21 Jan बलिदान-दिवस= *क्रांतिवीर हेमू कालाणी


 🕉दिन विशेष=बलिदान-दिवस=

*क्रांतिवीर हेमू कालाणी (21जनवरी) पर कोटि कोटि नमन* =

हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त के सक्खर नगर में 11मार्च,1924 को हुआ.पिताजी पेसूमल कालाणी एवं माँ जेठी बाई.  माँ हेमू को बचपन से ही भारतीय महापुरुषों की कहानिया सुनाया करते थे. आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीरों को हेमू ने अपना आदर्श मान लिया था.भगत सिंह,राजगुरु, सुखदेव की शाहदत के समय हेमू 6साल का था.  एक बार उनके पिता को किसी क्रांतिकारी से वीर सावरकर का प्रतिबंधित ग्रन्थ"1857-प्रथम स्वातंत्र समर" मिला.पढ़कर वे क्रांतिवीरों की गाथाओं पर चर्चा करते.हेमू भी बहुत ध्यान से उसको सुनता था.

1942 का साल भारतीय स्वाधीनता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण है.एक तरफ गांधी जी ने"भारत छोडो आन्दोलन"चलाया,दुसरी और सुभाष चन्द्र बोष की "आजाद हिन्द फ़ौज"ने सशस्त्र क्रान्ति कर रखी थी.देश के लाखों युवा उद्देलित थे और वे अपने स्तर पर इन क्रांतिवीरों की सहायता में जी जान से लगे हुए थे.हेमू हालांकि क्रांतिकारी विचारों के थे.फिर भी वे अहिंसक सत्याग्रहियों की मदद किया करते थे.खबर लगी,आन्दोलनकारियों को कुचलने के लिए एक पलटन,भारी मात्रा में गोलाबारूद लेकर रेलगाडी से,सक्खर की ओर से गुजरने वाली है.उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल एक क्रांतिकारी निश्चय लिया.अपने दो साथियों नन्द और किशन के साथ मिल,हथौड़े,गैती, सब्बल,से वे रेललाइन को उखाड़ने निकले.रेल लाइन डबलरोटी की बेकरी के पीछे से गुजरती थी.रात के सन्नाटे में वे बेकरी के पीछे पटरी को उखाड़ने लगे. बेकरी के एक गार्ड ने उन्हें देख,मालिक को इसकी खबर कर दी.बेकरी का मालिक अंग्रेजों का चापलूस था,उसने पुलिस को खबर कर दी.पुलिस ने आकर उन को घेर लिया. हेमू के साथी भागने में कामयाब रहे मगर हेमू मौके पर रंगे हाथ पकड़ा गया.उससे कहा कि-अगर वो अपने सथियों का नाम बता दे तो उसको छोड़ देंगे.मगर उसने सारा इ्ल्जाम अपने ऊपर ले लिया.कोर्ट ने उसको फांसी की सजा सुनाई और 23 जन.1943को 19 साल का नौजवान"हेमू कालानी"वंदेमातरम् का घोष कर फांसी पर चढ़ गया.हेमू का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया.इससे सिंध को जगा दिया.आजादी की लड़ाई से दूर रहने वाला सिंध प्रांत भी बंगाल, उत्तरप्रदेश,पंजाब की तरह लड़ाई में कूद पडा.

फांसी से पहले जब उनसे आखरी इच्छा पूछी गई,तो भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. दुर्भाग्य से सिंध प्रांत अब भारत में नहीं है और अहेसानफरामोश पाकिस्तानी जब भगतसिंह को भूल गए तो हेमू कलानी को क्या याद करते.पाकिस्तान में उनकी कोई यादगार नहीं बनाई गई मगर भारत में उनको पूरा सम्मान दिया.इंदौर मे एक चौक पर हेमू की प्रतिमा लगाकर,उसका नाम हेमू कालाणी चौक रखा.संसद-भवन प्रांगण में डिप्टी स्पीकर के आफि़स के सामने उनकी प्रतिमा लगाई.मुम्बई के चेम्बूर में एक मार्ग का नाम हेमू कालाणी मार्ग रखा.मुंबई, उल्हासनगर के मुख्य चौक पर भी उनकी प्रतिमा लगाई.देश में उनके नाम पर चौक एवं पार्कों के नाम रखे,उनकी मूर्तियाँ स्थापित की.वे हमेशा अमर रहेंगे. उनको सादर श्रद्धांजली.👏

Comments

Popular posts from this blog

13 Feb मुग़ल आक्रमण के प्रतिकारक महाराजा सूरजमल जाट जन्म दिवस –

18 Feb पुण्यतिथि -पंडित रामदहिन ओझा

30 Jan कृष्ठरोग निवारण दिन