27 Jan जन्मदिवस 27.01.1894 वनों के रक्षक निर्मल मुण्डा
जन्मदिवस 27.01.1894
वनों के रक्षक निर्मल मुण्डा
निर्मल मुण्डा का जन्म 27जन.1894को ग्राम बारटोली,गंगापुर स्टेट, उड़ीसा में हुआ.* पिता मोराह मुण्डा ग्राम प्रधान थे।पूरा गाँव उनका आदर करता।निर्मल की शिक्षा रायबोगा स्कूल में हुई।फिर उन्हें राजगंगापुर के लूथेरियन मिशन स्कूल,फिर राँची के गोसनर स्कूल में भेज दिया।कक्षा दस में पढ़ते समय प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया।निर्मल सेना में भर्ती होकर फ्रान्स लड़ने चले गये।युद्ध बाद उन्होंने वीरमित्रतापुर लाइम स्टोन कम्पनी में नौकरी की।एक बार बिना भूल के,अंग्रेज अधिकारी ने डाँटा,तो वे नौकरी छोड़ अपने क्षेत्र को शिक्षित बनाने का संकल्प लेकर गाँव में रहने लगे।अंग्रेजों से पूर्व इस वनवासी क्षेत्र पर स्थानीय राजाओं और जमीदारों का अधिकार था।यद्यपि वे भी जंगल से कमाई करते थे;पर वे पर्यावरण सन्तुलन बनाकर रखते थे।पर अंग्रेजों का उद्देश्य अधिक धन कमाकर अपने देश भेजना था।वे इस क्षेत्र पर कब्जा भी करना चाहते थे,ताकि उनकी लूट को कोई रोक न सके।इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने इसके लिए मुखर्जी समिति बनायी, जिसके बनाये नियम‘ मुखर्जी सेटलमेण्ट’कहे गये।इससे पूर्व 1908में ब्रिटिश संसद ने जंगल और उसकी उपज पर वनवासियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कानून बनाये थे;पर मुखर्जी सेटलमेण्ट के माध्यम से उन्हें भी छीन लिया।यह वनवासियों के अधिकारों पर सीधी चोट थी।इसके विरुद्ध वे निर्मल मुण्डा के नेतृत्व में संगठित होने लगे।निर्मल ने गाँव-गाँव घूमकर वनवासियों को एकत्र कर उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जागरूक किया।उन्होंने अंग्रेजों के साथ काम किया था,अत:उनकी धूर्तता वे बहुत अच्छी तरह जानते थे।मुखर्जी सेटल मेण्ट अनुसार मालगुजारी की दर पाँच गुनी कर दी।वन वासियों की खेती तो प्रकृति पर आधारित थी। यदि कभी अतिवृष्टि या अनावृष्टि हो जाती,तो भूखों मरने की नौबत आ जाती;पर अंग्रेजों को इससे क्या लेना, वे तो उनकी जमीन नीलाम कर माल गुजारी वसूलते थे।वन वासियों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था *निर्मल मुण्डा ने इसके विरोध में-25अप्रैल1939 को सुन्दर गढ़ जिले के आमको सिमको ग्राम में विशाल सभा काआयोजन किया,जिसमें10,000 वनवासी एकत्र हुए* प्रशासन इस सभा एवं आन्दोलन से भयभीत था।अतःलेफ्टिनेण्ट ज्योप्टोन बिफो के नेतृत्व में पुलिस कर्मियों ने मैदान घेर गोली चला दी, जिसमें 300 लोग मारे गये।पुलिस ने निर्मल मुण्डा को गिरफ्तार कर जसपुर जेल में ठूंस दिया, जहाँ से वे 1947में ही मुक्त हुए।इस वीर को आजादी के बाद भी समुचित सम्मान नहीं मिला।क्षेत्रीय जनता की बहुत पुकार पर15अगस्त 1972को प्र.मं.इन्दिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र दिया. *02जन.1973को वनों के रक्षक इस वीर का देहान्त हो गया.प्रतिवर्ष 25अप्रैल को आमको सिमको गाँव में लगने वाले मेले में निर्मल मुण्डा को लोग श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं.सादर वंदन.
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