31 March जन्मदिवस 31.03.1504 सेवासमर्पण के साधकगुरुअंगददेव


 जन्मदिवस

31.03.1504

सेवासमर्पण के साधकगुरुअंगददेव                                सिख पन्थ के दूसरे गुरु अंगददेव जी का जन्म हिंदू-वर्ष-वि.सं1561माह-चैत्रशुक्लाप्रथमा,गुड़ीपड़वा,प्रतिपदा को(आंग्ल दि.31.03.1504)यानि हिन्दू नव वर्ष के दिन हुआ. अंगद देव जी का असली नाम"लहणा"था.* वे उन सब परीक्षाओं में सफल रहे, जिनमें गुरु नानक के पुत्र और अन्य दावेदार विफल हो गये थे।गुरु नानक ने उनकी पहली परीक्षा कीचड़ से लथपथ घास की गठरी सिर पर रखवा कर ली।फिर गुरु जी ने उन्हें धर्मशाला से मरी हुई चुहिया उठाकर बाहर फेंकने को कहा।उस समय इस प्रकार का काम शूद्रों का माना जाता था।तीसरी बार मैले के ढेर में से कटोरा निकालने को कहा।गुरु नानक के दोनों पुत्र इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हुए।इसी तरह गुरु जी ने लहणा को सर्दी की रात में धर्मशाला की टूटी दीवार बनाने को कहा।वर्षा और तेज हवा के बावजूद उन्होंने दीवार बना दी।गुरुजी ने एक बार उन्हें रात को कपड़े धोने को कहा,तो घोर सर्दी में रावी नदी पर जाकर उन्होंने कपड़े धो डाले।एक बार उन्हें शमशान में मुर्दा खाने को कहा,तो वे तैयार हो गये।इस पर गुरु जी ने उन्हें गले लगा कर कहा=आज से तुम मेरे अंग हुए।तभी से उनका नाम अंगददेव हो गया।गुरु अंगद देव का जन्म मुक्तसर,पंजाब में ‘मत्ते दी सराँ’ नामक स्थान पर चैत्र शुक्ल एकम.प्रतिपदा के हिंदू नव वर्ष को हुआ. पिता फेरुमल और माता दयाकौर थे.15वर्ष की आयु में लहणा का विवाह संघर (खडूर)के साहूकार देवीचन्द की पुत्री बीबी खीबी से हुआ ।दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं.1526में पिता की मृत्यु के बाद दुकान का भार पूरी तरह लहणा पर आ गया।अध्यात्म के प्रति रुचि होने के कारण एक दिन लहणा ने भाई जोधा के मुख से गुरु नानक की वाणी सुनी।वे इससे बहुत प्रभावित हुए।उनके मन में गुरु नानक के दर्शन की प्यास जाग गयी।वे करतारपुर जाकर गुरु जी से मिले।सात वर्ष तक गुरु नानक के साथ रहने के बाद उन्होंने गुरु गद्दी सँभाली।वे इस पर सितम्बर,1539से मार्च,1552तक आसीन रहे।उन्होने खडूर साहिब को धर्म प्रचार का केन्द्र बनाया। सिख पन्थ के इतिहास में गुरु अंगददेव का विशिष्ट स्थान है।उन्होंने अपने पूर्ववर्ती गुरु नानक की वाणी और उनकी जीवनी को लिखा।उन दिनों हिन्दुओं में ऊँच-नीच,छुआछूत और जाति-पाँति के भेद बहुत अत्यधिक थे।गुरु अंगददेव ने लंगर की प्रथा चलाई,जिसमें सब एक साथ पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। मुस्लिम आक्रमणों से टक्कर लेने के लिए गुरु अंगददेव ने गाँव-गाँव में अखाड़े खोलकर युवकों की टोलियाँ तैयार कीं।उन्होंने गुरुमुखी लिपि का निर्माण कर पंजाबी भाषा को समृद्ध किया। *उन्होंने बाबाअमरदास को अपनाउत्तराधिकारीबनाया।सेवा और समर्पण के अनुपम साधक"गुरुअंगद देव-28/29मार्च,1552" को इस दुनिया से प्रयाण कर गये.सादर वंदन.

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