19 March पुण्यतिथि जीवतराम भगवानदास कृपलानी
पुण्यतिथि
जीवतराम भगवानदास कृपलानी
19.03.1982)
जन्म-:11नव.1888 और -मृत्यु-:19मार्च1982को) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे।उन्होंने एक शिक्षक के रूप में व्यावसायिक जीवन शुरू किया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से उनका निकट सम्पर्क था।वे"गुजरात विद्यापीठ"के प्राचार्य भी रहे,तभी से उन्हें "आचार्य कृपलानी"पुकारा जाने लगा था।हरिजन उद्धार के लिए कृपलानी जी निरंतर गाँधीजी के सहयोगी रहे।वे"अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस"के महामंत्री तथा वर्ष1946की मेरठ कांग्रेस केअध्यक्ष भी रहे।उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी भी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही।जे.बी. कृपलानी का जन्म11नव. 1888को हैदराबाद(सिंध) में हुआ।वे क्षत्रिय थे* पिता काका भगवान दास जी तहसीलदार के पद पर थे।कृपलानी जी की शिक्षा सिंध वे मुंबई के"विल्सन कॉलेज" में शुरू हुई।एम.ए.पुणे के "फ़र्ग्यूसन कॉलेज"से की. इसकीस्थापना तिलकजी ने की थी।कृपलानी जी ने एक शिक्षक के रूप में जीवन शुरू किया.1912-17तक वे बिहार मुजफ़्फ़रपुर कॉलेज में अंग्रेज़ी और इतिहास के प्रोफेसर रहे।जे.पी.कृपलानी और सुचेता मजूमदार की बनारस हिन्दूविश्वविद्यालय कहीं न कहीं उनके प्यार की धुरी बनी।गांधीजी के साथ काम करते हुए दोनों बहुत नजदीक आये,गांधीजी हैरान रह गए कि उन्हीं के आश्रम में उन दोनों का प्यार फला- फूला।कृपलानी आज़ादी से पहले लंबे समय तक कांग्रेस के महासचिव रहे.1947में वह इस पार्टी के अध्यक्ष थे।आज़ादी के बाद वे कांग्रेस विरोध और विपक्ष की राजनीति करने लगे।वे आजीवन ऐसा करते रहे। वहीं सुचेता बाद में कांग्रेस में मंत्री भी बनीं और मुख्यमंत्री भी।कृपलानी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसरबनकरआए,हालांकि वह यहां एक ही साल रहे, लेकिन वो एक साल ही उस विश्वविद्यालय पर उनका प्रभाव छोड़ने के लिए काफी था।इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के लिए नौकरी छोड़ दी।इसके कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विश्व- विद्यालय के इतिहास विभाग में सुचेता मजुमदार प्रोफेसर बनकर आईं।उनके कानों में अक्सर आचार्य कृपलानी की बातें सुनाई पड़ती थीं।खासकर उनके जीनियस टीचर होने की और फिर उनके गांधीजी के खास सहयोगी बन जाने की।उन्हीं दिनों कृपलानी जब कभी बनारस आते तो बीएचयू के इतिहास विभाग जरूर जाते। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुचेता से हुई,जिनमें एक प्रखरता भी थी और आज़ादी आंदोलन से जुड़ने की तीव्रता भी।कहा जा सकता है कि कृपलानी बंगाली युवती से प्रभावित हो गए।कुछ मुलाकातों के बाद सुचेता ने उनसे गांधीजी से जुड़ने की इच्छा जाहिर की तो कृपलानी ने इसमें मदद की।वह उन्हें राजनीति में आने से हतोत्साहित भी करते।उन्हें लगता था- महिलाओं को राजनीति में दामन साफ बचाकर रखना मुश्किल था/अत:उनसे लगातार कहते-अपना दामन साफ रखना।आचार्य कृपलानी उनके मार्गदर्शक और विश्वस्त बन गए।समय के साथ जब दोनों का काफी समय एक दूसरे के साथ बीतने लगा तो वो करीब आने लगे।दोनों जब एक दूसरे के प्यार में पड़े तो उन्हें कभी उम्र का लंबा फासला महसूस नहीं हुआ,लेकिन जब शादी करने की इच्छा अपने परिवारों के सामने जाहिर की तो उन्हें गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा।अप्रैल1936में सुचेता और आचार्य कृपलानी ने शादी कर ली।तब कृपलानी 48साल के,और सुचेता मात्र 28साल की थीं।बाद में हालात ऐसे बने कि दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए।एक कांग्रेस में तो दूसरा आजीवन कांग्रेस विरोध में ।बेशक दोनों पति-पत्नी थे पर उनमें दोस्ती का भाव ज्यादा था।सुचेता आज़ादी आंदोलन में शामिल उन तीन बांग्ला महिलाओं में थीं,जो उच्च शिक्षित थीं,पूरे जोर-शोर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया.तीनों ने ही अपना कार्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश को बनाया। तीनों ने धर्म जाति की परवाह नहीं करते हुए अपने जीवनसाथी चुने।आज़ादी बाद आचार्य कृपलानी ने जहां कांग्रेस से अलग अपनी किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और फिर राम मनोहर लोहिया के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई। सुचेता ने 1950में दिल्ली से लोकसभा चुनाव किसान मजदूर पार्टी से चुनाव जीता, फिर वे कांग्रेस में गईं और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं.1971तब तक कांग्रेस में रहीं.1971में राजनीति रिटायर के बाद आचार्य कृपलानी के साथ दिल्ली में रहने लगीं।पत्नी के नाते उन्होंने अपने पति का पूरा ख्याल रखा।गाँधीजी ने चम्पारन की प्रसिद्ध यात्रा की.तब जे.बी.कृपलानी संपर्क में आए.1919-20वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय'में भी रहे और गाँधीजी के "असहयोग आंदोलन"के समय वहाँ से हट गए।जे.बी. कृपलानी 1920-27 तक "गुजरात विद्यापीठ"के प्राचार्य रहे।वहीं वे"आचार्य़ कृपलानी"के नाम से प्रसिद्ध हुए.1927के बाद आचार्य कृपलानी का जीवन स्वाधीनता संग्राम और गाँधीजी के कार्यों को आगे बढ़ाने में ही बीता।खादी, ग्राम उद्योगों को पुर्न:जीवित करने हेतु उत्तर प्रदेश में "गाँधी आश्रम"संस्था की स्थापना की।हरिजनों के उद्धार हेतु गाँधीजी की देशव्यापी यात्रा में वे साथ रहे।देश,समाज सेवा की नि:स्वार्थ भावना ने उन्हें देश की जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया.1935-45तक कांग्रेस महासचिव के रूप में काम किया.1946की मेरठ कांग्रेस के वे अध्यक्ष रहे।फिर नेहरूजी से मतभेद होने से अध्यक्षता छोड़ दी और "किसान मज़दूर प्रजा पार्टी" बना विपक्ष में गए।वे लोक सभा के सदस्य भी रहे।जे.बी.कृपलानी ने सभी आंदोलनों में भाग लिया। जेल की सज़ाएँ भोगीं। *देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले आचार्य कृपलानी जी का19मार्च, 1982में निधन हुआ।सादर वंदन।नमन।
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