19 Feb स्मरणीयदिवस= मेवाड़ राजपुरोहितजी का बलिदान


 स्मरणीयदिवस=

मेवाड़ राजपुरोहितजी का बलिदान=


महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में अमर है।अकबर ने उनको पराजित करने और अपनी अधीनता मनवाने हेतु तीस वर्षों तक सतत प्रयत्न किया,पर सफल नहीं हुआ।अकबर की विशाल सेना का सामना महाराणा ने अपनी सीमित सेना से किया। जंगलों में भटके।भीलों की मदद ली।राजसी ठाट-बाट को त्याग जीवन भर कष्ट सहे,पर अधीनता स्वीकार नहीं की।महाराणा प्रताप का अनुज था शक्ति सिंह।वही रूप,वही तेज,वही दृढ़ स्वाभिमान,दोनों भाई एक समान।एक दिन दोनों भाई शिकार खेलने गए।अलग- अलग निकले थे।प्रताप ने एक जंगली सूअर का पीछा किया।प्रताप ने तीर चलाया।सूअर के पेट में जा समाया।तभी एक और तीर सूअर की पूंछ को छूता हुआ आया।सूअर धरती पर गिरा।तभी शक्तिसिंह घोड़ा सहित आये।प्रताप बोले-अरे शक्ति!तुम?हां भाई सा मैं।यह तीर मेरा है।क्षत्रिय का निशाना अचूक होता है।फिर तुम्हारा निशाना चूक कैसे गया?प्रताप ने कहा।जी भाई सा।मेरे क्षत्रिय होने में कोई संदेह है क्या?शक्ति सिंह की वाणी में तल्खी दिखाई पड़ी।तुम्हारा निशाना पूंछ के पास लगा।बड़े भाई की सहज भाव से कही गई बात शक्ति सिंह को अखर गई।क्रोध से नेत्र लाल हुए,स्वर कठोर हुआ,यह बात है तो आओ निर्णय कर लें कि निशाना किसका सही है?कहते-कहते शक्ति सिंह ने अपना भाला उठाया।राणा प्रताप ने भी भाला उठाते हुए कहा, बड़े भाई का सामना करेगा?क्षत्रिय को जो कोई भी ललकारेगा,जवाब दिया जाएगा।फिर वह बड़ा भाई ही क्यों न हो?शक्ति सिंह ने भाला हवा में लहराया।प्रताप भी चुप कैसे रहते?क्षत्रिय, फिर अग्रज और राजा भी। अपमान सहना राजपूत के लिए अधर्म है।दोनों के भाले हवा में लहराए।दोनों वीर पल भर में वार करके एक-दूसरे के प्राण ले ही लेते,तभी एक गंभीर स्वर ने दोनों को रोक दिया,ठहरो।यह अनर्थ मत करो।क्षण भर को रुककर दोनों ने भद्र पुरुष की ओर देखा।वे और कोई नहीं,मेवाड़ के राजपुरोहित थे।वे फिर गरजे,शर्म नहीं आती तुम्हें?देश पर,मेवाड़ पर विधर्मी, विदेशी हमले हो रहे हैं।और मेवाड़ के वीर राजकुमार मूर्खतावश आपस में युद्ध कर रहे हैं।वृद्ध राजपुरोहित की बात दोनों ने सुनी,परंतु समझी नहीं।भाले छोड़ तलवारें निकाल लीं।राजपुरोहित पुन:चिल्लाए, वीरता के साथ बुद्धि भी उपयोग करनी चाहिए।यह आपस में लड़ने का समय नहीं है। मिलकर देश के शत्रुओं से लड़ो।पर दोनों भाई निर्णय हेतु भिड़ चुके थे।पुरोहित जी को देश की चिंता थी।दोनों क्षत्रियों को निशाने को प्रमाणित करने की चिंता थी।पुरोहित की बात सुनी अनसुनी कर रहे थे। राजपुरोहित अपने जीवन की चिंता किए बिना दोनों के मध्य जा खड़े हुए।एक-दूसरे पर किए गए वार पुरोहितजी को लगे। वे वहीं गिर पड़े।तलवारें रुक गईं।गरदनें झुक गईं। राजपुरोहित के तलवार से दोनों कंधे कट चुके थे।सिर सलामत था।दोनों ने तलवारें म्यान में रखी। पुरोहित जी से क्षमा- याचना करने लगे।राणा बोले,काका आप बीच में क्यों आए?आप व्यर्थ ही घायल हो गए।बेटा प्रताप!बेटा शक्ति सिंह!इससे अधिक मैं कर ही क्या सकता था?मैंने बार-बार चेताया,पर तुम दोनों की समझ में न आया।देश पर शत्रुओं के हमले हो रहे हैं।जिन्हें देशरक्षा के लिए लड़ना है,वे आपस में लड़ रहे हैं।काका!लेकिन आप अपने जीवन की रक्षा तो करते?शक्तिसिंह बोले। राजपुरोहित जी ने कराहते कहा,यदि मैं बीच में न आता तो तुम दोनों में से एक या दोनों के भी प्राण जा सकते थे।उनका स्वर मंद पड़ चुका।प्रताप ने कहा,काका-आपके प्राण बचने जरूरी हैं।शक्ति उठाओ काका को,यहां से ले चलें।चिकित्सा तुरंत करानी है। *राजपुरोहित ने हुए कहा,अब मेरे प्राण नहीं बचेंगे,दोनों कंधे कट चुके हैं।देशरक्षा हेतु ही अपनी तलवारें उठाओ।राजपुरोहित ने लंबी आह भरी,हे राम राजपुत्रों को सुबुद्धि देना।मेरे प्राण तो जाने वाले ही हैं।इनमें देशप्रेम की ज्योति कभी न बुझे।कहते-कहते उनके प्राण पखेरू उड़ गए।सादर वंदन.सादर नमन.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*

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