20 March वीरगतिदिवस वीरता की प्रतिमूर्ति= अवन्तीबाई लोधी
वीरगतिदिवस
वीरता की प्रतिमूर्ति=
अवन्तीबाई लोधी
20.03.1858
मण्डला(म.प्र.)के रामगढ़ राज्य की रानी अवन्ती बाई ने राजा विक्रमजीत सिंह से कहा=स्वप्न में एक चील को आपका मुकुट ले जाते हुए देखा है।सो कोई संकट आने वाला है।राजा ने कहा, हाँ,वह संकट अंग्रेज है।पर मेरी रुचि पूजापाठ में है,सो तुम ही राज संभाल कर इस संकट से निबटो।रानी मन्त्रियों के साथ बैठी थी,तब लार्ड डलहौजी का दूत एक पत्र लेआया=राजा के विक्षिप्त होने से हम शासन की चलाने हेतु एक अंग्रेज अधिकारी नियुक्त करना चाहते हैं।रानी को सपने वाली चील याद आ गयी।उसने कहा=मेरे पति स्वस्थ हैं।मैं उनकी आज्ञा से तब तक काम देख रही हूँ, जब तक मेरे बेटे अमान सिंह और शेरसिंह बड़े नहीं हो जाते।अतःरामगढ़ को अंग्रेज अधिकारी की कोई जरूरत नहीं है।पर डलहौजी तो राज्य हड़पना चाहता था।उसने अंग्रेज अधिकारी नियुक्त कर दिया।इधर राजा का देहान्त हो गया।रानी ने पूरा काम सँभाल लिया।देर- सबेर अंग्रेजों से मुकाबला होगा ही,अतःउसने आसपास के देशभक्त सामन्तों तथा रजवाड़ों से सम्पर्क किया ।कई उनका साथ देने को तैयार हो गये।यह 1857 का काल था।नाना साहब पेशवा के नेतृत्व में अंग्रेजों को बाहर करने हेतु संघर्ष की तैयारी हो रही थी।रामगढ़ में भी क्रान्ति का प्रतीक लाल कमल और रोटी घर-घर घूम रही थी।रानी ने इसमें अपनी आहुति देने का निश्चय किया।तब सेनापति वाशिंगटन ने हमला बोल दिया।रानी ने खैरी गाँव के पास वाशिंगटन को घेरा, रानी के कौशल से अंग्रेजों के पाँव उखड़ने लगे।वाशिंगटन रानी को पकड़ने हेतु रानी के पास आ गया।रानी ने तलवार के भरपूर वार से घोड़े की गरदन उड़ा दी.वाशिंगटन नीचे गिरा और प्राणों की भीख माँगी।रानी ने उसे छोड़ दिया।पर1858में अधिक सेना और रसद के साथ फिर रामगढ़ आ धमका।उसने किले को घेरा,तीन महीने तक भी वह किले में नहीं जा सका।किले में रसद समाप्त हो रही थी।अतःरानी विश्वास पात्र सैनिकों के साथ किले के गुप्तद्वार से बाहर निकली, उधर किले के द्वार खोल भारतीय सैनिक अंग्रेजों पर टूट पड़े;वाशिंगटन को रानी के भागने की सूचना मिल गयी।वह एक टुकड़ी लेकर पीछे दौड़ा।देवहारगढ़ के जंगल में दोनों की मुठभेड़ हुई। *20मार्च1858का दिन था।रानी रणचण्डी बन शत्रुओं पर टूट पड़ी ।एक फिरंगी के वार से रानी का दाहिना हाथ कट गया।तलवार छूट गयी।रानी समझ गयी कि अब मृत्यु निकट है।एक झटके से कमर से कटार निकाली, सीने में घोंप कर बलिदान हुई.सादर वंदन.सादर नमन
Comments
Post a Comment