3 March जन्मदिवस सिद्धांतप्रिय प्रचारक श्री कश्मीरी लाल जी


 जन्मदिवस सिद्धांतप्रिय प्रचारक 

श्री कश्मीरी लाल जी 

03.03.1940

कश्मीरी लाल जी का जन्म तीन मार्च1940को भारत के झंग क्षेत्र के शेरकोट नगर में श्रीमती धर्मबाई की गोद में हुआ* 1947में देश विभाजन के बाद पिता श्री रामलाल सिंधवानी दिल्ली नजफगढ़ में आकर बस गये।यहां वे प्रापर्टी सम्बंधी कारोबार करते थे।धार्मिक, सामाजिक प्रवृत्ति थे।पिता एवं बड़े भाई सनातन धर्म सभा के प्रधान रहे।इसका प्रभाव कश्मीरी लाल जी पर भी पड़ा।वे कक्षा 11तक नजफगढ़ में पढ़े।फिर वे रोहतक आ गये।यहां वैश्य कॉलिज से बी.ए.करके फिर 1965में बी.एड.कर रोहतक में ही पढ़ाने लगे।वे रोहतक नगर के सांय कार्यवाह भी रह. *उन्होंने1960,64,67 में संघ का प्रथम,द्वितीय, तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लिया* फिर अच्छी खासी नौकरी पर लात मार दी।संघ के प्रचारक बन देश,धर्म और समाज की सेवा में लग गये।प्रचारक के नाते वे रिवाड़ी, सोनीपत,गुरुग्राम,कुरुक्षेत्र, रोहतक में तहसील प्रचारक से लेकर विभाग प्रचारक तक रहे।फिर वे हरियाणा के सेवा प्रमुख,फिर प्रचारक प्रमुख रहे।उनके समय सेवाकार्यों का सघन जाल पूरे राज्य में फैला।स्वयं निर्धन बस्तियों में जाकर प्रेमपूर्वक लोगों से मिलते।वहीं चाय,नाश्ता, भोजन भी करते. *हरियाणा में सैकड़ों सेवाप्रकल्प शुरू हो गये।इनमें घुमन्तु जनजातियों के गाड़िया लुहारों के बीच हुए काम विशेष उल्लेखनीय हैं* इससे उनके बच्चे शिक्षित हुए और वे सब लोग समाज की मुख्य धारा में शामिल हुए।कश्मीरी लाल जी का जीवन सादगीपूर्ण था।बातचीत में हास्य  रहता था।वे अपने प्रति कठोर,पर दूसरों के प्रति नरम रहते थे।सब उन्हें"ताऊ जी"कहते थे। *अन्य कई कामों के साथ उन पर'राष्ट्रसेविकासमिति' की देखभाल का काम भी था।समिति में प्राय:प्राय: बालिकाएं काम करती हैं; शादी बाद ससुराल जाने से उनकी शाखा बंद हो जाती थी।सो उन्होंने लड़कियों के साथ ही विवाह के बाद संघ परिवार में आयी बहुओं पर ध्यान केन्द्रित किया।इससे समिति की सैकड़ों शाखाएं स्थायी हो गयीं।* वे बहुत व्यावहारिक, सिद्धांतवादी थे।जब उनके भतीजे के पुत्र का दिल्ली में विवाह हुआ,तो वे इस बात पर अड़े कि शादी में शराब का सेवन नहीं होगा।परिवार वाले इससे सहमत नहीं थे।तब वे अपना सामान उठा  वापस रोहतक आ गये।इधर रोहतक में भी बहुत सारे कई कार्यकर्ताओं को शादी का निमंत्रण दिया था।वे लोग कार्यालय पर उन्हें वहां देख हैरान हुए उन्होंने पुरी बात बता उन्हें मिठाई खिला विदा किया।काफी समय तक केंद्र रोहतक रहा।बड़ी आयु में वहीं संघ कार्यालय पर ही रहने लगे।तब भी सेवा भारती संरक्षक एवं प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य की जिम्मेदारी रही।दोनों फेफड़े खराब होने से उन्हें सांस लेने में कष्ट होता था।फिर भी वे सबसे उनके सुख-दुख पूछते थे।प्रचारकों से कार्यक्षेत्र की जानकारी लेते रहते थे।फोन से वे सैकड़ों लोगों से संपर्क रखते थे।बीमारी में भी वे कार्यकर्ताओं की संभाल करते रहे. *30अप्रैल2018 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन रोहतक में लोगों से बात करते हुए अचानक शांत हो गये।उनके नेत्रदान कर दिये. गये.उन्होंने 51वर्ष प्रचारक जीवन में एक आदर्श सेवाभावी कार्यकर्ता का उदाहरण प्रस्तुत किया.सादर वंदन.सादर नमन

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