9 Feb जन्म दिवस= हिमालय के वरद पुत्र डा. नित्यानन्द


 जन्म दिवस= 

हिमालय के वरद पुत्र डा. नित्यानन्द== ========(09.02.1926)=======           09फर.1926को आगरा उ.प्र.में जन्मे डा.नित्यानंद ने हिमालय को सेवाकार्य हेतु अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया* आगरा में 1940में विभाग प्रचारक श्रीनरहरि नारायण ने उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ा;श्रीदीनदयालउपाध्याय की भेंट ने उनका जीवन बदल दिया।उन्होंने संघ के माध्यम से समाज सेवा का व्रत लिया.1944में आगरा से बी.ए.कर भाऊराव देवरस की प्रेरणा से प्रचारक बन आगरा व फिरोजाबाद में रहे।नौ वर्ष बाद फिर से पढ़ाई की -1954में भूगोल से प्रथम श्रेणी में एम.ए.किया।वे अध्यापक बने;पर विवाह नहीं किया,ताकिअधिकांश समय संघ को दे सकें.1960 में अलीगढ़ से भूगोल में ही पी-एच.डी.की.वे 1965-85 तक वे देहरादून के.D.B.S. कॉलिज में भूगोल के विभाग अध्यक्ष रहे।वहां हिमालय के दुर्गमस्थानों का गहनअध्ययन किया।पहाड़ीलोगों के जीवन निर्धनता,बेरोजगारी,युवकों का पलायन आदि समस्याओं ने उनके संवेदनशील मन को झकझोरा।आपातकाल में वे कारावास में रहे।उन्होंने कहीं कोई घर नहीं बनाया.फिर वे सेवानिवृत्त हो पहले आगरा, फिर देहरादून संघ कार्यालय पर रहे।उन पर जिले से लेकर प्रान्त कार्यवाह तक के दायित्व रहे।दिस.1969में लखनऊ में हुए उ.प्र.के 15,000स्वयंसेवकों के विशाल शिविर के वे मुख्य शिक्षक थे।संघस्थान के शारीरिक कार्यक्रमों की रगड़ से ही अच्छे कार्यकर्ता बनते हैं.20अक्टू.1991को हिमालय में विनाशकारी भूकम्प आया।सर्वाधिक हानि उत्तरकाशी में हुई। डा.नित्यानन्द जी ने संघ की योजना से वहां पुनर्निमाण कार्य किया।उत्तरकाशी से गंगोत्री मार्ग पर मनेरी ग्राम में"सेवा आश्रम"के नाम से इसका केन्द्र बनाया.माता जी के नाम से बने न्यास में वे स्वयं तथा उनके परिजन सहयोग करते।न्यास की ओर से 22लाख रु.खर्च कर मनेरी में छात्रावास बनाया।वहां गंगोत्री क्षेत्र के गांवों के छात्र मात्र भोजन शुल्क देकर कक्षा12तक की शिक्षा पाते हैं।वहां से ग्राम्य विकास, रोजगार,शिक्षा शराबबन्दी तथा कुरीति उन्मूलन के अनेक प्रकल्प भी चलाये जा रहे हैं।अपनी पेंशन से वे कई निर्धन व मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देते थे।जिन दिनों "उत्तराखंड आन्दोलन"को समर्थन देकर वामपन्थियों, नक्सलियों को आंदोलन से दूर किया।संघ के सक्रिय होते ही देशद्रोही भाग खड़े हुए।हिमाचल की तरह इस क्षेत्र को"उत्तरांचल"नाम भी उन्होंने ही दिया,जिसे फिर भा.ज.पा.शासन ने भी "उत्तराखंड"कर दिया।केन्द्र में अटल जी की सरकार बनने पर अलग राज्य बना; उन्होंने स्वयं को सेवा कार्य तक ही सीमित रखा।उत्तरकाशी की गंगा घाटी पहले"लाल घाटी"थी;अब वह "भगवा घाटी"है।उत्तरकाशी जिले की दूरस्थ तमसा(टौंस) घाटी में भी उन्होंने एक छात्रावास खोला।उत्तराखंड में आयी हर प्राकृतिकआपदा में वे सक्रिय रहे।देश की कई संस्थाओं ने सेवा कार्यों के लिए उन्हें सम्मानित किया ।इतिहास,भूगोल से कई पुस्तकें लिखीं।वृद्धावस्था में भी वे"सेवा आश्रम,मनेरी"में छात्रों के बीच या देहरादून के संघ कार्यालय पर ही रहते थे. *08जन.2016को देहरादून में उनका निधन हुआ.सादर वंदन.सादर नमन.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*

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