13 Feb वीरगतिदिवस========= वीर महा योद्धा बुधु भगत और परिवार
वीरगतिदिवस========= वीर महा योद्धा बुधु भगत और परिवार ========(13.02.1832)====== 13फ़रवरी शहीदी बलिदान दिवस वीर बुद्धू भगत.. अंग्रेजो की बंदूकों के खिलाफ लड़े थे कुल्हाड़ी से और पूरा परिवार पाया था वीरगति को.उनको सादर वंदन.सादर नमन.*
""सच्चे वीरों का बलिदान.. क्यों भूल गया है हिंदुस्तान.." बुधु भगत=एक वो बलिदानी जिसने खुद के साथ अपने दो बेटों को भी चढाया आज़ादी की बलिवेदी पर..कुछ चाटुकार इतिहासकारों की अक्षम्य भूल के कारण भुला दिए गए.झारखण्ड में राँची ज़िले के सिलागाई गाँव से सिर्फ एक कुल्हाड़ी ले कर ब्रिटिश सरकार की तोपों, बन्दूकों से मुकाबला शुरू कर के बाद में इसे लरका विद्रोह नाम की क्रान्ति ज्वाला बना देने वाले महायोद्धा बुधु भगत को आज उनके वीरगति शहीद बलिदानदिवस13फरवरी को सादर श्रद्धांजलि.वंदन.
आमतौर पर1857को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम समर माना जाता है।लेकिन इससे इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत ने न सिर्फ़ क्रान्ति का शंखनाद किया था,बल्कि अपने साहस व नेतृत्व क्षमता से1832में“लरका विद्रोह” नामक ऐतिहासिक आंदोलन का सूत्रपात्र भी किया।बुधु भगत बचपन से ही अंग्रेज़ी सेना की क्रूरता देखते आये थे।घंटों एकांत में बैठे रहने, तलवार और धनुष-बाण चलाने में पारंगत होने के कारण लोगों ने बुधु को क्रांतिदूत समझ लिया। तेजस्वी युवक बुधु की बड़ी- बड़ी बातें सुन आदिवासियों ने उन्हें अपना उद्धारकर्ता मानना प्रारम्भ कर दिया। विद्रोह के लिए बुधु के पास अब पर्याप्त जन समर्थन था। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध बगावत का आह्वान किया। हज़ारों हाथ तीर,धनुष, तलवार,कुल्हाड़ी के साथ उठ खड़े हुए.कैप्टन इंपे द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को क्रांतिकारियों ने लड़कर मुक्त करा लिया। अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया।घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेज़ी सेना को परास्त किया.बुधु को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने उस काल में एक हज़ार रुपये इनाम की घोषणा कर दी थी जिसकी कीमत आज के करोड़ों के बराबर होगी. हज़ारों लोगों के हथियारबंद विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार और उसके चाटुकार ज़मींदार कांप उठे।बुधु भगत को पकड़ने का काम कैप्टन इंपे को सौंपा गया।बुधु की दहशत अंग्रेजों में किस कदर समाई थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पकड़ने के लिए बनारस की पचासवीं देसी पैदल सेना की छह कंपनी और घुड़सवार सैनिकों का एक बड़ा दल जंगल में भेज दिया गया।
टिकू और आसपास के गांवों से हज़ारों ग्रामीणों को गिरफ़्तार कर लिया गया। बुधु के दस्ते ने घाटी में ही बंदियों को मुक्त करा लिया। करारी शिकस्त से कैप्टन बौखला गया. *13फ़रवरी, 1832को बुधु और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया ।कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया।अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं।बूढ़े, बच्चों,महिलाओं व युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा।उस खूनी तांडव में करीब300 ग्रामीण मारे गए.अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया।बुधु भगत तथा उनके बेटे "हलधर"और"गिरधर"भी अंग्रेज़ों से अंतिम साँस तक लड़ते हुए वीरगति को पाकर बलिदान हो गए. उनको सादर वंदन. सादर नमन.🙏🙏🙏🙏🙏*
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