21 Jan जन्मदिवस वरिष्ठप्रचारक.चलते-फिरते संघकोश ज्योतिस्वरिपजी


 जन्मदिवस वरिष्ठप्रचारक.चलते-फिरते संघकोश ज्योतिस्वरिपजी 

21.01.1922 

ज्योतिस्वरूप जी का जन्म मवाना(जिला मेरठ,उ.प्र.) के पास ग्राम नगला हरेरू में 21जनवरी,1922 को हुआ* सेना की अभियन्त्रण इकाई(एम.ई.एस.)में कार्यरत श्री रामगोपाल कंसल तथा माता श्रीमती इमरती देवी की नौ संतानों में ज्योति जी सबसे बड़े थे।पिताजी के साथ बैरकपुर छावनी में रहते हुए वे एक मिशनरी विद्यालय में पढ़ते थे।कक्षा चार में ईसाई अध्यापक ने बताया कि ईश्वर ने सृष्टि निर्माण के चौथे दिन सूरज और चांद बनाये।प्रखर मेधा के धनी बालक ज्योति ने पूछा कि बिना सूरज और चांद के ईश्वर को पता कैसे लगा कि आज चौथा दिन है? अध्यापक निरुत्तर हो गया। 

आगे चलकर उच्च शिक्षा के लिए जब वे मेरठ आये,तो उनका संघ से सम्पर्क हुआ। मेरठ में रहते हुए वीर सावरकर तथा सुभाष चंद्र बोस जैसे महान नेताओं को देखने और सुनने का भी अवसर मिला.1940में रक्षा बंधन के दिन बाबासाहब आप्टे की उपस्थिति में ही उन्होंने संघ की प्रतिज्ञा ग्रहण की. *1943में स्नातक की पढ़ाई पूर्ण कर वे संघ के प्रचारक बन गये* तब तक उन्होंने तृतीय वर्ष प्रशिक्षण भी पूर्ण कर लिया था।शुरू  में उन्होंने एक वर्ष का समय देने का निश्चय किया था। एक वर्ष पूरा होने पर उन्होंने तत्कालीन प्रान्त प्रचारक श्री वसंतराव ओक से वापस जाने के लिए पूछा।श्री ओक ने कहा कि यदि सब वापस चले जाएंगे,तो संघ का काम कौन करेगा?यह सुनकर ज्योति जी ने वापस जाने का विचार सदा के लिए छोड़ दिया।सर्वप्रथम उन्हें मेरठ के निकटवर्ती मुजफ्फरनगर जिले का काम दिया गया। इसके बाद उन्हें राजस्थान, जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में जिला,विभाग प्रचारक आदि जिम्मेदारियां दी गयीं.1965में उन्हें दिल्ली कार्यालय पर चमनलाल जी का सहायक और 1975में पंजाब में प्रान्तीय कार्यालय प्रमुख बनाया गया.1979में रज्जू भैया ने उन्हें दिल्ली बुला लिया और फिर अंत तक वे झंडेवाला कार्यालय पर ही रहे।इस दौरान उन पर प्रांत व्यवस्था प्रमुख, कार्यालय प्रमुख,पुस्तकालय व अभिलेखागार जैसे अनेक काम रहे।दुबले-पतले ज्योति जी का व्यक्तित्व बहुत साधारण था।इस कारण 1948तथा1975के प्रतिबंध में वे भूमिगत रहकर काम करते रहे।वे प्रायःएक धोती के दो टुकड़े कर उसे ही आधा-आधा कर पहनते थे। बिजली और पानी के अपव्यय से उन्हें बहुत कष्ट होता था।पानी बचाने के लिए वे कई बार स्नान के समय गीले तौलिये से ही शरीर पोंछ लेते थे।कहीं भी बिजली या पंखा व्यर्थ चलता दिखता,तो वे उसे बंद कर देते थे।सफाई के प्रति आग्रह इतना था कि वृद्धावस्था में भी कई बार वे स्वयं झाड़ू उठा लेते थे।अध्ययन के अनुरागी ज्योति जी पत्र- पत्रिकाओं को ध्यान से पढ़कर उसमें से काम की चीज निकाल कर उसे संभाल कर रखते थे. *संघ परिवार के किसी पत्र में यदि कोई बात तथ्य के विपरीत छपी हो,तो वे तुरन्त पत्र लिखकर भूल को ठीक कराते थे।इस प्रकार वे चलते-फिरते संघकोश थे* कठोर जीवन तथा कम संसाधनों में जीवन यापन करने के अभ्यासी होने के कारण वे दूसरों से भी ऐसे ही व्यवहार की अपेक्षा करते थे।इस कारण उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता था;पर कपूर की तरह वह उतनी ही जल्दी गायब भी हो जाता.  *हृदय एवं मधुमेह रोग से ग्रस्त होने के कारण 90 वर्ष की दीर्घायु में28मई, 2012की प्रातःदिल्ली कार्यालय पर ही उनका देहांत हुआ.सादर वंदन. सादर नमन

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