7 Feb पुणतिथि 07.02.1982 विलक्षण संन्यासी करपात्रीजी महाराज


 पुणतिथि 

07.02.1982

विलक्षण संन्यासी 

करपात्रीजी महाराज स्वामी करपात्री जी का बचपन का नाम हरनारायण था।इनका जन्म-हिंदू वर्ष-वि.सं.1964की श्रावण शुक्ल द्वितीया को(07जुलाई 1907)ग्राम भटनी,उ.प्र.में पं.रामनिधि तथा श्रीमती शिवरानी के घर में हुआ.*                    इनके पिता श्रीराम एवं भगवान शंकर के परम भक्त थे।वे रोज पार्थिव पूजा एवं रुद्राभिषेक करते थे।यही संस्कार बालक हरनारायण पर भी पड़े।बाल्यावस्था में इन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया।एक बार इनके पिता इन्हें एक ज्योतिषी के पास ले गये और पूछा कि ये क्या बनेगा?ज्योतिषी से पहले ही ये बोल पड़े,मैं तो बाबा बनूँगा।बचपन से ही इनमें विरक्ति के लक्षण नजर आने लगे थे।समाज में व्याप्तअनास्था एवं धार्मिक मर्यादा के उल्लंघन को देखकर इन्हें बहुत कष्ट होता था।ये कई बार घर से चले गये;पर पिता जी इन्हें फिर ले आते थे।जब ये कुछ बड़े हुए,तो इनके पिता ने इनका विवाह कर दिया।पर इनकी रुचि गृहस्थी में नहीं थी।इनके पिता ने कहा कि एक सन्तान हो जाये,तब तुम घर छोड़ देना।कुछ समय बाद इनके घर में एक पुत्री ने जन्म लिया।अब इन्होंने संन्यास का मन बना लिया।इनकी पत्नी भी इनके मार्ग की बाधक नहीं बनी।इस प्रकार 19 वर्ष की अायु में इन्होंने घर छोड़ दिया।गृहत्याग कर उन्होंने अपने गुरु से वेदान्त की शिक्षा ली और फिर हिमालय के हिमाच्छादित पहाड़ों पर चले गये।वहाँ घोर तप करने के बाद इन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई.इसके बाद इन्होंने अपना शेष जीवन देश,धर्म और समाज की सेवा में अर्पित कर दिया। *ये शरीर पर कौपीन मात्र पहनते थे। भिक्षा के समय जो हाथ में आ जाये,वही स्वीकार कर उसमें ही सन्तोष करते थे।इससे ये"करपात्रीमहाराज" के नाम से प्रसिद्ध हो गये*.1930में मेरठ में इनकी भेंट स्वामी कृष्ण बोधाश्रम जी से हुई।वैचारिक समानता होने के कारण इसके बाद ये दोनों सन्त"एक प्राण दो देह"के समान आजीवन कार्य करते रहे।करपात्री जी महाराज का मत था कि संन्यासियों को समाज को दिशा देने हेतु सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भाग लेना चाहिए।अतःइन्होंने रामराज्य परिषद,धर्मवीर दल,धर्मसंघ, महिला संघ..आदि संस्थाएँ स्थापित की.धर्मसंघ महाविद्यालय में छात्रों को प्राचीन एवं परम्परागत परिपाटी से वेद,व्याकरण, ज्योतिष,न्याय शास्त्र, कर्मकाण्ड की शिक्षा दी जाती थी।सिद्धान्त,धर्म चर्चा, सनातन धर्म विजय जैसी पत्रिकाएँ तथा दिल्ली, काशी व कोलकाता से सन्मार्ग दैनिक उनकी प्रेरणा से प्रारम्भ हुए.1947से पूर्व स्वामी जी अंग्रेज शासन के विरोधी थे;तो आजादी के बाद कांग्रेस सरकार की हिन्दू धर्म विरोधी नीतियों का भी उन्होंने सदा विरोध किया।उनके विरोध के कारण शासन को‘हिन्दू कोड बिल’टुकड़ों में बाँटकर पारित करना पड़ा. *गोरक्षा हेतु 07नव.1966को दिल्ली में हुए विराट् प्रदर्शन में स्वामी जी ने भी लाठियाँ खाईं और जेल गये।इंद्रा गांधी इनके आशिर्वाद से प्र.मं. बनी।गौ रक्षा के वादे को भूल गोपालको,गौ भक्तों पर लाठियों की गोलियों की बरसात करवा दी।क्षुब्ध होकर करपात्री जी ने इंद्रा को श्राप दिया।कि गोपाष्मी को निर्दोष भक्तों को मरवाया तो अब तेरा और तेरी परिवार का सत्यानाश निश्चित है*।इन्द्रा,संजय,राजीव तीनों ही गोपाष्टमी को बेमौत गये।स्वामीजी ने शंकर सिद्धान्त समाधान;मार्क्सवाद और रामराज्य;विचार पीयूष; संघर्ष और शान्ति;ईश्वर साध्य और साधन;वेदार्थ पारिजात भाष्य;रामायण मीमाँसा;पूंजीवाद,समाजवाद व रामराज्य आदि ग्रन्थों की रचना की. *महान गोभक्त, विद्वान,धर्मरक्षक एवं शास्त्रार्थ महारथी स्वामी करपात्री जी का निधन 07फरवरी1982को हुआ.सादर वंदन.सादर नमन

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