6 Jan *त्यागराज=मृत्यु तिथि 6 जन.1847
संगीतज्ञ थे।वे 'कर्नाटक संगीत' के महान् ज्ञाता तथा भक्तिमार्ग के कवि थे।इन्होंने भगवान श्रीराम को समर्पित भक्ति गीतों की रचना की थी।*=
प्रसिद्ध संगीतज्ञ त्यागराज का जन्म 4मई,1767 ई. में तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले में तिरूवरूर में हुआ ।माँ'सीताम्मा'पिता 'रामब्रह्मम' थे।त्यागराज ने अपनी एक कृति में बताया कि-"सीताम्मा मायाम्मा श्री रामुदु मा तंद्री"अर्थात् "सीता मेरी माँ और श्री राम मेरे पिता हैं"।इसके जरिए शायद वह दो बातें कहना चाहते थे।एक ओर वास्तविक माता-पिता के बारे मे बताते हैं दूसरी ओर प्रभु राम के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित करते हैं। त्यागराज एक अच्छे सुसंस्कृत परिवार में पैदा हुए।वे प्रकांड विद्वान्और कवि थे।वह संस्कृत, ज्योतिष तथा अपनी मातृभाषा तेलुगु ज्ञानी पुरुष थे।संगीत के प्रति त्यागराज का लगाव बचपन से ही था।कम उम्र में ही वह वेंकटरमनैया के शिष्य बने।किशोरावस्था में ही उन्होंने पहले गीत"नमो नमो राघव"की रचना की थी।दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में प्रभावी योगदान करने वाले त्यागराज की रचनाएं आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।धार्मिक आयोजनों तथा त्यागराज के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों में इनका खूब गायन होता है। त्यागराज ने मुत्तुस्वामी दीक्षित और श्यामाशास्त्री के साथ कर्नाटक संगीत को नयी दिशा दी।उनके योगदान को देखते हुए ही उन्हें 'त्रिमूर्ति' की संज्ञा से विभूषित किया गया है।
तंजावुर नरेश त्यागराज की प्रतिभा से बहुत प्रभावित थे।उन्होंने त्यागराज को दरबार में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया। लेकिन प्रभु की उपासना में डूबे त्यागराज ने उनके प्रस्ताव को मना कर दिया। उन्होंने प्रसिद्ध कृति "निधि चल सुखम"यानी'क्या धन से सुख की प्राप्ति हो सकती है'की रचना की। ऐसा भी कहा जाता है कि त्यागराज के भाई ने श्रीराम की वह मूर्ति,जिसकी पूजा-अर्चना आदि त्यागराज किया करते थे,पास ही कावेरी नदी में फेंक दी थी। त्यागराज अपने इष्ट से अलगाव को बर्दाश्त नहीं कर सके और घर से निकल पड़े।इस क्रम में उन्होंने दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख मंदिरों की यात्रा की और उन मंदिरों के देवताओं की स्तुति में गीत बनाए।
त्यागराज ने क़रीब 600 कृतियों की रचना करने के अलावा तेलुगु में दो नाटक 'प्रह्लाद भक्ति विजय'और 'नौका चरितम'भी लिखे। 'प्रह्लाद भक्ति विजय'जहां पांच दृश्यों में 45 कृतियों का नाटक है,वहीं'नौका चरितम'एकांकी है।इसमें -21कृतियां हैं।त्यागराज की विद्वता उनकी हर कृति में झलकती है।हालांकि 'पंचरत्न'कृति को उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कहा जाता है।सैंकड़ों गीतों के अलावा उन्होंने उत्सव संप्रदाय 'कीर्तनम'और'दिव्यनाम कीर्तनम' की भी रचनाएं कीं।उन्होंने संस्कृत में भी गीतों की रचना की।उनके अधिकतर गीत तेलुगु में हैं।
जो कुछ भी त्यागराज ने रचा है,वह सब कुछ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में है। आध्यात्मिक रूप से त्यागराज उन लोगों में थे, जिन्होंने भक्ति के सामने किसी बात की परवाह नहीं की।अपनी कृतियों में श्रीराम को मित्र,मालिक, पिता और सहायक बताते. 6जन.1847को त्यागराज ने समाधि ले ली।सादर वंदन।नमन।
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