3 March पुण्यतिथि स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदयाल
पुण्यतिथि स्वतन्त्रता सेनानी लाला हरदयाल== 03.03.1939
क्रान्तिकारी लाला का 14 अक्टू.1884को दिल्ली में जन्म हुआ* पितागौरादयाल माता श्रीमती भोलीरानी थीं। सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में पास कीं।बी.ए.में पूरे प्रदेश में द्वितीय स्थान प्राप्त किया.1905में शासकीय छात्रवृत्ति ले वे आॅक्सफोर्ड पढ़ने गये।तब लन्दन में श्यामजी कृष्ण वर्मा का‘ 'इंडिया हाउस'भारतीय छात्रों का मिलन केन्द्र था।बंग-भंग के आन्दोलन समय अंग्रेजों ने जो अत्याचार किये,उन्हें सुन हरदयाल बेचैन हो उठे।पढ़ाई अधूरी छोड़,लन्दन आकर वर्मा जी के "सोशियोलोजिस्ट"मासिक पत्र में स्वतन्त्रता के पक्ष में लेख लिखने लगे।उनका मन तो भारत आने को छटपटा रहा था।विवाहित थे,उनकी पत्नी सुन्दररानी भी उनके साथ विदेश थी।भारत लौट 23वर्षीय हरदयाल जी ने अपनी गर्भवती पत्नी से सदा के लिए विदा ले ली।पूरा समय स्वतन्त्रता प्राप्ति में लगाने लगे।वे सरकारी विद्यालयों एवं न्यायालयों के बहिष्कार तथा स्वभाषा और स्वदेशी के प्रचार पर जोर देते थे।पुलिस एवं प्रशासन उन्हें अपनी आँख का काँटा समझने लगे।जिन दिनों वे पंजाब के अकाल पीडि़तों की सेवा में लगे थे,तब शासन ने उनके विरुद्ध वारण्ट जारी किया।लाला लाजपतराय जी को यह पता लगा,तो हरदयाल जी को भारत छोड़ने का आदेश दिया।वे फ्रान्स चले आये।फ्रान्स में उन दिनों मादाम कामा, श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा सरदार सिंह राणा भारत क्रान्तिकारी गतिविधियों को हर प्रकार से सहयोग देते थे।उन्होंने हरदयाल जी को सम्पादक बना इटली के जेनेवा शहर से"वन्देमातरम्" नामक अखबार निकाला।इसने विदेशों में बसेभारतीयों में आजादी की अलख जगाने में बड़ी भूमिका निभायी.1910में सेनफ्रान्सिस्को में अध्यापक बने।दो साल बाद स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत तथा हिन्दू दर्शन के प्राध्यापक बने।मुख्य ध्येय क्रान्तिकारियों के लिए धन एवं शस्त्र की व्यवस्था करना था.23 दिस.1912को लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली में बम फेंका।उसमें हरदयाल भी पकड़े गये।वे जमानत पर जर्मनी,स्विटजरलैंड,फिर स्वीडर चले गये.1927में लन्दन आकर उन्होंने हिन्दुत्व पर एक ग्रन्थ की रचना की।
अंग्रेज जानते थे कि-भारत की अनेक क्रान्तिकारी घटनाओं के सूत्र उनसे जुड़ते हैं;पर वे उनके हाथ नहीं आ रहे थे.1938में शासन ने उन्हें भारत आने की अनुमति दी;हरदयाल जी इस षड्यन्त्र को समझ गये वे नहीं आये. *अंग्रेजों ने उन्हें वहीं धोखे से जहर दिया,जिससे तीन मार्च1939को उनका फिलाडेल्फिया में देहान्त हुआ.आजादी की अधूरी इच्छा लिये इस क्रान्तिवीर ने विदेश में ही प्राण त्यागे।वे उस प्रिय पुत्री का मुँह कभी नहीं देख पाये, जिसका जन्म उनके घर छोड़ने के बाद हुआ था। सादर वंदन.सादर
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