28 Feb जन्मदिवस भक्तिआंदोलन के उन्नायक सन्त दादू


जन्मदिवस भक्तिआंदोलन के उन्नायक सन्त दादू=(28.02.1601)======                                                 संत दादू का जन्म गुजरात कर्णावती(अमदाबाद)में- 28फर.1601(फाल्गुन पूर्णिमा-होली)को हुआ।* किसी कारणवश माता ने नवजात शिशु को लकड़ी की एक पेटी में बन्द करके उसे साबरमती नदी में डाल दिया. लोदीराम नागर ब्राह्मण ने उस पेटी को देखा-बालक को अपने घर ले आया।बालक में बालसुलभ चंचलता के स्थान पर प्राणिमात्र हेतु करुणा, दया भरी थी।इसी से सब लोग इन्हें दादू दयाल कहने लगे।विवाहोपरान्त दो पुत्र,दो पुत्रियों का जन्म हुआ।फिर इनका मन घर-गृहस्थी से उचटा।जयपुर के पास रहने लगे.सत्संग साधुसेवा में लग गये।घर वाले इन्हें वापस ले गये।दादू काम हेतु रुई धुनने लगे।साथ ही भजन साधना भी चलती।धीरे-धीरे प्रसिद्धि फैलने लगी।हिन्दू ही नहीं, अनेक मुस्लिम भी उनके शिष्य बन गये।यह देख एक काजी ने इन्हें सजादण्ड देना चाहा;तो वो काजी ही मर गया।लोग इन्हेंअलौकिक पुरुष मानने लगे।दादू धर्म पाखण्ड के बहुत विरोधी थे।कबीर की भाँति दादू भी पण्डितों और मौलवियों को खरी-खरी सुनाते थे।उनका कहना था-प्रभु की प्राप्ति हेतु कपड़े रंगने,घर छोड़ने की जरूरत नहीं है।वे निराकार भगवान् की पूजा करने तथा सद्गुणों को अपनाने का आग्रह करते।उनके विचारों को लोगों ने"दादू पन्थ"का नाम दिया।और.मुस्लिम अनुयायियों को‘नागी’ कहा जाता।हिन्दुओं में वैष्णव, विरक्त,नागा,साधु नामक चार श्रेणियाँ थीं।दादू की शिक्षाओं को वाणी कहा जाता।वे कहते थे=======                                           *==दादू कोई दौड़े द्वारका, कोई कासी जाहि,कोई मथुरा को चले,साहिब घर ही माहि.==*

*जीव हिंसा का विरोध करते हुए दादू कहते हैं- कोई काहू जीव की,करै आतमा घात,साँच कहूँ सन्सा नहीं,सो प्राणी दोजख जात।।*

दादू दयाल जी कबीर, नानक,तुलसी सन्तों के समकालीन थे *जयपुर से 61KM.दूर स्थित"नरेना" उनका प्रमुख तीर्थ है*।यहाँ इस पन्थ के स्वर्णिम और गरिमामय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।यहाँ के संग्रहालय में दादू महाराज के साथ- साथ गरीबदास जी की वाणी,अन्य सन्तों के हस्तलिखित ग्रन्थ,चित्र कारी नक्काशी,रथ,पालकी,बग्घी, हाथियों के हौदे और दादू की खड़ाऊँ आदि संग्रहित हैं।यहाँ मुख्य उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को होता है।तब लाखों लोग आते हैं,बिना किसी भेदभाव के एक पंगत में भोजन करते हैं।

*निर्गुण भक्ति द्वारा समाज को दिशा देने वाले श्रेष्ठ समाज सुधारक और परम सन्त दादू दयाल साठ वर्ष में-1660में परम धाम गये. सादर वंदन सादर नमन

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