20 Jan पुण्यतिथिसंघ के युवा प्रचारक ईरंकि सुब्रह्मण्यम





 पुण्यतिथिसंघ के युवा प्रचारक 

ईरंकि सुब्रह्मण्यम 

असमय देहावसान 

20.01.2020

श्री सुब्रह्मण्यम का जन्म आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में स्थित अमलापरुम् नगर में हुआ* पिता श्री माधव शास्त्री संघ कार्य में सक्रिय थे।सहकारी बैंक में नौकरी करते,वे कई वर्ष राजमुंदरी के नगर कार्यवाह रहे।संघ के संस्कार श्रीसुब्रह्मण्यम को घर में ही प्राप्त हुए।अमलापुरम् से बी.एस.सी.करने के बाद वे विशाखापट्टनम् आये।संघ का द्वितीय वर्ष भी पूरा कर लिया.1977में रसायन शास्त्र में एम.एस.सी.कर प्रचारक के रूप में काम करने का निर्णय लिया।शुरू में उन्हें अनकापल्ली तथा एलमंचेली तहसीलों का काम दिया।अगले वर्ष वे वारंगल महानगर प्रचारक बने।पांच वर्ष बाद अगले तीन साल वे पूर्व गोदावरी जिले के प्रचारक रहे।फिर वे गुंटूर जिला,फिर गुंटूर विभाग प्रचारक रहे.1999में प्रांत बौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी मिलने पर पूरे प्रांत में उनका प्रवास होने लगा।उनकी शारीरिक और बौद्धिक दोनों में समान रुचि थे।योगचाप शिक्षण उनका प्रिय विषय था।वे छह वर्ष तक अपने प्रांत में प्रथम वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग में मुख्य शिक्षक रहे।वे आग्रहपूर्वक संस्कृत बोलते,लिखते और सिखाते थे।इससे कई स्वयंसेवकों ने भी संस्कृत काअच्छाअभ्यास किया।बौद्धिक कार्यक्रमों की योजना बनाने में भी वे बहुत निपुण थे।श्री सोमैया जी 30वर्ष तक आंध्र के प्रांत प्रचारक रहे।श्री सुब्रह्मण्यम पर उनका सर्वाधिक प्रभाव था।वे नियमपालन में बहुत कठोर थे.व्यवस्थित जीवन, व्यवस्थित कार्य उनकी विशेषता थी।शाखा,संख्या, कार्यक्रमों का वृत्त देने में वे -100% सत्य बोलने में विश्वास रखते थे.09जन.2000को वे विजयवाड़ा में स्कूटर से कहीं जा रहे थे, ट्रक से उनकी भीषण टक्कर हो गयी।इससे उनके दोनों टांगें बुरी तरह कुचल गयीं।उनको अस्पताल ले गये।वहां उनकी हालत देखकर डा० भी आश्चर्यचकित थे कि बुरी तरह घायल होने पर भी वे सबसे बातचीत कर रहे थे।मनोबल बहुत ऊंचा था।स्वस्थ होने के बाद प्रान्त में प्रवास की योजना बना रहे थे।प्रचारकों को कार्यक्षेत्र में क्या सावधानियां रखनी चाहिए,इसकी चर्चा भी कर रहे थे।पर धीरे-धीरे उनके शरीर में जहर फैलने लगा।सब अंग बेकार हो जाने का डर था।अतःडा०ने उनकी दोनों टांग काटने का निर्णय लिया।सभी ने दिल पर पत्थर रख इसे स्वीकारा।अत्यधिक साहसी थे।उन्होंने पूरा बेहोश होने के बदले केवल निचले हिस्से को सुन्न कर ही यह शल्य क्रिया कराई।लेकिन हालत बिगड़ती गयी।उन्हें भाग्यनगर(हैदराबाद)के निजाम आयुर्विज्ञान संस्थान में ले गये *पर-20जन.2000को विजयवाड़ा से भाग्यनगर की ओर जाते हुए मार्ग में ही उनका शरीरांत हो गया.स्वर्गीय श्री सुब्रह्मण्यम की स्मृति में शासकीय विद्यालय, अमलापुरम् केअनुसूचित जाति छात्रावास में एक विशाल कक्ष का निर्माण कीया ।

Comments

Popular posts from this blog

13 Feb मुग़ल आक्रमण के प्रतिकारक महाराजा सूरजमल जाट जन्म दिवस –

18 Feb पुण्यतिथि -पंडित रामदहिन ओझा

30 Jan कृष्ठरोग निवारण दिन