*29 जन.1528,चन्देरी (म.प्र.)जौहर दिवस,पर वीरांगनाओं नमन

 🕉 *हर दिन विशेष पावन*=


*29 जन.1528,चन्देरी (म.प्र.)जौहर दिवस,पर वीरांगनाओं को शत शत नमन।गाथा=चन्देरी युद्ध व रानी मणिमाला और 1500 सतियों के जौहर की।*=

चन्देरी के इतिहास में हिन्दू क्षत्रिय वीरों में मेदिनीराय और बाबर का युद्ध प्रसिद्ध है।इस युद्ध में प्रज्जवलित ज्वालाएँ आज भी चन्देरी के ऐतिहासिक में धधक रहीं हैं।मेदिनीराय का वास्तविक नाम रायचन्द था,जिन्हें राणासांगा ने मेदिनीराय की उपाधि से सम्मानित किया।तभी से रायचन्द मेदिनीराय से विख्यात हुए.27जन. 1528की सुबह होने वाली थी।सूर्योदय के साथ ही रणवाद्य बजने लगे। कीर्तिदुर्ग के प्रहरी सजग हो गये।उत्तर दिशा से धूल का बवंडर चन्देरी की ओर बढ़ा चला आ रहा था। महाराजा मेदिनीराय ने चारों ओर निरीक्षण किया-चन्द्रगिरि को बाबर की तापों से सज्जित सेना ने चारों ओर से घेर लिया है। प्रहरी ने राजा मेदिनीराय को सूचना दी कि तुर्क सैनिक बाबर का पत्र लेकर आया है।मेदिनीराय ने पत्र लेकर पढ़ा=तुम राणासांगा की मित्रता को त्याग मेरे मातहत(गुलाम)बन जाओ ।मैं तुम्हें एक दिन का अवसर देता हूँ।खानवा के युद्ध में तुम देख चुके हो। समय रहते समझ जाना। अपनी अक्ल से काम लेना अपनी औकात को भी नजर अंदाज न करना।इस युद्ध की सूचना राणासांगा को भेजी जा चुकी थी, तभी दूसरा प्रहरी राणासांगा का पत्र लेकर आया।पत्र को पढ़कर मेदिनीराय को ज्ञात हुआ कि राणासांगा इस युद्ध में भाग नहीं ले पायेंगे। क्योंकि राणासांगा मेदिनीराय के धर्म पिता का स्वर्गवास हो चुका था। राणासांगा ने मेदिनीराय से इस युद्ध में भाग न ले पाने की क्षमा याचना लिखी। पत्र को पढ़ भाव विभोर राणासांगा के मानस पुत्र मेदिनीराय ने संकल्प लिया =हे धर्म पिता आपका मानस पुत्र रक्त की सरिता मे स्नान कर तुर्कों के रक्त को अंजुली में भर आपका तर्पण करेगा।उसी से आपकी आत्मा तृप्त होगी। तभी बाबर के विशेष दूत जो पत्र लेकर आये थे उन्होंने जबाव माँगा।तो मेदिनीराय ने कहा - 

कोट नवै,पर्वत नवै,माथौ नवाये न नवै।।माथौ सन जू को जब नवै,जब साजन आये द्वार।।

असंभव....।मेदिनीराय क्षत्रिय है,भारत केइतिहास में क्षत्रिय भेंट नहीं लेते हैं..फिर सर्मपण क्या होता है। यही हमारा इतिहास है। बाबर भाग्य का धनी है कि राणासांगा इस दुनिया से चले गये।जाओ बाबर को बता दो,दोनों की सेनाओं को क्यों नाहक मरवाता है।हम दोनों मैदान में निपट लेते हैं।जो हार जाये वह हार स्वीकार कर लेगा।बाबर यदि वीर है तो आमने-सामने का युद्ध हो जाये। तोपों की आग क्या दिखलाता है..।जितनी आग उसकी तोपों में है, उतनी गर्मी तो हर हिन्द के क्षत्रिय के खून में है.।

