2 March जन्मदिवस=(02.03.1917)=राष्ट्रवादी इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक
जन्मदिवस=(02.03.1917)=राष्ट्रवादी इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक
श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक का जन्म-02मार्च1917को म.प्र.के इन्दौर नगर में श्री नागेश ओक,श्रीमती जानकी बाई के घर हुआ.* 1933में मैट्रिक,1937में बी.ए.,1939में एम.ए.और 1940में कानून परीक्षा विश्वविद्यालय मुम्बई से पास की.1939 में द्वितीय विश्व युद्ध समय श्री ओक खड़की स्थित सैन्य प्रतिष्ठान में भर्ती हुए,वहाँ आठ मास ट्रेनिंग बाद उन्हें सिंगापुर भेजा।वहाँ जापानियों द्वारा बन्दी बना लिये गये ।जब भारतीय सैनिकों ने जापान का सहयोग करने का निश्चय किया,तो सभी 60,000 बन्दियों को छोड़ा।श्री ओक सेगांव (वियतनाम)रेडियो से भारत की आजादी हेतु प्रचार करते रहे।फिर सुभाषचन्द्र बोस के निकट सहयोगी बने। आजादी बाद श्री ओक पत्रकारिता के क्षेत्र में उतरे.1947-53तक दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स एवं स्टेट्स मैन के संवाददाता रहे.1954 - 57तक उन्होंने सूचना, प्रसारण मन्त्रालय में प्रचार अधिकारी रहे.1959-74 तक दिल्ली के अमरीकी दूतावास सूचना सेवा में उप सम्पादक रहे।इन सब कामों के बीच श्री ओक अपनी रुचि के अनुकूल इतिहास विषयक लेखन करते रहे।श्री ओक का मत था कि भारत में जिन भवनों को मुगल कालीन निर्माण बताते हैं,वह सब भारतीय हिन्दू शासकों द्वारा निर्मित हैं।मुस्लिम शासकों ने उन पर कब्जा किया और कुछ फेरबदल कर उसे अपने नाम से प्रचारित किया।आजादी बाद भारत सरकार ने भी सच को सदा दबा कर रखा;पर श्री ओक ने ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये,जिन्हें आज तक कोई काट नहीं सका है।श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने दो पुस्तकें मराठी में लिखीं."हिन्दुस्थानाचे दुसरे स्वातन्त्रय युद्ध"तथा "नेताजीच्या सहवासाल". हिन्दी में भी हैं-भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें; विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय;कौन कहता है अकबर महान था;दिल्ली का लालकिला हिन्दू कोट है; लखनऊ के इमामबाड़े हिन्दू राजमहल हैं;फतेहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर।आगरा का लाल किला हिन्दू भवन है; भारत में मुस्लिम सुल्तान (भाग1व2);वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास(4भाग); ताजमहल मंदिर भवन है; ताजमहल तेजो महालय शिव मन्दिर है;ग्रेट ब्रिटेन हिन्दू देश था;आंग्ल भाषा (शब्दकोश)हास्यास्पद है; क्रिश्चियनिटी कृष्ण नीति है।ताजमहल का सच बताने वाली किताबें बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुईं।इतिहास श्री ओक का प्रिय विषय था।सरकारी सेवा से अवकाश लेने के बाद"इन्स्टीट्यूट फाॅर रिराइटिंग वर्ल्ड हिस्ट्री"नामक संस्था कीउन्होंने स्थापना की और उसके द्वारा नये शोध सामने लाते रहे।और उनके निष्कर्ष थे=ईसा से पूर्व सारी दुनिया में वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा का ही चलन था. *04दिस.2007 को पुणे में उनका देहान्त हुआ.सादर वंदन नमन.
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