25 Feb Palkhed Sangram


 https://youtu.be/devKSpRkeZ8





*🕉🕉🕉🕉🕉हरदिनपावन=== आजकादिनविशेष=============   ====इतिहासस्मृतिदिवस========           ==पालखेड़(कर्णाटक)का ऐतिहासिक संग्राम====================*
‘ए कन्साइस हिस्ट्री ऑफ़ वारफेयर’में  विश्व के सात प्रमुख युद्धों की चर्चा की है।इसमें एक युद्ध पालखेड़ (कर्नाटक)का है।जिसमें- 27वर्षीय बाजीराव पेशवा (प्रथम)ने संख्या व शक्ति में अपने से दुगनी से भी अधिक निजाम हैदराबाद की सेना को हराया था.बाजीराव (प्रथम)शिवाजी के पौत्र छत्रपति शाहूजी के पेशवा (प्रधानमंत्री)थे।उनकेपिताश्री बालाजी विश्वनाथ पेशवा की असामयिक मृत्यु बाद-20 वर्ष की आयु बाजीराव को पेशवा बना दिया।बाजीराव का देहांत भी केवल40वर्ष  की अल्पायु में ही हुआ; पेशवा बनने के बाद उन्होंने जितने भी युद्ध लड़े,किसी में भी उन्हें हार नहीं मिली। *औरंगाबाद के पश्चिम तथा वैजापुर के पूर्व में स्थित पालखेड़ गांव में-25फर.1728को यह युद्ध हुआ.* पालखेड़ छोटी- बड़ी पहाड़ियों से घिरा है। निजाम के पास विशाल तोपखाना था;बाजीराव के पास एक ही दिन में-75 कि.मी.तक चलकर धावा बोलने वाली घुड़सवारों की विश्वस्त टोली थी।जिस प्रकार शिकारी चतुराई से शिकार को चारों ओर से घेरकर अपने कब्जे में लेता है.बाजीराव ने भी निजाम सैन्य शक्ति तथा पालखेड़ की भौगोलिक स्थिति का गहन अध्ययन किया।निजाम की सेना के प्रस्थान का समाचार मिला,वह बेटावद में था।उसने कासारबारी की पहाड़ियों से होकर औरंगाबाद जाने का नाटक किया।इससे निजाम की सेना भ्रम में पड़ गयी.परबाजीराव ने रास्ता बदल दक्षिण का मार्ग लिया और पालखेड़ की पहाड़ियों में डेरा डाला.फिर रणनीति बना धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की। निजामी सेना को मैदान में आने को मजबूर किया।निजाम के पास तोपों को विशाल बेड़ा था;घाटी संकरी होने के कारण वे तोपें यहां नहीं आ सकीं।सो जितनी नीजामी सेना घाटी में आई,बाजीराव ने उसे चारों ओर से घेर उसकी रसद पानी बंद कर दी।सैनिक और उनके घोड़े भोजन पानी के अभाव में मरने लगे।यह हालत देखकर निजाम घबरा गया।उसे घुटनों के बल झुक संधि करनी पड़ी.06मार्च 1728को हुई यह संधि "शेवगांव की संधि"के नाम से प्रसिद्ध है।संधि पूर्व बाजीराव ने बतौर जमानत निजाम के दो प्रमुख कर्मचारियों को अपने पास बंदी रखा।संधि के अनुसार अक्कलकोट, खेड,तलेगांव,बारामती, इंदापुर,पूना,नारायणगढ़ आदि वे सब फिर से मराठों के अधिकार में आ गये।इसी प्रकार दक्खिन के सरदेश मुखी की सनद व स्वराज्य की सनद भी निजाम ने इस संधि के अनुसार मराठों को सौंप दी।पर छत्रपति शाहू जी कमजोर दिल के राजा, प्रशासक थे।वे बाजीराव जैसे अजेय सेनापति के होते हुए भी मुसलमानों से मिलकर ही चलना चाहते थे।उन्होंने बाजीराव को संदेश भेजा कि निजाम को समूल नष्ट न किया जाए,उसका अत्यधिक अपमान भी न करें। *और फिर फलस्वरूप-1818में पेशवाई समाप्त हुई;अंग्रेजों की मदद से निजाम फिर शक्तिशाली हो गया।देश आजादी बाद गृहमंत्री सरदार पटेल के साहसी कदम से-1948में ही उसका पराभव हुआ। सादर वंदन.सादर अभिनन्दन.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*




Comments

Popular posts from this blog

13 Feb मुग़ल आक्रमण के प्रतिकारक महाराजा सूरजमल जाट जन्म दिवस –

18 Feb पुण्यतिथि -पंडित रामदहिन ओझा

30 Jan कृष्ठरोग निवारण दिन