12 Feb पुण्य-तिथि= महान,राष्ट्रवादी,स्वतंत्रता सेनानी,क्रांतिकारी सूफ़ी अम्बाप्रसाद


 पुण्य-तिथि=

महान,राष्ट्रवादी,स्वतंत्रता सेनानी,क्रांतिकारी सूफ़ी अम्बाप्रसाद=             

इनका जन्म-1858में मुरादाबाद(उ.,प्र.)में हुआ। इनका एक हाथ जन्म से ही कटा हुआ था।बड़े हुए, तब इनसे किसी ने पूछा- "आपका एक हाथ कटा हुआ क्यों है?"उन्होंने जबाव दिया-"वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मैंने अंग्रेज़ों से जमकर युद्ध किया था।तब हमारा हाथ कटा,अब मेरा पुनर्जन्म है" ।सूफ़ी अम्बाप्रसाद ने मुरादाबाद&जालन्धर में अपनी शिक्षा ग्रहण की.

सूफ़ी अम्बा प्रसाद बड़े अच्छे लेखक थे।वे उर्दू में एक पत्र भी निकालते थे। दो बार अंग्रेज़ों के विरुद्ध बड़े कड़े लेख लिखे। फलस्वरूप उन पर दो बार मुक़दमा चलाया।प्रथम बार चार महीने की,दूसरी बार नौ वर्ष की कठोर सज़ा हुई।उनकी सारी सम्पत्ति भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा जब्त कर ली।सूफ़ी अम्बाप्रसाद कारागार से लौट आने बाद हैदराबाद गए।फिर वहाँ से लाहौर चले गये।वहां वे सरदार अजीत सिंह की संस्था 'भारत माता सोसायटी'में काम करने लगे।सिंह जी के नजदीकी सहयोगी होने के साथ ही सूफ़ी तिलक जी के भी अनुयायी बन गए।तब उन्होंने एक पुस्तक लिखी,जिसका नाम विद्रोही ईसा था।जो अंग्रेज़ सरकार द्वारा बड़ी आपत्तिजनक समझी गई। जिस कारण सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया।सूफ़ी जी गिरफ़्तारी से बचने हेतु नेपाल गए।वहाँ वे पकड़े गए और भारत लाये गए। लाहौर में उन पर राजद्रोह का मुक़दमा चला,कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया। सूफ़ी अम्बा प्रसाद फ़ारसी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे.1906में जब सरदार अजीत सिंह को बन्दी बनाकर देश निकाले की सज़ा दी तो सूफ़ी अम्बा प्रसाद के पीछे भी अंग्रेज़ पुलिस पड़ गई।कई साथियों के साथ सूफ़ी जी पहाड़ों पर चले गये। कई वर्षों बाद जब पुलिस ने घेराबंदी बन्द कर दी तो सूफ़ी अम्बा प्रसाद फिर लाहौर आये।वहां एक पत्र निकला,जिसका नाम 'पेशवा'था।सूफ़ी जी छत्रपति शिवाजी के अनन्य भक्त थे।उन्होंने 'पेशवा'में शिवाजी पर कई लेख लिखे-आपत्तिजनक समझे गए।फिर उनकी गिरफ़्तारी की खबरें आने लगीं।सूफ़ी जी गुप्त रूप से लाहौर छोड़ ईरान चल दिये।ईरानी क्रांतिकारियों के साथ मिल सूफ़ीजी ने आम आन्दोलन किये. 12फ़र.1919 में ईरान निर्वासन में ही वे मृत्यु को प्राप्त हुए।सादर वंदन। नमन।👏

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