22 Jan जन्मदिवस क्रातिवीर ठाकुर रोशनसिंह
जन्मदिवस
क्रातिवीर ठाकुर रोशनसिंह
22.01.1892
अमर हुतात्मा शहीद रोशनसिंह=
भारत के स्वाधीनता संग्राम में फाँसी पाकर अपने वंश को अमर कर देने वाले अमर हुतात्मा क्रातिवीर ठाकुर रोशनसिंह -जन्म शाहजहाँपुर उ.प्र.के खेड़ा नवादाग्राम में22जन. 1892को एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ.* कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखायी दे जाते हैं।रोशनसिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ।बचपन से ही वे अत्यधिक साहसी थे।भय का लेशमात्र भी उनके जीवन में दिखायी नहीं देता था।बालपन में जिस काम को करने में उनके अन्य साथी हिचकते थे,रोशनसिंह आगे बढ़कर उसे अपने सबल कन्धों पर ले लेते थे।अपने इस गुण को विकसित करने के लिए वे खूब व्यायाम करते थे.अत:उनका शरीर भी अच्छा बलिष्ठ हो गया।वे साहसी तो थे ;पर देशभक्ति की भावना भी उनमें कूट- कूट कर भरी थी.1921में हुए असहयोग आन्दोलन में शाहजहाँपुर से जो लोग जेल गये,उनमें रोशनसिंह भी थे।रोशनसिंह को दो साल की जेल हुई थी।इस दौरान बरेली जेल में उनका परिचय मवाना (जिला मेरठ,उ.प्र.)के क्रान्तिकारी विष्णुशरण दुबलिश से हुआ।यह परिचय घनिष्ठता में बदलता गया।उन्होंने रोशनसिंह को समझाया कि अंग्रेजों को भारत से सत्याग्रह द्वारा नहीं भगाया जा सकता। इसके लिए तो बम और गोली के धमाके करने होंगे।विष्णु जी के माध्यम से उनका परिचय देश के अन्य क्रांतिवीरों से हुआ।इनमें पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’प्रमुख थे।धीरे-धीरे उनका रुझान गांधी जी की अहिंसा की बजाय बम-गोली और क्रान्तिकारियों की ओर हो गया.1923में प्रख्यात क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल जब संगठन के विस्तार के लिए शाहजहाँपुर आये,तो वे रोशनसिंह से भी मिले।काकोरी कांड से पूर्व बमरौली कांड में रोशनसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। *===नौअगस्त,1925को ===लखनऊ-सहारनपुर यात्री गाड़ी को लखनऊके पास काकोरी में रोककर सरकारी खजाना लूट लिया गया* यह शासन के मुँह पर खुला तमाचा था।यद्यपि इसमें रोशन सिंह शामिल नहीं थे;पर युवावस्था से क्रान्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय होने के कारण उनका नाम पुलिस की फाइलों में बहुचर्चित था।अतःशासन ने उन्हें भी पकड़ लिया।काकोरी कांड के लिए पं.राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी के साथ रोशन सिंह को भी फाँसी की सजा दी गयी।रोशनसिंह चूँकि इस कांड में शामिल नहीं थे,अतःउनके परिजनों तथा साथियों को विश्वास था कि उन्हें मृत्युदंड नहीं होगा. पर निष्ठुर शासन ने उन्हें भी फाँसी की सजा दी।सजा मिलने पर रोशनसिंह का चेहरा खिल उठा।वे अपने साथियों की ओर देखकर हँसते हुए बोले,‘‘क्यों,अकेले ही चले जाना चाहते थे?’’वहां हाजिर सब लोगों की आँखें भीग गयीं;पर वे अपनी मस्ती में मस्त रहे।रोशनसिंह ने जेल में भी अपनी दिनचर्या खंडित नहीं होने दी।वे प्रतिदिन स्नान,ध्यान और व्यायाम करते थे. *19दिसम्बर1927का दिन फाँसी के लिए निर्धारित था.उस दिन भी उन्होंने यह सब किया।उनकी मानसिक दृढ़ता देखकर जेल अधिकारी हैरान थे।फाँसी के तख्ते परचढ़कर उन्होंने प्रसन्न मन से वन्दे मातरम् का घोष तथा शान्ति मन्त्र का उच्चारण किया।इसके बाद उन्होंने फन्दा गले में डाल लिया।अगले ही क्षण उनकी आत्मा अनन्त आकाश में विलीन हो गयी.सादर वंदन.सादर नमन
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