20 Jan वीरगतिदिवस छत्तीसगढ़ीअमर बलिदानी गेदसिंह

 


वीरगतिदिवस

छत्तीसगढ़ीअमर बलिदानी गेदसिंह 

20.01.1825

छत्तीसगढ़ राज्य का एक प्रमुख क्षेत्र है बस्तर।अंग्रेजों ने अपनी कुटिल चालों से बस्तर को अपने शिकंजे में जकड़ लिया था.वे बस्तर केवनवासियों का नैतिक, आर्थिक और सामाजिक शोषण कर रहे थे।इससे वनवासी संस्कृति के समाप्त होने का खतरा बढ़ रहा था।अतःबस्तर के जंगल आक्रोश से गरमाने लगे।उन दिनों परलकोट के जमींदार थे श्री गेंदसिंह।वे पराक्रमी,चतुर बुद्धिमान,और न्यायप्रिय व्यक्ति थे।उनकी इच्छा थी कि उनके क्षेत्र की प्रजा प्रसन्न रहे।उनका किसी प्रकार से शोषण न हो।इसके लिए वे हर सम्भव प्रयास करते थे;पर इस इच्छा में अंग्रेजों के पिट्ठू कुछ जमींदार,व्यापारी और राज कर्मचारी बाधक थे।वे सब उन्हें परेशान करने का प्रयास करते रहते थे।जबअत्याचारों की पराकाष्ठा होने लगी,तो श्री गेंदसिंह ने24दिस.1824 को अबूझमाड़ में एकविशाल सभा का आयोजन किया।सभा के बाद गाँव-गाँव में धावड़ा वृक्ष की टहनी भेज कर विद्रोह के लिए तैयार रहने का सन्देश भेजा।वृक्ष की टहनी के पीछे यह भाव था कि इस टहनी के पत्ते सूखने से पहले ही सब लोग विद्रोह स्थल पर पहुँच जायें.04जन.1825को ग्राम, गुफाओंऔर पर्वत शृंखलाओं से निकल कर वनवासी वीर परलकोट में एकत्र हो गये।सब अपने पारम्परिक अस्त्र- शस्त्रों से लैस थे।वीर गेंदसिंह ने सबको अपने-अपने क्षेत्र में विद्रोह करने को प्रेरित किया. इससे थोड़े ही समय में पूरा बस्तर सुलग उठा।सरल और शान्त प्रवृत्ति के वनवासी वीर मरने-मारने को तत्पर हो गये. इस विद्रोह का उद्देश्य बस्तर को अंग्रेजी चंगुल से मुक्त कराना था।स्थान-स्थान पर खजाना लूटा जाने लगा।अंग्रेज अधिकारियों तथा राज कर्मचारियों को पकड़ कर पीटा और मारा जाने लगा।सरकारी भवनों में आग लगा दी गयी।शोषण करने वाले व्यापारियों के गोदाम लूट लिये गये।कुछ समय के लिए तो ऐसा लगा मानो बस्तर से अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया है।इससे घबराकर अंग्रेज प्रशासक एग्न्यू ने अधिकारियों की एक बैठक में यह चुनौती रखी कि इस विद्रोह को कौन कुचल सकता है?काफी देर तक बैठक में सन्नाटा पसरा रहा।गेंदसिंह और उनके वीर वनवासियों से भिड़ने का अर्थ मौत को बुलाना था।अतःसब अधिकारी सिर नीचे कर बैठ गये।एग्न्यू ने सबको कायरता के लिए फटकारा।अन्ततःचाँदा के पुलिस अधीक्षक कैप्टन पेबे ने साहस कर इस विद्रोह को दबाने की जिम्मेदारी ली और एक बड़ी सेना लेकर परल कोट की ओर प्रस्थान कर दिया।वनवासियों और ब्रिटिश सेना के बीचघमासान युद्ध हुआ।एक ओर आग उगलती अंग्रेज सैनिकों की बन्दूकें थीं,तो दूसरी ओर अपने धनुषों से तीरों की वर्षा करते वनवासी।बेचारे वनवासी इन आधुनिक शस्त्रों के सम्मुख कितनी देर टिक सकते थे?फिर भी संघर्ष जारी रहा. *20जन.1825 को इस विद्रोह के नेता और परलकोट के जमींदार गेंदसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.अब तो कैप्टन पेबे की खुशी का ठिकाना न रहा;पर वह इतना आतंकित था कि उसने उन्हें बड़े अधिकारियों के सामने प्रस्तुत करने, न्यायालय में ले जाने का जोखिम उठाना भी उचित नहीं समझा।उसने उसी दिन श्री गेंदसिंह को उनके महल के सामने ही फाँसी पर चढ़ा दिया.वीर गेंदसिंह का यह बलिदान छत्तीस गढ़ की ओर से स्वतन्त्रता के लिए होने वाला प्रथम बलिदान था.सादर वंदन. सादर नमन

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