9 March जन्मदिन मानव मन के पारखी वरिष्ठ पबाबासाहब नातू.


 जन्मदिन मानव मन के पारखी वरिष्ठ पबाबासाहब नातू. 09.03.1923 

मध्य भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य हिन्दू संगठनों के लिए आधार भूमि तैयार करने में श्रीअनंत शंकर(बाबासाहब) नातू का विशिष्ट स्थान है. *उनका जन्म09मार्च 1923को धार जिले के सरदारपुर नगर में हुआ.* उनके पिताजी उन दिनों वहां तहसीलदार थे।प्रारम्भिक शिक्षा उज्जैन में पूरी कर 1943में ग्वालियर से उन्होंने स्नातक उपाधि प्राप्त की।कई स्थानों पर काम करते हुए1946में लिप्टन चाय कम्पनी में उनकी नौकरी लग गयी।इस काम के लिए उन्हें भोपाल में रहना पड़ा।यहां उन्होंने भोपाल के मुसलमान नवाब द्वारा हिन्दुओं पर किये जाने वाले अत्याचार देखे। इससे उनका मन पीड़ा से भर उठा।इसका उत्तर उन्हें केवल संघ कार्य में दिखाई देता था।संघ से उनका संपर्क 1936में अपने बड़े भाई के साथ शाखा जाने पर हो गया था.1942में उन्होंने खंडवा से प्रथम वर्ष और फिर हरदा से द्वितीय वर्ष किया।हरदा में ही उन्होंने प्रचारक बनने का निर्णय लिया और नौकरी को लात मार दी।प्रचारक के नाते उन्हें सर्वप्रथम भोपाल ही भेजा गया।भोपाल के बाद उज्जैन,इंदौर,रतलाम आदि को केन्द्र बनाकर उन्होंने संघ कार्य को गति दी।श्री कुशा भाऊ ठाकरे,हरिभाऊ वाकणकर,मिश्रीलाल तिवारी ।दत्ता जी कस्तूरे,राजाभाऊ महाकाल जैसे जीवट के धनी कार्यकर्ता उनके साथी थे।इन सबने गांव-गांव तक शाखाएं पहुंचा दीं.1948 में संघ पर प्रतिबन्ध के समय संघ की ओर से यह छूट दी गयी थी कि जो प्रचारक घर जाना चाहें,वे जा सकते हैं;पर दृढ़ निश्चयी बाबा साहब ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.लेकिन उस समय शाखाएं बन्द थीं तथा सब ओर भय व्याप्त था। अतःबाबा साहब ने देवास जिले के सोनकच्छ में एक होटल खोल लिया।इससे कुछ आय होने लगी और यह लोगों से मिलने का एक ठिकाना बन गया।जैसे ही प्रतिबन्ध हटा,वे होटल बन्द कर फिर प्रचारक बन गये।जिला,विभाग आदि दायित्वों के बाद1977में उन्हें मध्य भारत का प्रान्त प्रचारक बनाया गया.1983 में सहक्षेत्र प्रचारक व 1986से 92तक वे क्षेत्र प्रचारक रहे।स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों से जब प्रवास कठिन हो गया ।तो उन्होंने सरकार्यवाह श्री शेषाद्रि जी से आग्रह कर स्वयं को दायित्व मुक्त कर लिया।दायित्व मुक्ति के बाद भी वे कार्यक्रमों तथा कार्यकर्ताओं के पारिवारिक आयोजनों में जाते रहे।बाबा साहब मानव मन के अद्भुत पारखी थे।शाखा के साथ ही कार्यकर्ता से मिलना,उसके घर जाना और धैर्यपूर्वक उसके मन की बात सुनना भी उनके प्रवास का महत्वपूर्ण अंग होता था।वे कार्यकर्ता तथा नये व्यक्ति से मिलने एवं कुछ देर की वार्ता से ही उसके मन को समझ लेते थे।इसलिए लोग हंसी में उनकी आंखों को एक्सरे मशीन कहते थे।व्यक्तियों को जोड़ने तथा उन्हें उनकी शक्ति एवं योग्यता के अनुसार यथोचित काम देने से ही संघ के सैकड़ों विविध कार्य एवं हजारों प्रकल्प खड़े हुए हैं। मन की परख के कारण बाबा साहब ने जिसे जो कार्य सौंपा,वह अंततःउस काम में यशस्वी हुआ।उनके सम्पर्क का दायरा अति विशाल था।सैकड़ों कार्यकर्ताओं और उनके पुत्र-पुत्रियों के विवाह के लिए उन्होंने सम्पर्क सेतु का काम किया।वे कार्यकर्ता ही नहीं,तो उसके रिश्तेदारों तक से संबंध बनाकर रखते थे और समय आने पर उनसे भी काम ले लेते थे।वृद्धावस्था के बावजूद वे तात्कालिक गतिविधियों के प्रति जागरूक रहते थे तथा मिलने आने वालों को समयानुकूल दिशा निर्देश भी करते थे।इसलिए हर आयु वर्ग वाले उनके पास बैठना पसंद करते थे. *लम्बी बीमारी के बाद15दिसम्बर, 2008को उनकी आत्मा अनन्त में विलीन हो गयी. सादर वंदन

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