28 Feb =पुण्यतिथि=आत्मविश्वास के धनी भारत के पहले राष्ट्रपति=डा०राजेन्द्र प्रसाद
=पुण्यतिथि=आत्मविश्वास के धनी भारत के पहले राष्ट्रपति=डा०राजेन्द्र प्रसाद=
(28.02.1963)=
बिहार विद्यालय में परीक्षा बाद कक्षाध्यापक सबको रिजल्ट सुना रहे थे।छात्र राजेन्द्र का नाम उत्तीर्ण छात्रों की सूची में नहीं आया,तो वह बोला-गुरुजी,आपने मेरा नाम पढ़ा नहीं।गुरूजी ने कहा-तुम्हारा नाम नहीं है,तुम फेल हो गये हो।गुरूजी को मालूम था कि यह छात्र कई महीने मलेरिया बुखार होने से विद्यालय भी नहीं आया,तो फेल हो जाना स्वाभाविक था ।पर छात्र हिम्मत से बोला- नहीं गुरुजी,आप सूची को दुबारा देखें।मेरा नाम जरूर होगा।गुरूजी ने कहा-नहीं राजेन्द्र,तुम्हारा नाम सूची में नहीं है।तुम इस बार फेल हो गये हो।राजेन्द्र ने फिर कहा- मैं फेल नहीं हो सकता।गुरूजी गुस्से हो बोले-बको मत,अगले वर्ष और परिश्रम करो।राजेन्द्र चुप नहीं हुआ- नहीं गुरुजी,आप सूची एक बार फिर जाँच लें।मेरा नाम अवश्य होगा.गुरूजी ने कहा चुप हो जाओ,नही तो मैं तुम पर जुर्माना कर दूँगा।छात्र अड़ा रहा।अतःगुरूजी ने एक रु.जुर्माना कर दिया।पर राजेन्द्र कहता रहा-मैं फेल नहीं हो सकता।गुरूजी ने जुर्माना दो रु.किया।धीरे-धीरे जुर्माने की राशि पाँच रु.हो गयी।उन दिनों पाँच रु.की कीमत बहुत थी।सरकारी अध्यापकों के वेतन भी 15-20 रु.ही होता था। आत्मविश्वासी छात्र चुप नहीं रहा।तभी एक चपरासी दौड़ता हुआ कोई कागज लेकर आया।जब वह कागज गुरूजी ने देखा,तो वे चकित रह गये।परीक्षा में सर्वाधिक अंक उस छात्र ने ही पाये थे।उसका अंकपत्र भूल से प्राचार्य जी के कमरे में ही रह गया।अब तो गुरूजी ने उस छात्र की पीठ थपथपाई।सब छात्रों ने भी ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया।यही बालक आगे चलकर भारत का पहला राष्ट्रपति बना. *उनका जन्म ग्राम जीरादेई (जिला छपरा, बिहार)में 03दिस.1884 को श्रीमहादेव सहाय के घर में हुआ* मेधावी राजेन्द्र बाबू ने कानून की परीक्षा उत्तीर्णकर कुछ समय वकालत की;पर 33वर्ष की आयु में गांधी जी के आह्वान पर वे वकालत छोड़ देश की आजादी हेतु चम्पारण आन्दोलन में कूद पड़े। *सादा जीवन,उच्च विचार के धनी डा.राजेन्द्र प्रसाद को‘भारत रत्न’से विभूषित किया गया। सोमनाथ मंदिर नव निर्माण आपके कर कमलो से सआनंद (श्रद्धैय सरदार पटेलजी के अथक प्रयास से)सम्पन्न हुआ.राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद वे दिल्ली के सरकारी आवास की बजाय पटना में अपने निजी आवास ‘सदाकत आश्रम’में ही जाकर रहे. 28फरवरी1963को वहीं उनका देहान्त हुआ.उनके जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश में "अधिवक्ता दिवस" के रूप में मनाया जाता है. राष्ट्रपति के नाते वे प्र.म. नेहरूजी के विरोध बाद भी सोमनाथ मन्दिर की पुनर्प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए।सादर वंदन. सादर नमन
Comments
Post a Comment