14 March जन्मदिवस वैदिक गणित के संन्यासी=प्रवक्ता जगद् गुरू शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थजी

जन्मदिवस  वैदिक गणित के संन्यासी=प्रवक्ता                             जगद् गुरू शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थजी

14.03.1884)

*आद्य शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक पीठ श्रीगोवर्धन पीठ (जगन्नाथपुरी)के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्य श्रीभारती कृष्णतीर्थजी का जन्म-14 मार्च1884को तिन्निवेलि(तमिलनाडु)में तहसीलदार श्री पी.नृसिंह शास्त्री के घर हुआ।बालक का नाम वेंकटरमन रखा* पूरा परिवार बहुत शिक्षित, प्रतिष्ठित था।वेंकटरमन के चाचा श्रीचंद्रशेखर शास्त्री महाराजा कालिज,विजय नगर में प्राचार्य थे।इनके परदादा श्री रंगनाथ शास्त्री मद्रास हाईकोर्ट में जज थे। स्वामी वेंकटरमन सदा कक्षा में प्रथमआते.गणित विज्ञान, समाजशास्त्र,भाषा शास्त्र में विशेष रुचि थी।धाराप्रवाह संस्कृत बोलने के कारण- 15वर्ष आयु में उन्हें मद्रास संस्कृतसंस्थान ने"सरस्वती" जैसी उच्च उपाधि से विभूषित किया.1903में उन्होंने अमरीकन कालिज ऑफ़ साइन्स,रोचेस्टर के मुम्बई केन्द्र से एम.ए.किया.1904में 20वर्ष की आयु में उन्होंने एक साथ सात विषयों (संस्कृत,दर्शन,अंग्रेजी,गणित,इतिहास,भौतिकी&खगोल) में एम.ए.उच्चतम सम्मान से पास कीं।यह कीर्तिमान आज तक अखंडित है।समाज सेवा की रुचि होने से गोपालकृष्ण गोखले के साथ राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन,द.अफ्रीका में भारतीयों की समस्याओं के लिए काम किया.1908 में वे राजमहेन्द्रि में नवीन कालिज के प्राचार्य बने;पर उनका तो रुझान अध्यात्म की ओर था.1911में वे शृंगेरी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य श्री नृसिंह भारती के पास मैसूर गये और आठ साल तक वेदान्त दर्शन का गहन अध्ययन किया।इसके साथ उन्होंने ध्यान,योग एवं ब्रह्म साधना का भी भरपूर अभ्यास किया।इस दौरान वे स्थानीय विद्यालयों&आश्रमों में संस्कृत एवं दर्शन शास्त्र भी पढ़ाते रहेे।अमलनेर के शंकर दर्शन संस्थान में शंकराचार्य दर्शन-पर दिये गये उनके-16भाषण बहुत प्रसिद्ध हैं।मुंबई,पुणे,खानदेश के कई महाविद्यालयों में उन्होंने कई व्याख्यान दिये. *04जुलाई1919को शारदा पीठ के शंकराचार्य त्रिविक्रम तीर्थजी ने उन्हें काशी में संन्यास की दीक्षा दे नाम भारती कृष्ण तीर्थ रखा.1921में उन्हें शारदा पीठ के शंकराचार्य पद पर विभूषित किया.1925 में जब गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री मधुसूदन तीर्थ का स्वास्थ्य खराब हो गया,तो उन्होंने इस पीठ का कार्यभार भी श्रीभारती को ही सौंप दिया.1953में नागपुर में‘विश्व पुनर्निमाण संघ’की स्थापना की* वे भारत से बाहर जाने वाले पहले शंकराचार्य थे.1958 में अमरीका,कैलिफोर्निया, ब्रिटेन देशों के रेडियो,चर्च दूरदर्शन,एवं महाविद्यालयों में उनके भाषण हुए. *स्वामी जी ने अथर्ववेद में छिपे गणित के-16सूत्र खोज निकाले,जिनसे विशाल गणनाएँ संगणक से भी जल्दी हो जाती हैं।उन्होंने इन पर16ग्रन्थलिखे,जो 1956 के अग्निकांड में जल गये।तब उनकी आंखें पूरी तरह खराब हो गई थीं;लेकिन उन्होंने स्मृति के आधार पर केवल डेढ़ माह में उन सूत्रों की संक्षिप्त व्याख्या कर नई पुस्तक "वैदिक गणित"लिखी,जो अब उपलब्ध है.उन्होंने धर्म,विज्ञान,विश्व शांति विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं.1959में उनका स्वास्थ्य बिगड़ा.02फर.1960को मुंबई में ही वे मोक्षधाम गये.सादर वंदन. सादर नमन


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