बाबर के दूत ने कहा- महाराज ये सियासत नहीं है।आप सियासत की बात करें।तो मेदिनीराय ने सुन्दर जबाव दिया=लूटेरों से सियासत की क्या बात करूँ?कह दो जो दूसरों के घर जलाता फिरता है उससे क्या बात करूँ . . .। कह दो बाबर से हम युद्ध करेंगे।महाराज मेदिनीराय ने युद्ध की घोषणा कर दी।

मेदिनीराय महारानी मणिमाला से विदा लेने आते हैं।प्रिय यह हमारे जीवन का अंतिम मिलन और अंतिम विदा।तब महारानी का भाव विभेर सुन्दर जबाव=संसार में भारतीय नारी के सुहाग को मिटाने वाली शक्ति कौन-सी है?हाँ इतना अवश्य है कि हमारा आधा अंग (महाराज मेदिनीराय)युद्ध की ओर जा रहा है।यदि  महाराज वीरगति को प्राप्त होते हैं तो अबिलम्ब यह दूसरा अंग(महारानी मणिमाला)भी अग्निमार्ग से अपने पथ से अपने आधे अंग से जा मिलेगा। फिर आप कैसे कह सकते हैं कि यह हमारा अंतिम मिलन है।महारानी ने सैनिकों को संबोधित किया=बन्धुओं,पराधीनता के राज्य का यश,वैभव, हैय,कलंक की कालिमा में लिपटे सुख हैं।क्षणिक सुख के लिए हम अपनी जाति,धर्म,देश की प्रतिष्ठा को बंधक नहीं बना सकते। जीवन-मरण तो ईश्वर के साथ है,हम उसे नहीं रोक सकते।जब मरना निश्चित है तो मरने पर भी अमरपद मिल सके।ऐसी मौत तो मातृभूमि के लिए उत्सर्ग करने से ही मिलती है.तो आओ चलें महाकाल के चरणों में अमरपद प्राप्त करें।अब क्षत्रिय और तुर्की दोनों सेनाएँ आमने-सामने, हर-हर महादेव के जय घोष के साथ तुर्की सेना पर अूट पड़े।भले ही राजपूत सेना का संख्या बल कम था पर पहले ही हमले में बाबर की सेना की अग्रिम पंक्ति के सैनिक मारे गये।बाबर के सेनापति ने सैनिकों को बहुत उकसाया,साहस दिलाया लेकिन तुर्की सैनिक पीछे हटने लगे। इस युद्ध में बुन्देलखण्ड के राव,सामंत,लडाकू वीर मातृभूमि पर प्राणोत्सर्ग करने आ पहुँचे।महाराज मेदिनीराय ने हुँकार भरते हुए माँ चामुण्ड़ा का जयकारा लगाया।क्षत्रिय सेना वीरता और बलिदान के उभार पर आ गई और तुर्की सेना में हाहाकार मच गया।पानीपत और खानवा के युद्ध का विजेता बाबर भी क्षत्रियों क विकट युद्ध से भयभीत हो गया.वह पीछे हट गया और खच्चर की गाड़ियों पर लदी तोपों को आगे बढ़ा दिया।बाबर ने घुड़सवारों को दांये-बायें से आक्रमण करने का हुक्म दिया।मानो भेड़िये सिंहों को घेरने की कोशिश कर रहे हों।युद्ध के नवीन आक्रमण से सिंहों की गति अवरुद्ध हो गई।तोपों के सामने क्षत्रियों की सेना का यह प्रथम युद्ध में मेदिनीराय की आधी सेना ने तुर्कों की चौगुनी सेना को मारकर वीरगति प्राप्त की।संध्या काल में युद्ध समाप्त हुआ।बाबर ने भी चैन की सांस ली और कहा कि राणासांगा मर गया नहीं तो बेतवा के किनारे ही हमारी कब्र बनती। बाबर ने अपने सेनापति व सहयोगियों से मंत्रणा की। तभी बाबर के सेनापति ने कहा गुलाम के रहते आलमपनाह को तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है। आज आधी रात को मेदिनीराय का साथी अहमद खाँ नगर का द्वार खोलेगा और हम रात में ही हमला करेंगे।