नेतृत्व करते रहे।इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा.एक बार जब इन्हें पकड़कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया,तो न्यायाधीश ने व्यंग्य से पूछा-क्या तुम पठानों के बादशाह हो ?तब से ये ‘बादशाह खान’ के नाम से प्रसिद्ध हो गये।गांधीवादी रीति के समर्थक होने के कारण इन्हें ‘सीमान्त गांधी’ भी कहा जाता है।इन्होंने 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’में उत्साह पूर्वक भाग लिया,जेल गये।देश विभाजन की चर्चा होने पर इन्हें बहुत कष्ट होता था।पाकिस्तान कैसा मजहबी, असहिष्णु,अलोकतान्त्रिक देश होगा,इसकी इन्हें कल्पना थी।इसलिए ये बार -बार कांग्रेस के नेताओं और अंग्रेजों से प्रार्थना करते थे उन्हें भूखे पाकिस्तानी भेड़ियों के सामने न फेंके।उनके क्षेत्र को या तो भारत में रखें या फिर स्वतन्त्र देश बना दें;पर यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी.15अगस्त 1947को पख्तूनिस्तान पाकिस्तान का अंग बन गया ।बादशाह खान भारत में भी अत्यधिक लोकप्रिय थे।शासन ने 1987में उन्हें ‘भारत रत्न’से सम्मानित किया. *20जनवरी1988को 98 वर्ष की आयु में भारत के इस घनिष्ठ मित्र का देहान्त हुआ.सादर वंदन.नमन
Comments
Post a Comment