5 Jan -बरीन्द्रन घोष का जन्म
दिन विशेष=जन्मदिवस=
बरीन्द्रन घोष का जन्म 5जन.1880 को लन्दन के पास क्रोयदन में हुआ.पिता श्री कृष्नाधन घोष एक नामी चिकित्सक व प्रतिष्ठित जिला सर्जन थे जबकि माता देवी स्वर्णलता प्रसिद्ध समाज सुधारक व विद्वान राजनारायण बासु की पुत्री थीं।श्री अरविन्द,जो की पहले क्रन्तिकारी और फिर अध्यात्मवादी हो गए थे, उनके तीसरे बड़े भाई थे जबकि उनके दूसरे बड़े भाई श्री मनमोहन घोष अंग्रेजी साहित्य के विद्वान, कवि और कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज व ढाका यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर थे।बारिन घोष की स्कूली शिक्षा देवगढ में हुई. 1901 में प्रवेश परीक्षा पास करके पटना कॉलेज में दाखिला लिया।बरोड़ा में मिलिट्री ट्रेनिंग ली।इसी समय श्री अरविन्द से प्रभावित होकर उनका झुकाव क्रांतिकारी आन्दोलन की तरफ हुआ।
1902 में बारीन्द्र कलकत्ता वापस आये और यतीन्द्रनाथ मुखर्जी(बाघ जतिन)के साथ मिलकर बंगाल में अनेक क्रांतिकारी समूहों को संगठित करना शुरू कर दिया।वारींद्र घोष और भूपेन्द्र नाथ दत्त के सहयोग से 1907में कलकत्ता में अनुशीलन समिति का गठन किया. जिसका प्रमुख उद्देश्य था - "खून के बदले खून"। 1905 के बंगाल विभाजन ने युवाओं को आंदोलित कर दिया था,जो की अनुशीलन समिति की स्थापना के पीछे एक प्रमुख वजह थी।समिति का जन्म 1903में ही एक व्यायामशाला के रूप में हुआ।इसकी स्थापना में "प्रमथ नाथ मित्र"और" सतीश चन्द्र बोस"का प्रमुख योगदान था।एम्.एन.राय के सुझाव पर इसका नाम"अनुशीलन समिति "रखा गया।प्रमथ नाथ मित्र इसके अध्यक्ष, चितरंजन दास व अरविन्द घोष इसके उपाध्यक्ष और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर इसके कोषाध्यक्ष थे।इसकी कार्यकारिणी की एकमात्र शिष्य सिस्टर निवेदिता थीं.1906 में इसका पहला सम्मलेन कलकत्ता में सुबोध मालिक के घर पर हुआ।वारींद्र घोष जैसे लोगों का मानना था की सिर्फ राजनीतिक प्रचार ही काफी नहीं है और नोजवानों को अध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाय।उन्होंने अनेक जोशीले नोजवानों को तैयार किया जो लोगों को बताते थे की स्वतंत्रता के लिए लड़ना पावन कर्तव्य है।बारिन घोष को 1920 में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद दी गयी आम क्षमा (general amnesty)में रिहा कर दिया गया जिसके बाद वह कलकत्ता आ गए और पत्रकारिता प्रारंभ कर दी।किन्तु जल्द ही उन्होंने पत्रकारिता भी छोड़ दी और कलकत्ता में आश्रम बना लिया.1923 में वह पांडिचेरी चले गए जहाँ उनके बड़े भाई श्री अरविन्द ने प्रसिद्ध"श्री औरोविंद आश्रम"बनाया था।श्री अरविन्द ने उन्हें आध्यात्म और साधना के प्रति प्रेरित किया जबकि श्री ठाकुर अनुकुलचंद उनके गुरु थे।इन्होने ही अपने अनुयायियों द्वारा बरीं की सकुशल रिहाई में मदद की थी.1929 में बारिन दोबारा कलकत्ता आये और पत्रकारिता शुरू कर दी.1933 में उन्होंने"द डान ऑफ इण्डिया नामक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र शुरू किया।वह"द स्टेट्समैनसे जुड़े रहे और 1950 में वह बांगला दैनिक"दैनिक बसुमती"के संपादक हो गए.18अप्रैल 1959 को इस महान सेनानी का देहांत हो गया।सादर वंदन।नमन।
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