3 Feb पुण्यतिथि स्वाधीनता को समर्पित ऋषिकेश लट्टा
पुण्यतिथि स्वाधीनता को समर्पित ऋषिकेश लट्टा
03.02.1930
पंजाब के प्रसिद्ध क्रांतिकारी सरदार अजीतसिंह,सूफी अम्बा प्रसाद जब देश से बाहर चले गये,तो वहां क्रांतिकारी दल का काम ऋषिकेश लट्टा युवक ने संभाल लिया।छात्रों पर उसका बहुत प्रभाव था।पूरे राज्य में घूमकर वह नये लोगों को दल से जोड़ा।पुलिस पूरी सरगर्मी से उसे तलाश करने लगी।ऋषिकेश के पिता चौधरी संगतराम होशियारपुर जिले के धोशारा गांव के एक प्रतिष्ठित,सम्पन्न व्यक्ति थे।वे पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे।पर लाहौर के डी.ए.वी विद्यालय में पढ़ते समय ऋषिकेश का संपर्क सरदार अजीत सिंह से हो गया और फिर वह उनके रंग में ही रंग गया।पुलिस उसके पीछे लग गयी।उनके दल ने उन्हें कुछ समय के लिए विदेश चले जाने को कहा।अपने दल का नेतृत्व प्रेमपाल को सौंप भूमिगत हो 1906में ईरान के तेहरान नगर में पहुंचे।वहां वह ईरानी युवकों को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़काने लगे।इस पर वहां तैनात अंग्रेज रेजिडेण्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर Rs. 20,000का पुरस्कार घोषित कर दिया।ऋषिकेश को एक बार फिर भूमिगत होना पड़ा ।पर तब तक उन्होंने ईरानी क्रांतिकारी युवकों का एक दल बनाकर उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध सक्रिय कर दिया।ईरानी शासन का ऋषिकेश के प्रति बहुत सद्भाव था।शासन ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर उच्च अध्ययन के लिए यूरोप भेज दिया।ऋषिकेश ने इसका लाभ उठा कर रूस, आस्ट्रिया,हंगरी,फ्रांस,तुर्की, जर्मनी,हालैंड,रूमानिया,का भ्रमण किया।जहां भी गये, वहां भारतीय युवकों को संगठित कर क्रांति की लपटें फैलाते गये।चूंकि वे ईरान शासन के खर्च से घूम रहे थे, सभी जगह ईरानी दूतावासों से उन्हें सहायता मिलती थी। इस्ताम्बूल में ईरान के राजदूत की सहायता से वे अमरीका पहुंच गये।चुप बैठे रहना ऋषिकेश के स्वभाव में नहीं था.अमरीका केलीफोर्निया नगर में जब भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों ने युगान्तर आश्रम और गदर पार्टी स्थापित की, तो वह भी उसके संस्थापकों में थे।प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने पर ऋषिकेश तथा उसके मित्र सक्रिय हो उठे।वे इस समय का लाभ उठा ब्रिटेन को अंदर,बाहर दोनों ओर से चोट पहुंचाना चाहते थे।ऋषिकेश और उसके मित्रों ने इस दौरान बड़ी मात्रा में अस्त्र -शस्त्र और धन भारत भेजा।इसके साथ ही वे अमरीका में ब्रिटेन के विरुद्ध तथा भारत के पक्ष में वातावरण बनाने लगे।विदेशों में रह रहे कई क्रांतिकारी एवं स्वाधीनता सेनानी इस समय का लाभ उठाने के लिए भारत लौट आये।ऋषिकेश ने भी वैधानिक रूप से भारत आना चाहा;पर शासन ने उसे अनुमति नहीं दी।ऋषिकेश हार मानने वाले नहीं थे।वह जर्मनी के बर्लिन शहर में पहुंच वहां काम कर रहे भारतीय क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो गये।बर्लिन में उन्होंने एक जर्मन युवती से विवाह कर लिया; पर युद्ध में जर्मनी की हार से भारत आजादी का स्वप्न टूट गया।अतःऋषिकेश एक बार फिर ईरान के तेहरान नगर में जा पहुंचे।जीवन भर संघर्षरत रहने वाले *इस क्रांतिवीर का 03फर.1930को तेहरान में ही देहांत हुआ.ऋषिकेश लट्टा के जीवन का प्रत्येक क्षण भारत की स्वाधीनता को समर्पित था.
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