9 Jan *प्रेरक प्रसंग क्रांतिवीर निर्मलकांतराय 19.01.1944
https://youtu.be/fsZeXLYRWY0
*प्रेरक प्रसंग क्रांतिवीर
निर्मलकांतराय
19.01.1944
देश की स्वाधीनता के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जहां हजारों लोग अहिंसक मार्ग से सत्याग्रह कर रहे थे,वहीं दूसरी ओर क्रांतिवीर हिंसक मार्ग से अंग्रेजों को हटाने के लिए प्रयासरत थे।वे अंग्रेज अधिकारियों के साथ ही उन भारतीयअधिकारियों को भी दंड देते थे,जो अंग्रेजों की चापलूसी कर भारतीयों को प्रताड़ित करने में गौरव का अनुभव करते थे।कोलकाता में तैनात ऐसे ही एक हेड कांस्टेबल हरिपद डे के वध के बाद क्रांतिकारियों ने अब इंस्पेक्टर नृपेन्द्रनाथ घोष को अपने निशाने पर ले लिया।नृपेन्द्रनाथ को यह पता लग गया था कि क्रांतिकारी अब उसके पीछे पड़ गये हैं।अतः वह इतना अधिक भयभीत हो गया कि सोते हुए भी कई बार चौंक कर उठ बैठता और चिल्लाने लगता,‘‘वे मेरा पीछा कर रहे हैं।देखो,वह पिस्तौल तान रहाहै,मुझे बचाओ.अपने कार्यालय में भी वह प्रायः चारों ओर ऐसे देखने लगता मानो किसी को ढूंढ रहा हो।दिन-रात अपने साथ एक अंगरक्षक रखने लगा।उसने सभी उत्सवों में भी जाना बंद कर दिया. क्रांतिकारियों ने इस बारे में एक गुप्त बैठक की।इसमें प्रतुल गांगुली,रवि सेन,निर्मल राय तथा निर्मलकांत राय शामिल हुए।बैठक में यह विचार हुआ कि चूंकि आज कल नृपेन्द्रनाथ बहुत अधिक सावधान रहता है,अत:कुछ दिन शान्त रहना ही उचित होगा।कुछ समय बीतने पर जब वह असावधान हो जावें तब उसका शिकार करना ठीक रहेगा।यह भी निर्णय हुआ कि हम सामूहिक रूप से उसका पीछा न करें और जिसे मौका मिले,वह तभी उसका वध कर दे।निर्णय होने के बाद बैठक समाप्त हो गयी।जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया,नृपेन्द्रनाथ असावधान होने लगा।उसके मन से क्रांतिकारियों का भय भी निकल गया।अब वह पुलिस विभाग की गाड़ी के बदले ट्राम से ही अपने कार्यालय आने-जाने लगा।क्रांतिकारी इसी अवसर की तलाश में थे.19जन.1944 को हर दिन की तरह पुलिस इंस्पेक्टर नृपेन्द्रनाथ ने अपना काम निबटाया.एलीसियम रोड वाले कार्यालय से निकल कर अपने घर जाने के लिए उसने ट्राम पकड़ ली।ट्राम रात के पौने आठ बजे ग्रे स्ट्रीट और शोभा बाजार के चौराहे पर रुकी।नृपेन्द्रनाथ आराम से उतरकर अपने घर की ओर चल दिया।उस स्थान से कुमारतूली पुलिस स्टेशन निकट ही था।क्रांतिवीर निर्मलकांत राय उस दिन उसका पीछा कर रहा था।वह अचानक नृपेन्द्रनाथ के सामने कूदा और रिवाल्वर की एक गोली उसके सिर में दाग दी।गोली इतने पास से मारी गयी थी कि वह सिर को फोड़ती हुई बाहर निकल गयी।नृपेन्द्रनाथ चीखकर धरती पर गिर पड़ा; पर निर्मलराय ने तभी एक दूसरी गोली उसके हृदय पर मारी।नृपेन्द्रनाथ की वहीं मृत्यु हो गयी।शाम के समय बाजार में भीड़ रहती ही है।गोली चलने से और लोग भी आ गये और वहां शोर मच गया।निर्मलकांत ने इसका लाभ उठाकर रिवाल्वर जेब में डाली और शोर मचाने लगा,"कोई हमारे साहब को बचाओ,हत्यारे का पकड़ो, देखो भागने न पाये..।’’फिर वह इस शोर और भीड़ में से स्वयं चुपचाप निकल गया।लोग समझे कि वह इंस्पेक्टर साहब का चपरासी है।पुलिस विभाग में हड़कम्प मच गया।उन्होंने हत्यारे की बहुत तलाश की;पर वह हाथ नहीं आया।आगे चलकर पुलिस ने संदेह में एक निर्दोष युवक को पकड़ा,उसे मारा-पीटा; पर उसे कुछ पता ही नहीं था।उस पर हाई कोर्ट में मुकदमा भी चलाया गया पर न्यायालय ने उसे छोड़ दिया। *इस प्रकार क्रांतिकारियों ने(क्रांतिकारी वीर निर्मल कांत राय)अंग्रेजों के एक पिट्ठू को यमलोक पहुंचा कर कोलकाता में अपनी धाक जमा ली.सादर वंदन.सादर
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