30 Jan कृष्ठरोग निवारण दिन
30 Jan कृष्ठरोग निवारण दिन
कोढ़ को ही कुष्ठ रोग कहा जाता है, जो कि एक जीवाणु रोग है। यह एक दीर्घकालिक रोग है, जो कि माइकोबैक्टिरिअम लेप्राई और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस जैसे जीवाणुओं की वजह से होता है। कुष्ठ रोग के रोगाणु की खोज 1873 में हन्सेन ने की थी, इसलिए कुष्ठ रोग को 'हन्सेन रोग' भी कहा जाता है।
इस रोग का जिक्र भारतीय ग्रंथों में किया गया है। भारतीय ग्रंथों के अनुसार 600 ईसा पूर्व इस रोग का उल्लेख किया गया है। यह रोग मुख्य रूप से मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आंखों और शरीर के कुछ अन्य भागों को प्रभावित करता है। कुछ लोग कुष्ठ रोग को वंशानुगत या दैवीय प्रकोप मानते है, लेकिन यह रोग न तो वंशानुगत है और न ही दैवीय प्रकोप है, बल्कि यह रोग जीवाणु द्वारा होता है।
यह रोग भारत सहित संपूर्ण विश्व के पिछड़े हुए देशों के लिए एक ऐसी समस्या है, जो कि लाखों लोगों को दिव्यांग बना देता है, लेकिन पश्चिमी देशों में इस रोग का प्रभाव न के बराबर है। भारत देश में भी इस रोग पर काफी नियंत्रण किया जा चुका है। जिन कुष्ठ रोगियों को समाज धिक्कारता है, उन कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों से हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काफी स्नेह और सहानुभूति रखते थे, क्योंकि वे जानते थे कि इस रोग के क्या सामाजिक आयाम हैं। इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की काफी सेवा की और कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काफी प्रयास किए।
कहा जाए तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रयासों की वजह से ही भारत सहित कई देशों में अब कुष्ठ रोगियों को सामाजिक बहिष्कार का सामना नहीं करना पड़ता। अब समाज का अधिकतर तबका समझ गया है कि कुष्ठ रोग कोई दैवीय आपदा नहीं बल्कि एक बीमारी है, जो कि किसी को भी हो सकती है और इसका इलाज संभव है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के प्रयासों की वजह से ही हर वर्ष 30 जनवरी उनकी पुण्यतिथि को 'कुष्ठ रोग निवारण दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
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