24 Jan जनमदिवस क्रान्ति कथाओं के लेखक वचनेश त्रिपाठी
जनमदिवस
क्रान्ति कथाओं के लेखक
वचनेश त्रिपाठी= ======== ========(24.01.1914)====== 24जन.1914को संडीला (जिला हरदोई,उ.प्र.)में श्री महावीर प्रसाद त्रिपाठी के घर में जन्मे वचनेश जी का असली नाम पुष्करनाथ था* उनकी शिक्षा कक्षा बारह से आगे नहीं हो पायी; पर व्यावहारिक ज्ञान के वे अथाह समुद्र थे।उन्होंने कई जगह काम किया;उग्र स्वभाव और खरी बात के धनी होने के कारण कहीं टिके नहीं।अटल बिहारी वाजपेयी जब संघ के विस्तारक होकर संडीला भेजे गये,तो वे वचनेश जी के घर पर ही रहते थे।लखनऊ से जब मासिक राष्ट्रधर्म, साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ,तो इन सबका काम अटल जी पर ही था।उन्होंने वचनेश जी की लेखन प्रतिभा को पहचान कर उन्हें लखनऊ बुला लिया.1960में वे तरुण भारत के सम्पादक बने.1967से73तथा1975 से 84तक वे राष्ट्रधर्म के तथा 1973से75तकपांचजन्य के सम्पादक रहे.क्रान्तिकारी इतिहास में अत्यधिक रुचि के कारण वे जिस भी पत्र में रहे,उसके कई‘"क्रान्ति विशेषांक’"निकाले,जो अत्यधिक लोकप्रिय हुए।
वचनेश जी ने अनेक पुस्तकें लिखीं।कहानी,कविता, संस्मरण,उपन्यास ,इतिहास,निबन्ध,वैचारिक लेख..; अर्थात लेखन की सभी विधाओं में उन्होंने प्रचुर कार्य किया।पत्रकारिता एवं साहित्य में उनके इस योगदान के लिए राष्ट्रपति श्री के.आर.नारायणन् ने 2001 में उन्हें "‘पद्मश्री’"से सम्मानित किया।वचनेश जी का क्रान्तिकारियों से अच्छा सम्पर्क था।जयदेव कपूर, शिव वर्मा,काशीराम, देवनारायण भारती, नलिनीकिशोर गुह, मन्मथ नाथगुप्त,पं.परमानन्द,रमेश चन्द्र गुप्ता,रामदुलारे त्रिवेदी, भगवानदास माहौर, वैशम्पायन,भगतसिंह के भाई कुलतार और भतीजी वीरेन्द्र सन्धू,शचीन्द्रनाथ बख्शी,रामकृष्ण खत्री, सुरेन्द्र पांडे,यशपाल आदि से उनकी बहुत मित्रता थी।वचनेश जी ने स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों के योगदान को लिपिबद्ध करा कर उसे राष्ट्रधर्म,पांचजन्य आदि में प्रकाशित किया। देवनारायण भारती ने उन्हें छद्म नाम‘"बदनेश’"दिया,जो आगे चलकर वचनेश हो गया।वचनेश जी जब क्रान्तिकारी इतिहास पर बोलते थे,तो उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था; क्योंकि अधिकांश तथ्य उन्होंने स्वयं जाकर एकत्र किये थे.1984में सम्पादन कार्य से अवकाश लेने के बाद भी उनकी लेखनी चलती रही।पांचजन्य, राष्ट्रधर्म आदि में उनके लेख सदा प्रकाशित होते रहे. *92वर्ष के सक्रिय जीवन के बाद 30नव.2006को लखनऊ में उनका देहान्त हुआ.कवि रामकृष्ण श्रीवास्तव जी उन्हें सही कहा=जो कलम सरीखे टूट गये पर झुके नहीं.यह दुनिया उनके आगे शीश झुकाती है.जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गयी.वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है!!सादर वंदन.
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