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31 March ऐतिहासिक स्मरणीय दिवस

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  ऐतिहासिक स्मरणीय दिवस 31मार्च का दिन अंग्रेजियत से आजादी के लिए मिल रहें है शुभ संकेत==========              =1857की क्रांति के लिए 31.03.1857निश्चित=== किया गया था* हालाकि वह क्रांति इस तिथी से पहले ही शुरू हो गई थी.1857की क्रांति में अनेको शूरवीर शहीद हो गए पर एक स्वतंत्रता की आशा की किरण दिखा गए।उस क्रांति के परिणामस्वरूप अंग्रेजों का शासन हिल गया था *और भारत से ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राज तो समाप्त हो गया पर इंग्लेंड की सरकार ने शासन.सम्हाल.लिया.* और1947में अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। पर अंग्रेजियत अभी भी हमको गुलाम बनाये हुए है.अब अंग्रेजियत से आजादी का सही समय आ गया.आप पूछेगें कि अब सही समय क्यों?  उसका उत्तर है कि *जब अस्तित्व को कोई परिवर्तन करना होता है तो वह कोई न कोई संकेत जरुर देता है.1857की क्रांति के लिए निश्चित की तारिख-31मार्च ही थी.वंदन.अभिनंदन🙏

31 March पुण्यतिथि संघनिष्ठ नानासाहब भागवतजी

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 पुण्यतिथि संघनिष्ठ नानासाहब भागवतजी ३१.३.१९७१  श्री नारायण पांडुरंग (नानासाहब)भागवत मूलतःमहाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले के वीरमाल गांव के निवासी थे।वहां पर ही उनका जन्म1884में हुआ* घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वे अपने मामा जी के घर नागपुर काटोल पढ़ने आ गये।आगे चलकर उन्होंने प्रयाग(उ.प्र.)से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा चंद्रपुर के पास वरोरा में कारोबार करने लगे।इसी दौरान उनका संपर्क संघ संस्थापक डा.हेडगेवार से हुआ।वरोरा उन दिनों कांग्रेस की गतिविधियों का एक बड़ा केन्द्र था।नानासाहब कांग्रेस की प्रांतीय समिति के सदस्य थे.1930में सारा परिवार चंद्रपुर आकर रहने लगा। चंद्रपुर जिला न्यायालय में वकालत करतेहुए नानासाहब की घनिष्ठता तिलक जी के अनुयायी बलवंतराव देशमुख से हुई।अतःउनके मन में भी देश,धर्म और संस्कृति के प्रति अतीव निष्ठा जाग्रत हो गयी।जब डा.हेडगेवार ने चंद्रपुर में शाखा प्रारम्भ की, तब तक नानासाहब की ख्याति एक अच्छे वकील के रूप में हो चुकी थी;पर डाo जी से भेंट होते ही अपने सब बड़प्पन छोड़कर नानासाहब उनके अनुयायी बन गये।नानासाहब बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते थे।लोग उनके पास

31 March जन्मदिवस शिक्षाप्रेमी जयगोपाल गाडोदिया

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 जन्मदिवस शिक्षाप्रेमी जयगोपाल गाडोदिया  31.03.1931 अभाव और कठिनाइयों में अपने जीवन का प्रारम्भ करने वाले जयगोपाल गाडोदिया का जन्म= 31मार्च1931को सुजान गढ़(जिला चुरू,राज.)में हुआ* गरीबी के कारण उन्हें विद्यालय में पढ़ने का अवसर नहीं मिला।इतना ही नहीं,तो प्रायःउन्हें दोनों समय पेट भर भोजन भी नहीं मिलता था।इन अभावों से उनके मन में समाज के निर्धन वर्ग के प्रति संवेदना का जन्म हुआ।स्वामी विवेकानंद के विचारों का उनके मन पर बहुत प्रभाव था।आगे चलकर जब अपने परिश्रम और प्रभु की कृपा से उन्होंने धन कमाया, तो उसे इन अभावग्रस्त बच्चों की शिक्षा में ही लगा दिया। दस साल की अवस्था में वे पैसा कमाने हेतु कोलकाता आ गये।यहां काम करते हुए उन्होंने कुछ लिखना व पढ़ना सीखा।काम के लिए देश भर में घूमने से उन्हें निर्धन और निर्बल वर्ग की जमीनी सच्चाइयों का पता लगा।अतःउन्होंने"जयगोपाल गाडोदिया फाउंडेशन"की स्थापना की तथा उसके माध्यम से चेन्नई में रहकर कई सामाजिक गतिविधियों का संचालन करने लगे। उनका विचार था कि बच्चा चाहे निर्धन हो या धनवान, उसमें कुछ प्रतिभा अवश्य होती है,जिसे उचित शिक्षण, प्रशिक्षण से

