10 Feb वीरगतिदिवस अमर बलिदानी सोहन लाल पाठक
वीरगतिदिवस अमर बलिदानी सोहन लाल पाठक
10.02.1916
इनका जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के पट्टी गाँव में07जन.1883को श्रीचंदाराम के घर में हुआ* उन्हें कक्षा पाँच से मिडिल तक छात्रवृत्ति मिली थी। मिडिल उत्तीर्ण कर नहर विभाग में नौकरी कर ली। फिर आगे पढ़ने हेतु नौकरी छोड़ दी।परीक्षा उत्तीर्ण कर वे लाहौर डी.ए.वी.हाईस्कूल में पढ़ाने लगे।एक बार विद्यालय में जमालुद्दीन खलीफा निरीक्षक आया।उसने बच्चों से कोई गीत सुनवाने को कहा।देश और धर्म के प्रेमी पाठक जी ने एक छात्र से वीर हकीकत के बलिदान वाला गीत सुनवा दिया।इससे वह बहुत नाराज हुआ।इन्हीं दिनों पाठक जी का सम्पर्क स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदयाल से हुआ।वे उनसे प्रायःमिलने लगे।तब विद्यालय प्रधानाचार्य ने उनसे कहा कि यदि वे हरदयाल जी से सम्पर्क रखेंगे,तो उन्हें निकाल देंगे।तब उन्होंने स्वयं ही नौकरी छोड़ दी।जब लाला लाजपत राय जी को पता लगा,तो सोहनलाल पाठक को ब्रह्मचारी आश्रम में नियुक्ति दे दी।पाठक जी के एक मित्र सरदार ज्ञानसिंह बैंकाक में थे।उन्होंने किराया भेजकर पाठक जी को भी वहीं बुला लिया।दोनों मिल वहाँ भारत की स्वतन्त्रता की अलख जगाने लगे;वहाँ की सरकार भी अंग्रेजों को नाराज नहीं करना चाहती,अतःपाठकजी अमरीका जा गदर पार्टी में काम करने लगे।इससे पूर्व वे हांगकांग गये तथा वहाँ एक विद्यालय में काम किया।पढ़ाते हुए भी वे छात्रों के बीच प्रायःदेश की आजादी की बातें करतेे।हांगकांग से वे मनीला चले गये।वहाँ बन्दूक चलाना सीखा।अमरीका में वे लाला हरदयाल और भाई परमानन्द के साथ काम किया।दल के निर्णयअनुसार उन्हें बर्मा होकर भारत जाने को कहा।बैंकाक आ उन्होंने सरदार बुढ्डा सिंह,बाबू अमरसिंह के साथ सैनिक छावनियों में सम्पर्क किया।वे भारतीय सैनिकों से कहते थे कि जान ही देनी है,तो अपने देश के लिए दो।जिन्होंने हमें गुलाम बनाया है,जो हमारे देश के नागरिकों पर जुल्म, अत्याचार कर रहे हैं,उनके लिए प्राण क्यों देते हो?इससे छावनियों का वातावरण बदलने लगा।पाठक जी ने स्याम में पक्कों नामक स्थान पर एक सम्मेलन बुलाया।वहां से एक कार्यकर्ता को चीन के चिपिनटन नामक स्थान पर भेजा,जहाँ जर्मन अधिकारी 200भारतीय सैनिकों को बर्मा परआक्रमण के लिए प्रशिक्षित कर रहे थे। पाठक जी किसी गुप्त एवं लम्बी योजना पर काम कर रहे थे;एक मुखबिर ने उन्हें पकड़वा दिया।उस समय उनके पास तीन रिवाल्वर तथा250 कारतूस थे।उन्हें मांडले जेल भेज दिया।स्वाभिमानी पाठक जी जेल में बड़े से बड़े अधिकारी के आने पर भी खड़े नहीं होते थे।यद्यपि उन्होंने किसी को मारा नहीं था;पर शासन विरोधी साहित्य छापने तथा विद्रोह भड़काने के आरोप में उन पर मुकदमा चला।उनके साथ पकड़े गये मुस्तफा हुसैन,अमरसिंह,अली अहमद सादिक,राम रक्खा को कालेपानी की सजा दी. *पर सोहन जी पाठक को सबसे खतरनाक समझकर 10फर1916को मातृभूमि से दूर बर्मा की मांडले जेल में फाँसी दे दी.सादर वंदन.
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