18 March 18मार्च1928दिवस प्रकाशन-तिथि दिवस स्वाधीनता का गौरवग्रन्थ “भारत में अंग्रेजी राज “
18मार्च1928दिवस
प्रकाशन-तिथि दिवस
स्वाधीनता का गौरवग्रन्थ
“भारत में अंग्रेजी राज “
भारत आजादी का श्रेय उन कुछ साहसी लेखकों को भी है,जिन्होंने प्राणों की चिन्ता किये बिना सत्य इतिहास लिखा।ऐसे ही एक लेखक पं. सुन्दरलाल,जिनकी पुस्तक "भारत में अंग्रेजी राज"ने सत्याग्रह या बम-गोली द्वारा अंग्रेजों से लड़ने वालों को सदा प्रेरणा दी.1857के स्वतन्त्रता संग्राम को दबाने के बाद अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा किया।"फूट डालो और राज करो"की नीति से उन्होंने बंगाल का विभाजन कर दिया।पंडित सुंदरलाल ने इस विद्वेष की जड़ तक पहुँचने हेतु सभी प्रामाणिक दस्तावेजों तथा इतिहास का गहन अध्ययन किया,तो कई तथ्य खुलते चले गये।फिर तीन साल तक क्रान्तिकारी बाबू नित्यानन्द चटर्जी के घर पर शान्त भाव से काम में लगे रहे *इसी साधना के फलस्वरूप 1,000 पृष्ठों का"भारत में अंग्रेजी राज"नामक ग्रन्थ तैयार हुआ*
इसकी विशेषता यह थी कि इसे सुंदरलाल जी ने स्वयं नहीं लिखा।वे बोलते,और प्रयाग के श्री विशम्भर पांडे इसे लिखते।इस तरह इसकी पांडुलिपि तैयार हुई.पर *इसका प्रकाशन आसान नहीं था।पं.जी भी जानते थे कि प्रकाशित होते ही शासन इसे जब्त कर लेगा।अतःउन्होंने इसे कई खंडों में बाँटकर अलग-अलग नगरों में छपवाया।तैयार खंडों को प्रयाग में जोड़ा गया।"अन्ततः18मार्च 1928"को पुस्तक प्रकाशित हो गयी*
पहला संस्करण 2,000 प्रतियों का था.1,700 प्रतियाँ तीन दिन के अन्दर ही ग्राहकों तक पहुँचा दी।और शेष300 प्रतियाँ डाक या रेल द्वारा भेजी जा रही थीं;इसी बीच अंग्रेजों ने 22 मार्च को प्रतिबन्धित घोषित कर इन्हें जब्त कर लिया।जो 1,700 पुस्तकें जा चुकी थीं,शासन ने उन्हें भी ढूँढा।पर उन्हें इसमें आंशिक सफलता ही मिली।इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध देश भर के नेताओं और समाचार पत्रों ने आवाज उठायी।गान्धी जी ने भी इसे पढ़करअपने पत्र"यंग इंडिया" में इसके पक्ष में लेख लिखा।सत्याग्रह करने वाले इसे जेल ले गये।वहाँ हजारों लोगों ने इसे पढ़ा।इस प्रकार पूरे देश में इसकी चर्चा हो गयी।उधर सुन्दरलालजी प्रतिबन्ध के विरुद्ध न्यायालय में गये।उनके वकील तेजबहादुर सप्रू ने तर्क दिया कि इसमें एक भी तथ्य असत्य नहीं है। सरकारी वकील ने कहा- यह अधिक खतरनाक है।इस पर सुन्दरलाल जी ने संयुक्त प्रान्त की सरकार को लिखा।गर्वनर शुरू में तो राजी नहीं हुए;पर 15नव.1937को उन्होंने प्रतिबन्ध हटा लिया। फिरअन्य प्रान्तों में भी इसपर प्रतिबन्ध हट गया।अब नये संस्करण की तैयारी की गयी. चर्चित होने से कई लोग इसे छापना चाहते थे;पर सुन्दरलाल जी ने कहा कि वे इसे वहीं छपवायेंगे,जहाँ से यह कम दाम में छपेगी।ओंकार प्रेस,प्रयाग ने इसे केवल सात रु.मूल्य में छापा।इस संस्करण के छपने से पहले ही 10,000प्रतियों के आदेश मिल गये. *भारत की स्वाधीनता के इस गौरव ग्रन्थ का तीसरा संस्करण 1960में भारत सरकार ने प्रकाशित किया.अब भी हर तीन- चार साल बाद इसका नया संस्करण प्रकाशित हो रहा है।खूब खूब वंदन.
Comments
Post a Comment