महारानी मणिमाला,मेदिनीराय के घावों पर मरहम लगा रहीं थी और महाराज को विश्राम करने का कहा। मेदिनीराय ने कहा-अब तो विश्राम रणांगन में ही होगा।तभी हाँफते हुए मेदिनीराय का सेनापति आया कि अहमद खाँ ने नगर का द्वार घोल दिया. और बाबर की सेना नगर में प्रवेश कर गई है। मेदिनीराय झटके के साथ उठे और पीछे मुड़कर बस इतना कहा-अंतिम विदा मणि,और बाहर निकल गये।महाराज मेदिनीराय ने नगर के बीच में आकर शंखध्वनि का उद्घोष किया।वीरो मरणहोम में जीवन की आहूति नहीं गिरी तो पुण्य नहीं मिलेगा, कीर्ति मंद पड़ जायेगी।हमें अपराजेय योद्धा की तरह ही तांडव के ताल पर मृत्यु के साथ नृत्य करना है। रणचण्ड़ी के चरणों में रक्त का अर्घ समर्पित करने का आज सुअवसर है।हर-हर महादेव के घोष के साथ क्षत्रिय तुर्कों पर टूट पड़े। घबरा कर बाबर ने पुनः तोपों को चलाने का हुक्म दिया।तोपों को रोकने के लिए मेदिनीराय आगे बढ़े। अचानक मेदिनीराय घायल होकर भूमि पर गिर पड़े। विशेष सहयोगी मेदिनीराय को उठाकर दुर्ग की ओर ले गये।बाबर की सेना ने नगर में आग,लूट,हत्या का तांडव कर दिया।बाबर ने मरे हुए राजपूतों के सिर कटवाकर उनकी मीनार (टीला)बनवाया और उस पर अपना झण्ड़ा गाढ़ा। मेदिनीराय जैसे ही होश में आये तो दुर्ग से नरमुण्ड़ों पर गढ़ा तुर्कों का ध्वज देख चीखकर अपने आपको धिक्कारने लगा। मेरे रहते मेरे नगर पर तुर्कध्वज फहरा रहा है। तभी महारानी मणिमाला ने धनुष उठाकर उस ध्वज के चिथड़े उड़ा दिये।इसी बीच द्वारपाल आया और महाराज से कहा कि महाराज द्वार पर बाबर के दूत आये हैं और संधि करने का प्रस्ताव लाये हैं। कि महल खाली कर दो और चन्देरी के बदले शमशाबाद ले लो।तभी मणिमाला अपने वीरों को संबोधित करती हैं-यह समय हित-अहित का नहीं है।मृत्यु तो अवश्यम्भावी है।चाहे वह शयन कक्ष में आये सा रणभूमि में . . .। संधि करने का हक न तो महाराज के पास है न ही पंचों के पास।यदि संधि करनी थी तो हमारे वीरों को मरवाया क्यों?क्या जबाव देंगे उन माताओं को,उन विधवाओं को जिन्होंने अपने लाल और वीरों को रणचण्ड़ी को भेट कर दिये।नहीं अब समझौता नहीं होगा।हम अपने कुल को कलंकित नहीं होने देंगे।अब अंतिम युद्ध होगा।सभी ने एक स्वर में बोला हाँ अब अंतिम युद्ध होगा।महाराज मेदिनीराय ने खड़े होकर कहा हाँ अब अंतिम युद्ध होगा।जो अपनी स्वेच्छा से युद्ध में चलना चाहते हैं वह केशरिया धारण कर लें तथा जो युद्ध में नहीं जाना चाहते वह दुर्ग से बाहर निकल जाये।अंतिम युद्ध हेतु चन्द्रगिरि के दुर्ग पर मरणोत्सव पर्व की तैयारियाँ शुरू हो गई। महारानी ने आकर कहा कि महाराज को केशरिया पहना कर मृत्यु वरण के लिए तैयार किया और स्वयं के लिए आदेश माँगा कि मुझे भी आदेश दे दीजिए कि मैं जोहर की।  महाराज शीघ्रता से दुर्ग के बाहर चल सेनिकों को कहते हैं-यदि काल अमर है तो हम महाकाल हैं।हर हर महादेव करते हुए राजपूत दुर्ग के प्रमुख द्वार से बहार आ जाते है और बाबर की सेना पर घायल शेर की भांति टूट पड़ते है।