19 March पुण्यतिथि दिव्यांग क्रांतिवीर चारुचंद्र बोस


 पुण्यतिथि दिव्यांग क्रांतिवीर चारुचंद्र बोस 

19.03.19


बंगाल क्रांतिकारियों की नजर में अलीपुर का सरकारी वकील आशुतोष विश्वास बहुत समय से खटक रहा था।देशभक्तों को पकड़वाने, उन पर झूठे मुकदमे लादने, उन्हें कड़ी सजा दिलवाने में अपनी कानूनी बुद्धि काम में ले रहा था।ब्रिटिश शासन के लिए वह एक पुष्प था, जबकि क्रांतिकारी उस कांटे को शीघ्र ही अपने मार्ग से हटाना चाहते थेे।आशुतोष विश्वास यह जानता था कि क्रांतिकारी उसके पीछे पड़े हैं,अतःहर वक्त बहुत सचेत रहता।भीड़ से दूर ही रहता।वह रात में कभी अपने घर से नहीं निकलता।अनजान लोगों से नहीं मिलता।इधर युवा चारुचंद्र बोस था,जो आशुतोष को मजा चखाना चाहता था।वह जन्म से ही अपंग था।दाहिने हाथ में कलाई से आगे हथेली और उंगलियां नहीं थीं।दुबला- पतला होने से चलते वक्त लगता मानो गिर पड़ेगा। माता-पिता भी मर चुके थे। तो भी चारुचंद्र छापेखानों में काम कर पेट भर रहा था।उसे एक ही हाथ से काम करने की कला आ गई।उसके मन में देश के लिए कुछ करने की तड़प भी थी।उसे लगा कि आशुतोष को यमलोक पहुंचाकर वह देश की सेवा कर सकता है।उसने कहीं से पिस्तौल ली।जंगल में निशाने का अभ्यास करने लगा।आत्मविश्वास बढ़ता गया।अंततःउसने अपने संकल्प की पूर्ति का निश्चय कर लिया.10फर.1909को चारुचंद्र अलीपुर के कोर्ट में जा पहुंचा।आशुतोष विश्वास रोजाना की तरह आज भी कोर्ट से बाहर निकला, चारुचंद्र की पिस्तौल से निकली गोली उसके शरीर में घुस गयी।उसने देखा,पतला- दुबला चारुचंद्र उसके सामने था।'आशुतोषअरे बाप रे'कह वहां से भागा;पर चारुचंद्र ने एक ही छलांग में अपने शिकार को दबोच एक गोली दाग दी।आशुतोष विश्वास वहीं ढेर हो गया।चारुचंद्र ने बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लिया था।अपने विकलांग हाथ पर रस्सी से पिस्तौल को अच्छी तरह बांधकर वह बायें हाथ से उसका घोड़ा दबा रहा था। जब पुलिस ने उसे पकड़ा,तो झटके से स्वयं को छुड़ा उन पर गोली चला दी।उसका निशाना चूका।पुलिसकर्मियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

पुलिसकर्मियों ने डंडों,लातों, मुक्कों,से उसे बहुत मारा; उसके चेहरे पर तो मुस्कान थी।कोर्ट में हत्या का मुकदमा चला।उसने बचने का प्रयास नहीं किया ।स्थितप्रज्ञ की तरह वह सारी कार्यवाही को देखा,मानो वह अभियुक्त न हो कोई दर्शक हो। *कोर्ट ने उसे मृत्यु दंड दिया.19मार्च1909को अलीपुर सेंटर जेल में उसने विजयी भाव से फंदा स्वयं गले में डाल लिया।चेहरे पर आज भी मुस्कान तैर रही थी,उसने सिद्ध कर दिया कि विकलांगता शुभ संकल्पों को पूरा करने में कभी बाधक नहीं होती।

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