31 March जन्मदिवस 31.03.1504 सेवासमर्पण के साधकगुरुअंगददेव

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 जन्मदिवस 31.03.1504 सेवासमर्पण के साधकगुरुअंगददेव                                सिख पन्थ के दूसरे गुरु अंगददेव जी का जन्म हिंदू-वर्ष-वि.सं1561माह-चैत्रशुक्लाप्रथमा,गुड़ीपड़वा,प्रतिपदा को(आंग्ल दि.31.03.1504)यानि हिन्दू नव वर्ष के दिन हुआ. अंगद देव जी का असली नाम"लहणा"था.* वे उन सब परीक्षाओं में सफल रहे, जिनमें गुरु नानक के पुत्र और अन्य दावेदार विफल हो गये थे।गुरु नानक ने उनकी पहली परीक्षा कीचड़ से लथपथ घास की गठरी सिर पर रखवा कर ली।फिर गुरु जी ने उन्हें धर्मशाला से मरी हुई चुहिया उठाकर बाहर फेंकने को कहा।उस समय इस प्रकार का काम शूद्रों का माना जाता था।तीसरी बार मैले के ढेर में से कटोरा निकालने को कहा।गुरु नानक के दोनों पुत्र इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हुए।इसी तरह गुरु जी ने लहणा को सर्दी की रात में धर्मशाला की टूटी दीवार बनाने को कहा।वर्षा और तेज हवा के बावजूद उन्होंने दीवार बना दी।गुरुजी ने एक बार उन्हें रात को कपड़े धोने को कहा,तो घोर सर्दी में रावी नदी पर जाकर उन्होंने कपड़े धो डाले।एक बार उन्हें शमशान में मुर्दा खाने को कहा,तो वे तैयार हो गये।इस पर गुरु जी ने उ

31 March जन्मदिवस= आनंदी गोपाल जोषी

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  जन्मदिवस= आनंदी गोपाल जोषी  जन्म31मार्च1865पुणे===और=मृत्यु-26फ़रवरी 1887========= पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री प्राप्त की थी।* जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, उस समय विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना उनके लिए एक मिसाल थी।आनंदी गोपाल जोशी का व्‍यक्तित्‍व महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत था। उन्‍होंने-1886में अपने सपने को साकार रूप दिया।जब उन्‍होंने डॉक्टर बनने का निर्णय लिया था तो उनकी समाज में काफ़ी आलोचना हुई थी कि एक विवाहित हिन्दू स्‍त्री विदेश में (पेनिसिल्‍वेनिया)जाकर डॉक्‍टरी की पढ़ाई करे। लेकिन आनंदीबाई एक दृढ़निश्‍चयी महिला थीं और उन्‍होंनेआलोचनाओं की तनिक भी परवाह नहीं की।यही वजह थी कि उन्‍हें पहली भारतीय महिला डॉक्‍टर होने का गौरव प्राप्‍त हुआ। *परिचय=डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक मराठी परिवार में-31 मार्च1865को कल्याण, थाणे,महाराष्ट्र में हुआ* माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा।उनका परिवार एक रूढ़िवादी मराठी परिवार था,जो केवल संस्कृत पढ़ना जानता था।उनके पिता ज़मींदार थे।ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में ज़मींदारी प्रथा समाप्त कि

31 March दलाई लामा तिब्बत छोड़कर भारत आ गए -

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 दलाई लामा तिब्बत छोड़कर भारत आ गए - 31 मार्च 1959 1950 के दशक में चीन और तिब्बत के बीच कड़वाहट शूरु हो गयी थी जब गर्मियों ने तिब्बत में उत्सव मनाया जा रहा था तब चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया और प्रसाशन अपने हाथो में ले लिया. दलाई लामा उस समय मात्र 15 वर्ष के थे इसलिए रीजेंट ही सारे निर्णय लेते थे लेकिन उस समय तिब्बत की सेना में मात्र 8,000 सैनिक थे जो चीन की सेना के सामने मुट्ठी भर ही थे. जब चीनी सेना ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया तो वो जनता पर अत्याचार करने लगे, स्थानीय जनता विद्रोह करने लगी थी और दलाई लामा ने चीन सरकार से बात करने के लिए वार्ता दल भेजा लेकिन कुछ परिणाम नहीं मिला. 1959 में लोगो में भारी असंतोष छा गया था और अब दलाई लामा के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा था. चीन सरकार दलाई लामा को बंदी बनाकर तिब्बत पर पूर्णत कब्जा करना चाहती थी इसलिए दलाई लामा के शुभ चिंतको ने दलाई लामा को तिब्बत छोड़ने का परामर्श दिया. अब भारी दबाव के चलते दलाई लामा को तिब्बत छोड़ना पड़ा. अब वो तिब्बत के पोटला महल से 17 मार्च 1959 को रात को अपना आधिकारिक आवास छोडकर 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में प्रव

30 March *🌹"राजस्थान दिवस

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 *🌹"राजस्थान दिवस की बधाई 🌹* *आज का दिन सभीराजस्थान दिवस=30 मार्च"  इसे राजस्थान का स्थापना दिवस भी कहा जाता है। हर वर्ष के तीसरे महिने (मार्च) में 30तारीख को राजस्थान दिवस मनाया जाता है.30 मार्च,1949में जोधपुर, जयपुर,जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान संघ' बना था इस दिन राजस्थान के लोगों की वीरता,दृढ़ इच्छाशक्ति तथा बलिदान को नमन किया जाता है।यहां की लोक कलाएं,समृद्ध संस्कृति, महल,व्यंजन आदि एक विशिष्ट पहचान रखते हैं।  इस दिन कई उत्सव और आयोजन होते हैं जिनमें राजस्थान की अनूठी संस्कृति का दर्शन होता है। इसे पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था तथा कुल २२ रियासतों को मिलाकर यह राज्य बना तथा इसका नाम "राजस्थान" किया गया जिसका शाब्दिक अर्थ है "राजाओं का स्थान" क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व यहां कई राजा-महाराजाओं ने राज किया।  राजस्थान का एकीकरण ७ चरणों में हुआ।इसकी शुरुआत१८अप्रैल१९४८ को अलवर,भरतपुर,धौलपुर और करौली रियासतों के विलय से हुई।विभिन्न चरणों में रियासतें जुड़ती गईं तथा अंत में ३०मार्च१९४९को जोधपुर,जयपुर,जैसलमेर और ब