26 Jan जन्मदिवस स्वतन्त्रता सेनानी,नागाओं की रानी रानी मां गाइडिन्ल्यू

 जन्मदिवस स्वतन्त्रता सेनानी,नागाओं की रानी 


रानी मां गाइडिन्ल्यू 

26.01.1915 

गाइडिन्ल्यू का जन्म 26जन.1915को नागाओं की रांगमेयी जनजाति में हुआ.* केवल 13वर्ष की आयु में अपने चचेरे भाई जादोनांग से प्रभावित हुई. जादोनांग प्रथम विश्व युद्ध में लड़ चुके थे।युद्ध के बाद अपने गाँव आकर उन्होंने तीन नागा कबीलों जेमी, ल्यांगमेयी,रांगमेयी में एकता स्थापित करने हेतु"हराका" पन्थ की स्थापना की।फिर तीनों सामूहिक रूप से जेलियांगरांग कहलाये।इसके बाद वे अपने क्षेत्र से अंग्रेजों को भगाने के प्रयास में लगे। 

इससे अंग्रेज नाराज हुए। *उन्होंने जादोनांग को 29 अगस्त1931को फाँसी दे दी;* नागाओं ने गाइडिन्ल्यू के नेतृत्व में संघर्ष जारी रखा,अंग्रेजों ने आंदोलनरत गाँवों पर सामूहिक जुर्माना लगाकर उनकी बन्दूकें रखवा लीं.17वर्षीय गाइडिन्ल्यू ने इसका विरोध किया।वे अपनी नागा संस्कृति को सुरक्षित रखना चाहती थीं।हराका का अर्थ भी शुद्ध एवं पवित्र है।उनके साहस एवं नेतृत्व क्षमता को देखकर लोग उन्हें देवी मानने लगे।अब अंग्रेज गाइडिन्ल्यू के पीछे पड़ गये।उन्होंने गाँवों में उनके चित्र वाले पोस्टर दीवारों पर चिपकाये तथा उन्हें पकड़वाने वाले को 500रु.पुरस्कार देने की घोषणा की;पर कोई इस लालच में नहीं आया।अब गाइडिन्ल्यू का प्रभाव उत्तरी मणिपुर,खोनोमा तथा कोहिमा तक फैल गया।नागाओं के अन्य कबीले भी उन्हें अपना नेता मानने लगे.1932में गाइडिन्ल्यू ने पोलोमी गाँव में एक विशाल काष्ठदुर्ग का निर्माण शुरू किया,जिसमें 40,000 योद्धा रह सकें।उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे अन्य जनजातीय नेताओं से भी सम्पर्क बढ़ाया।गाइडिन्ल्यू ने अपना खुफिया तन्त्र भी स्थापित कर लिया।इससे उनकी शक्ति बहुत बढ़ी।यह देखकर अंग्रेजों ने डिप्टी कमिश्नर जे.पी.मिल्स को उन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी दी. *17अक्टू.1932को मिल्स ने अचानक गाइडिन्ल्यू के शिविर पर हमला कर उन्हें पकड़ लिया.गाइडिन्ल्यू को पहले कोहिमा,फिर इम्फाल लाकर राजद्रोह मुकदमा चलाया.उन्हें-14 साल के लिए जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया.1937में जब पं.नेहरू असम के प्रवास पर आये,तो उन्होंने गाइडिन्ल्यू को ‘नागाओं की रानी’कहकर सम्बोधित किया.तब से यही उनकी उपाधि बन गयी* आजादी के बाद उन्होंने राजनीति के बदले धर्म और समाज की सेवा के मार्ग को चुना.1958 में कुछ नागा संगठनों ने विदेशी ईसाई मिशनरियों की शह पर नागालैण्ड को भारत से अलग करने का हिंसक आन्दोलन चलाया।रानी माँ ने उसका प्रबल विरोध किया।इस पर वे उनके प्राणों के प्यासे हो गये।इस कारण रानी माँ को छह साल तक भूमिगत रहना पड़ा।इसके बाद वे भी शान्ति के प्रयास में लगी रहीं. *1972में भारत सरकार ने उन्हें ताम्रपत्र और फिर ‘पद्मभूषण’ देकर सम्मानित किया।वे अपने क्षेत्र के ईसाइकरण की विरोधी थीं।अतःवे वनवासी कल्याण आश्रम और विश्व हिन्दू परिषद् के अनेक सम्मेलनों में गयीं. आजीवन अविवाहित रहकर नागा जाति,हिन्दू धर्म और देश की सेवा करने वाली रानी माँ गाइडिन्ल्यू ने 17फर.1993को यह शरीर छोड़ दिया.सादर वंदन सादर नमन

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