31 March पुण्यतिथि संघनिष्ठ नानासाहब भागवतजी
पुण्यतिथि
संघनिष्ठ नानासाहब भागवतजी
३१.३.१९७१
श्री नारायण पांडुरंग (नानासाहब)भागवत मूलतःमहाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले के वीरमाल गांव के निवासी थे।वहां पर ही उनका जन्म1884में हुआ* घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वे अपने मामा जी के घर नागपुर काटोल पढ़ने आ गये।आगे चलकर उन्होंने प्रयाग(उ.प्र.)से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा चंद्रपुर के पास वरोरा में कारोबार करने लगे।इसी दौरान उनका संपर्क संघ संस्थापक डा.हेडगेवार से हुआ।वरोरा उन दिनों कांग्रेस की गतिविधियों का एक बड़ा केन्द्र था।नानासाहब कांग्रेस की प्रांतीय समिति के सदस्य थे.1930में सारा परिवार चंद्रपुर आकर रहने लगा। चंद्रपुर जिला न्यायालय में वकालत करतेहुए नानासाहब की घनिष्ठता तिलक जी के अनुयायी बलवंतराव देशमुख से हुई।अतःउनके मन में भी देश,धर्म और संस्कृति के प्रति अतीव निष्ठा जाग्रत हो गयी।जब डा.हेडगेवार ने चंद्रपुर में शाखा प्रारम्भ की, तब तक नानासाहब की ख्याति एक अच्छे वकील के रूप में हो चुकी थी;पर डाo जी से भेंट होते ही अपने सब बड़प्पन छोड़कर नानासाहब उनके अनुयायी बन गये।नानासाहब बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते थे।लोग उनके पास मुकदमे लेकर आते थे।यदि उस मुकदमे में जीतने की संभावना नहीं दिखाई देती थी,तो नाना साहब साफ बता देते थे।फिर भी उनके प्रति विश्वास अत्यधिक था।अतःलोग यह कहकर उन्हें ही कागज सौंपते थे कि यदि हमारे भाग्य में पराजय ही है, तो वही स्वीकार कर लेंगे; पर हमारा मुकदमा आप ही लड़ेंगे।संघ में सक्रिय होने के बावजूद चंद्रपुर के मुसलमान तथा ईसाइयों का उन पर बहुत विश्वास था।वे अपने मुकदमे उन्हें ही देते थे।उनके घर से नानासाहब के लिए मिठाई के डिब्बे भी आते थे; पर ऐसे शीघ्रकोपी स्वभाव के नानासाहब संघ की शाखा में बाल व शिशु स्वयंसेवकों से बहुत प्यार से बोलते थे. डा.हेडगेवार के साथ उनका लगातार संपर्क बना रहता. उनकी ही तरह नानासाहब ने भी अपने स्वभाव में काफी परिवर्तन किया।एक वरिष्ठ वकील होते हुए भी वे घर-घर से बालकों को बुलाकर शाखा में लाते थे।उनके बनाये हुए अनेक स्वयंसेवक आगे चलकर संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता बने.1935में उन्हें चंद्रपुर संघचालक बनाया गया।संघ के सब प्रचारक व कार्यकर्ता उनके घर पर आते थे।संघ की बैठकें भी वहीं होती थीं.1950से60तक वहां संघ का कार्यालय भी नहीं था।ऐसे में पूरे जिले से आने वाले कार्यकर्ता उनके घर पर ही ठहरते,भोजन आदि करते थे।नानासाहब ने संघ के संस्कार अपने घर में भी प्रतिरोपित किये *उनके एक पुत्र मधुकरराव गुजरात में प्रचारक थे।इस दौरान उनके दूसरे पुत्र मनोहर का देहांत हो गया।सबकी इच्छा थी कि ऐसे में मधुकर राव को घर वापस आ जाना चाहिए; पर नानासाहब ने इसके लिए कोई आग्रह नहीं किया।मधुकरराव इसके बाद भी अनेक वर्ष प्रचारक रहे और गुजरात के प्रांत प्रचारक बने।युवा अवस्था का काफी समय प्रचारक के रूप में ७बिताकर वे घर आये और गृहस्थ जीवन स्वीकार किया।घर पर रहते हुए भी उनकी सक्रियता लगातार बनी रही।और मधुकर राव भागवत के पुत्र-(नारायण पांडुरंग भागवत केपौत्र)श्री मोहन भागवत आजकल हमारे सरसंघचालक हैं. नानासाहब ने आजीवन संघ कार्य किया।इसके साथ ही अपने पुत्र एवं पौत्र को भी इसकी प्रेरणा दी.ऐसे श्रेष्ठ,आदर्श गृहस्थ कार्यकर्ता नारायण पांडुरंग भागवत का 31मार्च1971 को देहांत हुआ.सादर वंदन.सादर नमन🌹🙏🌹🙏
https://youtu.be/i5O2H89Vk1A
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