8 Feb 08फर.1899का प्रेरक प्रसंग चाफेकर बंधुओं द्वारा देशद्रोही मुखबिरों का वध
*08फर.1899का प्रेरक प्रसंग चाफेकर बंधुओं द्वारा देशद्रोही मुखबिरों का वध*=
देश की स्वाधीनता हेतु जिस घर के सब सदस्य फांसी चढ़ गये,वह परिवार सदा के लिए पूज्य है। चाफेकर बन्धुओं का परिवार ऐसा ही था.1897 में पुणे में भयंकर प्लेग फैला।इस बीमारी को नष्ट करने के बहाने वहां का प्लेग कमिश्नर सर वाल्टर चार्ल्स रैण्ड मनमानी करने लगा।उसके अत्याचारों से पूरा नगर त्रस्त था।वह जूतों समेत रसोई,देवस्थान में घुस जाता।उसके अत्याचारों से मुक्ति हेतु चाफेकर बन्धु दामोदर एवं बालकृष्ण ने 22जून1897 को उसका वध कर दिया।
इस में उनके दो मित्र गणेश शंकर और रामचंद्र द्रविड़ भी शामिल थे।ये दोनों सगे भाई थे;जब पुलिस ने रैण्ड के हत्यारों के लिए20000 रु.इनाम की घोषणा की, तो इन दोनों ने मुखबिरी कर दामोदर हरि चाफेकर को पकड़वा दिया,जिसे- 18अप्रैल1898 को फांसी दे गयी।बालकृष्ण की तलाश में पुलिस निरपराध लोगों को परेशान करने लगी।यह देखकर उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
इनका तीसरा भाई वासुदेव भी था।वह समझ गया कि अब बालकृष्ण को भी फांसी होगी।उसका मन भी केसरिया बाना पहनने को मचलने लगा।मां से अपने बड़े भाइयों की तरह ही बलिपथ पर जाने की आज्ञा मांगी।वीर माता ने अश्रुपूरित नेत्रों से उसे छाती से लगा,सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख दिया।अब वासुदेव और उसके मित्र महादेव रानडे दोनों द्रविड़ बंधुओं को उनके पाप की सजा देने का निश्चय किया।द्रविड़ बन्धु पुरस्कार की राशि पाकर खाने-पीने में मस्त थे।" *8 फरवरी,1899*" को वासुदेव तथा महादेव पंजाबी वेश पहन रात में उनके घर पहुंचे।वे दोनों अपने मित्रों के साथ ताश खेल रहे थे।नीचे से ही वासुदेव ने पंजाबी लहजे में उर्दू में बोलते हुए कहा-तुम दोनों को बु्रइन साहब थाने में बुला रहे हैं।थाने से इन दोनों को बुलावा आता रहता था।उन्हें कोई शक नहीं हुआ।वे खेल समाप्त कर थाने की ओर चल दिये ।मार्ग में वासुदेव और महादेव उनकी प्रतीक्षा में थे।निकट आते ही उनकी पिस्तौलें गरज उठीं।गणेश की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गयी।रामचंद्र होस्पीटल जाकर मरा।दोनों को देशद्रोह का समुचित इनाम मिल गया।पुलिस ने जाल बिछा दोनों को पकड़ा। वासुदेव को तो अपने भाइयों को पकड़वाने वाले गद्दारों से बदला लेना था। उसके मन में कोई भय नहीं था।बालकृष्ण के साथ ही इन दोनों पर भी मुकदमा चला।कोर्ट ने वासुदेव, महादेव,बालकृष्ण की फांसी आठ,दस,बारह मई, 1899की तिथियां निश्चित कर दीं।आठ मई को प्रातः जब वासुदेव फांसी पर ले जा रहे थे,मार्ग में वह कोठरी भी पड़ती थी, जिसमें भाई बालकृष्ण बंद था।वासुदेव ने जोर से आवाज लगाई,‘‘भैया,अलविदा।मैं जा रहा हूं। ’’बालकृष्ण ने भी उतने ही जोर से कहा-‘‘हिम्मत से काम लेना।मैं शीघ्र ही आकर तुमसे मिलूंगा।’’
इस प्रकार तीनों चाफेकर बन्धु मातृभूमि की बलिवेदी पर चढ़ गये। इससे प्रेरित होकर 16 वर्षीय किशोर विनायक दामोदर सावरकर ने एक मार्मिक कविता लिखी।उसे पढ़कर सारी रात रोते रहे। सादर अभिनन्दन।👏
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