6 March बलिदानदिवस धर्मवीर पं.लेखराम


 ६ मार्च 

बलिदानदिवस धर्मवीर पं.लेखराम= 06.03.1897)=======                                       धर्मवीर पं.लेखराम का जन्म ग्राम सैयदपुर (तहसील चकवाल,जिला झेलम,पंजाब)में मेहता तारासिंह के घर.चैत्रअष्टमी वि.सं.1915को हुआ.* प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू एवं फारसी में हुई;क्योंकि उस समय राजकाज एवं शिक्षा की भाषा यही थी.17वर्ष की आयु में पुलिस में भर्ती हुए।फिर उनका झुकाव आर्य समाज की ओर हुआ।एक माह की छुट्टी ले ऋषि दयानन्द जी से मिलने अजमेर गये।वहाँ सभी जिज्ञासाएँ शान्त हुईं।लौटकर पेशावर में आर्य समाज की स्थापना की,और धर्म-प्रचार में लग गये।धीरे-धीरे वे"आर्य मुसाफिर"के नाम से प्रसिद्ध हुए।पं.लेखराम ने"धर्मोपदेश" नामक एक उर्दू मासिक पत्र निकाला.कुछ समय में ही वह प्रसिद्ध हो गया।उन दिनों पंजाब में अहमदिया नामक एक नया मुस्लिम सम्प्रदाय फैल रहा था।इसकेसंस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद स्वयं को पैगम्बर बताते थे।पं.लेखराम ने अपने पत्र में इनकी सच्चाई जनता के सम्मुख रखी।इस बारे में अनेक पुस्तकें भी लिखीं।इससे मुसलमान उनके विरुद्ध हो गये।महर्षि दयानन्द जी के देहान्त बाद पं.लेखराम को लगा कि सरकारी नौकरी और धर्म प्रचार साथ नहीं चलेंगे तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी।जब पंजाब में आर्य प्रतिनिधि सभा का गठन हुआ,तो वे उसके उपदेशक बने।अबउन्हें अनेक स्थानों पर प्रवास करने तथा पूरे पंजाब को अपने शिकंजे में जकड़ रहे इस्लाम को समझने का अवसर मिला।वे एक श्रेष्ठ लेखक भी थे।आर्य प्रतिनिधि सभा ने ऋषि दयानन्द के जीवन पर एक विस्तृत एवं प्रामाणिक ग्रन्थ तैयार करने की योजना बनायी।यह दायित्व उन्हें दिया।उन्होंने देश भर में भ्रमण कर कई भाषाओं में प्रकाशित सामग्री एकत्रित की।फिर वे लाहौर में बैठकर ग्रन्थ को लिखना चाहते थे;पर दुर्भाग्यवश यह कार्य पूरा नहीं हुआ।पं.लेखराम की यह विशेषता थी कि लोकों को जहां उनकी जरूरत लगे,वे कष्ट सहकर भी वहाँ पहुँच जाते।जब उन्हें पता लगा कि पटियाला के पायल गाँव का एक व्यक्ति हिन्दू धर्म छोड़ रहा है।वे तुरन्त रेल में बैठ उधर चल दिये;पर जिस गाड़ी में वह बैठे,वह पायल नहीं रुकती थी।पर जैसे ही पायल स्टेशन आया, लेखराम जी गाड़ी से कूद पड़े।उन्हें बहुत चोट आयी।जब उस व्यक्ति ने लेखराम जी का यह समर्पण देखा,तो धर्मत्याग का विचार ही त्याग दिया।उनके कार्यों से मुसलमान बहुत नाराज थे *06मार्च1897की एक शाम जब वे लाहौर में लेखन से निवृत्त होकर उठे,तो एक मुश्लिम ने उन्हें छुरे से घायल कर दिया।उन्हें तुरन्त अस्पताल ले गये,पर उन्हें बचाया नहीं जा सका.मृत्यु पूर्व उन्होंने कार्यकर्ताओं को सन्देश दिया-आर्य समाज में तहरीर(लेखन)व तकरीर (प्रवचन)का काम बन्द नहीं होना चाहिए।धर्म और सत्य के लिए बलिदान होने वाले पं.लेखराम"आर्य मुसाफिर"जैसे महापुरुष मानवता के प्रकाश स्तम्भ हैं.सादर वंदन.सादर नमन

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