7 March इतिहासस्मृति दिवस वनांचल का"नीमड़ा"का नरसंहार
इतिहासस्मृति दिवस वनांचल का"नीमड़ा"का नरसंहार
७.३.१९२२
अंग्रेजी शासन में,निर्धन किसान,श्रमिक,वनवासी, गिरिवासी,अग्रेज और उनके चमचे सामंतो के शोषण के सबसे अधिक शिकार होते थे। *राजस्थान में गोविन्दगुरु ने धार्मिक कार्यक्रमों द्वारा इन्हें जाग्रत करने का सफल आंदोलन चलाया* उनके प्रयास से भील,मीणा,गरासिया वनवासी जातियां सामाजिक रूप से जागरूक हुईं *फिर इस चिन्गारी को राष्ट्रभक्त श्रीमोतीलाल तेजावत ने ज्वाला बना दिया. कोल्यारी गांव में जन्मे श्री मोतीलाल तेजावत झाडोल ठिकाने के कामदार थे*।उन्होंने वनवासियों के अत्याचारों को निकट से देखा।जमींदारों द्वारा पकी फसल को काट लेना,बेगार लेना,दुधारू पशुओं को उठा लेना,छोटी सी भूल पर कोड़ों से पिटवाना उन दिनों सामान्य बात थी।वनवासी समाज अनेक सामाजिक कुरीतियों से भी ग्रस्त था।इससे श्री तेजावत का मन विचलित हो उठा.1907में श्री मोतीलाल तेजावत ने झाडोल के राव साहब की नौकरी छोड़ वनवासियों में जागृति का अभियान छेडा।वे गांवों में जाकर आपस में मिलकर रहने तथा अत्याचारों का विरोध करने की बात समझाते *धीरे-धीरे यह अभियान"एकी आंदोलन" के नाम से प्रसिद्ध हुआ* मगरा के भीलों से शुरू होकर यह अभियान भोभट,अलसीगढ़,पांडोली, कपासन,उपरला,निचला गिरवा,डूंगरपुर,दांता, पालनपुर,ईडर,सिरोही, बांसवाड़ा,विजयनगर क्षेत्रों में जोर पकड़ने लगा.1921में देश भर में हुए असहयोग आंदोलन में भी श्री तेजावत तथा उनके साथियों ने भाग लिया.उनका सम्पर्क देश की आजादी की गतिविधियों से भी बना हुआ था.तेजावत के प्रयासों से स्थान-स्थान पर वनवासियों के सम्मेलन होने लगे.उन्होंने बेगार तथा लगान न देने की घोषणा कर दी. इससे अंग्रेजों की नींद हराम हो गयी. *06मार्च1922को विजयनगर राज्य के नीमड़ा गांव में भीलों का एक विशाल सम्मेलन हुआ.अंग्रेजों ने लोगों को डराने के लिए अपनी सेनाएं भेज दीं;★महाराणा प्रताप के मतवाले भला किससे डरने वाले थे?वे बड़ी संख्या में नीमड़ा पहुंचने लगे।नीमड़ा गांव पहाडि़यों से घिरा था।अंग्रेजों ने वहां अपनी मशीनगनें तैनात कर दीं।एकलिंग नाथ की जय तथा मोती बाबा की जय के साथ सम्मेलन शुरू हआ.अंग्रेजअधिकारियों ने वनवासियों के प्रमुखों को एक ओर बुला वार्ता में उलझाया.तभी गोलीवर्षा होने लगी.देखते ही देखते 1,200निहत्थे वनवासी मारे गये* श्री तेजावत के पैर में भी गोली लगी;उनके साथी उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गये।अगले आठ वर्ष वे भूमिगत रह काम करते रहे.1929में गांधी जी के कहने पर आत्म समर्पण किया. 1929-36तथा1944-46 तक वे जेल में रहे.(1947) आजादी बाद भी वे वहीं वनवासियों के काम में ही लगे रहे. *दि. 05.12. 1963को उनका निधन हुआ.जलियांवाला बाग कांड से भी बड़े इस कांड की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर नहीं होती,क्योंकि इसमें मरने वाले अधिकांश निर्धन वनवासी थे।वहां पेड़ों पर गोलियों के निशान आज भी इस नरसंहार की कहानी कहते हैं।उन सबको सादर वंदन नमन.सादर नमन.
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