16 Feb जन्मदिन जन्मदिवस परावर्तन के योद्धा ======== श्रद्धैय राजेश्वर जी
जन्मदिवस परावर्तन के योद्धा ========
श्रद्धैय राजेश्वर जी ======== राजेश्वरजी=जन्म16फर.1916को दिल्ली में श्री भगवान दास जी के घर हुआ.* वे कक्षा में सदा प्रथम आते।धनाभाव से पिताजी ने कक्षा दस के बाद पढ़ाने से मना कर दिया;पर बड़े भाई श्री लुभाया राम के आग्रह पर पिताजी मान गये।राजेश्वर जी ने ट्यूशन पढ़ाते हुए बी.एस.सी.किया।तब छुआछूत और जातिभेद का जोर था;पर इन्होंने मां,भाभी को समझाकर रसोई में एक सफाईकर्मी के बेटे को काम पर रखा।तब पड़ोसियों ने दो वर्ष इनके घरसे खानपान का बहिष्कार किया.1934में इन्होंने देखा कि एक मियां मुसलमान कुएं से पानी ले कर हरिजन महिलाओं की बाल्टियों में डाल रहा है। साथ ही वह उनसे गन्दे मजाक भी कर रहा था। हरिजन कुएं की मुंडेर पर अपने घड़े नहीं रख सकते थे।तब राजेश्वर जी रोजाना वहां आ घड़ों में पानी भरने लगे।तब उस मुसलमान से झगड़ा भी हुआ;राजेश्वर जी डटे रहे।फिर धीरे-धीरे वे महिलाएं स्वयं ही कुएं से पानी लेने लगीं।उन दिनों सफाईकर्मी सिर पर मैला ले जाते थे.1939में वे शिमला में रहते थे।तब सफाईकमियों के नेता सोहनलाल के साथ खाना बनाकर खाया।बताया -हिन्दुओं के व्यवहार से दुखी होकर सब धर्मान्तरण करने वाले थे;पर अब वे यह नहीं करेंगे।पहाड़गंज (दिल्ली)में अंधविश्वास से कई हिन्दू महिलाएं नमाज से लौटते मुसलमानों से बच्चों के मुंह पर फूंक लगवाती थीं ।राजेश्वर जी ने अपने मित्रों के साथ"हिन्दू धर्म संघ"नामक संस्था बना,कुप्रथा को बन्द कराया।वे कालबाह्य हो चुकी रूढ़ियों के विरोधी थे.1941 में उन्होंने प्रतीकात्मक दहेज लेकर अन्तरजातीय विवाह किया।इस हेतु जानबूझ,वह तिथि चुनी,जिसमें विवाह वर्जित है।फिर आर्य समाज के माध्यम से उन्होंने बड़ी संख्या में अन्तरजातीय और दहेज रहित विवाह कराये. 1946में पहाड़गंज में मियां मुसलमानों ने बकरीद पर गाय का जुलूस निकाल उसे काटने की योजना बनाई।राजेश्वर जी ने भाई बंसीलाल व स्वयंसेवक पूरनचंद के साथ जुलूस पर हमला कर गाय को छुड़ाया.वे सभी सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में सक्रिय थे।वे दक्षिण दिल्ली के विभाग संघचालक थे.1983में वि.हि.प.की बैठक में एक कार्यकर्ता ने कहा-सब हिन्दुओं को एक-एक हरिजन महिला को बहिन बनाना चाहिए।वे उसी दिन राममनोहरलोहियाअस्पताल की एक सफाईकर्मी महिला शान्तिदेवी को अपनी धर्म बहिन बना घर लौटे।हिन्दुओं की घटती जनसंख्या से बहुत दुखी थे।वे छुआछूत मिटाने और परावर्तन की गति बढ़ाने पर जोर देते थे।उन्होंने चार पूर्णकालिक कार्यकर्ता रख कर सैकड़ों मुसलमानों और ईसाइयों को समझा,बिना लालच के हिन्दू बनाया।कई हिन्दूकन्याओं को मुसलमानों के चंगुल में फंसने से भी बचाया।उन्होंने‘परावर्तन क्यों और कैसे"नामक पुस्तक लिखी।अपनी पूरी सम्पत्ति "राजेश्वर चंद्रकांता धर्मार्थ न्यास"के नाम कर दी,ताकि उन दोनों के देहांत बाद भी परावर्तन कार्य में बाधा न आये। *परावर्तन के इस महान योद्धा राजेश्वर जी का देहांत11फर.1999को हुआ.सादर वंदन.सादर नमन.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*
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