अंतिम युद्ध लड़ा जाने लगा। मुख्य द्वार से रक्त की सरिता वहने लगी,लाशों के ढेर लग गये।युद्ध चलता रहा और मेदिनीराय अपने वीरों के साथ तुर्कों के सिर काटते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।फिर चारों ओर सन्नाटा।दुर्ग का द्वार खुला था फिर भी द्वार अंदर आने का साहस शत्रु सेना नहीं जुटा सकी।बाबर भी चन्द्रगिरि के दुर्ग में जाने से घबरा रहा था।दुर्ग के प्रथम द्वार पर बाबर के मुँह से घबरा कर निकला- ओह..खूनी दरवाजा.. दरवाजा खूनी दरवाजे के नाम से विख्यात् हुआ। प्रहरी ने महारानी को सूचना दी कि महाराज वीरगति को प्राप्त हुए। मणिमाला ने अपने आपको संभाला फिर सुहाग,सिन्दूर,मेंहदी तैयार का पूजा का थाल ले बाहर आईं।दुर्ग की स्त्रियों में हाहाकार मच गया। सौन्दर्य,सुहाग की साकार मूर्ति को देख चारों ओर का हाहाकार शान्त हुआ। मणिमाला शिव मन्दिर गई पूजन बाद बाहर आईं तो लगभग 1500क्षत्राणियाँ खड़ी थीं।तब महारानी ने उनसे कहा-हम प्रत्येक स्थिति में जीते हैं,लेकिन पति से अलग होकर हम नहीं जी सकते।पति के उठते पाँव के चिन्हों पर हमें भी पाँव रखना है।     हमारे प्राण प्रिय से हमारा संबंध मात्र शरीर का नहीं है वरन् आत्मा का है।उसी से प्रेरित होकर हम आत्मा के मिलन के लिए सुहाग की अमरता पाने पवित्र अग्नि में जा रहे हैं।मेरे जीवन में ही क्या युगों-युगों से भारतीय नारी के जीवन में आग और सुहाग कोई अलग वस्तु नहीं रही है। जब तक इस भारत में इस आग और सुहाग के महत्व को नारी जानती और मानती रहेगी,तब तक एक क्या हजारों बाबर भी एक साथ मिलकर भारत की पावनता और संस्कृति को नहीं जीत सकते।भले ही कुछ समय के लिए निस्तेज हो जायें,छुपी आग का दबा बीज फिर से अवश्य फूटेगा।फिर विशाल चिता में अग्नि प्रज्वलित कर दी। महारानी सहित लगभग 1500वीरांगनाओं ने अपने जीवन को होमकर दिया। जैसे ही बाबर की सेना ने दुर्ग में प्रवेश किया तो शेष सैनिकों ने मोर्चा संभालकर वीरता से युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की।बाबर जलती हुई चिता को निहार रहा था।उसका कठोर हृदय भी पीडा से कराह उठा।उसी समय चिता के भीतर से एक सनसनाता तीर आया और बाबर की पगड़ी में लगा,वह जमीन पर गिर गई।यह देख बाबर की सेना में आतंक छा गया।बाबर के सैनिक चिता के पास पहुँचे तो देखा- महारानी मणिमाला तीर चलाकर धनुष को कंधे पर ले रहीं थीं।बाबर ठगा सा रह गया।भग्न ध्वस्त दुर्ग की सूबेदारी अहमद खाँ को सौप तुरंत दिल्ली चला गया।चन्देरी का जौहर महारानी मणिमाला की वीरता और सतित्व की गाथा है।डॉ.रिजवी लिखित बाबरनामा मे- मेदिनीराय इस युद्ध में नहीं मरे,वरन् बाबर द्वारा बन्दी बना लिए गए।बाबर ने उन्हें बलात् मुसलमान बनाया,फिर उनकी हत्या कर दी।

👏*पग पग पर लाल न्यौछाबर हुए,बजासे लाल भई जा चन्देरी की माटी।।

अत्र सरसतीरे असंख्याता क्षत्रिय वीरांगना।सतीत्व रक्षार्थ जौहरेण विधिना ज्वलनं प्रविश्य दिवंगताः* ।।सादर वंगन।नमन।👏

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