4 Feb प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री सत्येंद्र नाथ बोस का निधन
प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री सत्येंद्र नाथ बोस का निधन 4 फ़रवरी 1974 को कोलकाता में हुआ था। बोस ने मेरी क्यूरी, पौली, हाइज़ेन्बर्ग और प्लैंक जैसे वैज्ञानिकों के साथ कार्य किया। वो बर्लिन में आइन्स्टीन से भी मिले। भारत सरकार ने उनके उत्कृष्ट उपलब्धि हो ध्यान में रखते हुए उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया
सत्येंद्र नाथ बोस प्रसिद्ध गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री थे।भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं-बोसॉन और फर्मियान. इनमें से बोसॉन सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही है *सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म01जनवरी1894को कोलकाता में हुआ*।मित्रों के बीच 'सत्येन' और विज्ञान जगत में 'एस. एन. बोस' के नाम से जाने गये। पिता श्री "सुरेन्द्र नाथ बोस"रेल विभाग में काम करते थे।उन्होंने वर्ष 1915में एम.एस.सी. (गणित)परीक्षा प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की.1921में नव स्थापित ढाका विश्व विद्यालय में भौतिकी विभाग में रीडर के तौर पर शामिल हुए।यह समय भौतिक विज्ञानं में नई-नई खोजों का था। जर्मनी के भौतिकशास्त्री मैक्स प्लैंक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने“सापेक्षता का सिद्धांत”प्रतिपादित किया था।सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों पर अध्ययन और अनुसन्धान कर रहे थे।सत्येन्द्रनाथ ने“प्लैंक’स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम”नाम का एक शोधपत्र लिखा और उसको ब्रिटिश जर्नल में छपने के लिए भेजा जिसे वहां के संपादक मंडल ने अस्वीकृत कर दिया। इसके बाद उन्होंने उसे सीधे महान वैज्ञानिक आइंस्टीन को भेज दिया।आइन्स्टीन ने इसके अहमियत को समझा और कहा कि यह पत्र गणित के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है और उसका जर्मन भाषा में अनुवाद कर "जीट फर फिजिक"नामक जर्नल में प्रकाशित कराया। इसके बाद दोनों महान वैज्ञानिकों ने अनेक सिद्धांतों पर साथ-साथ कार्य किया।इसी बीच बोस ने एक और शोधपत्र"फिजिक्स जर्नल"में प्रकाशनार्थ भेजा।इस पत्र में फोटोन जैसे कणों में "मैक्सवेल-बोल्ट्ज्मैन नियम" लागू करने पर त्रुटि होने की ओर संकेत किया गया था।जर्नल ने इस पेपर को प्रकाशित नहीं किया और बोस ने एक बार फिर इस शोधपत्र को आइन्स्टीन के पास भेजा।आइन्स्टीन ने इसपर कुछ और शोध करते हुए संयुक्त रूप से"जीट फर फिजिक"में शोधपत्रप्रकाशित कराया.इस शोधपत्र ने क्वांटम भौतिकी में"बोस- आइन्स्टीन सांख्यकी"नामक एक नई शाखा की बुनियाद डाली।इसके द्वारा सभी प्रकार के बोसोन कणों के गुणधर्मों का पता लगाया जा सकता है।इसके बाद बोस-1924से लेकर1926 तक यूरोप के दौरे पर रहे जहाँ उन्होंने मेरी क्यूरी, पौली,हाइज़ेन्बर्ग और प्लैंक वैज्ञानिकों के साथ कार्य किया।वो बर्लिन मेंआइन्स्टीन से भी मिले।यूरोप में लगभग दो वर्ष रहने के बाद1926में बोस ढाका वापस लौट आए और ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन किया परन्तु पी.एच. डी.नहीं होने के कारण वो इस पद के लिए आर्हता पूरी नहीं कर पा रहे थे।फिर मित्रों के सुझाव पर उन्होंने आइंस्टाइन से प्रशंसा पत्र लिया जिसके आधार पर उन्हें ये नौकरी मिली.बोस- 1926से1945 तक ढाका में रहे.1945में कोलकाता वापस आकर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर पद पर नियुक्त हो गए और फिर वर्ष1956में कलकत्ता विश्व विद्यालय से सेवा निवृत्त हो शांतिनिकेतन चले गए।शान्तिनिकेतन में वो ज्यादा नहीं रुके.1958में उन्हें कलकत्ता वापस लौटना पड़ा।इसी वर्ष उन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो चुना गया और राष्ट्रीय प्रोफेसर नियुक्त किया गया।भारत सरकार ने उनके उत्कृष्ट उपलब्धि हो ध्यान में रखते हुए उन्हें"पद्म भूषण"से सम्मानित किया।
*04फ़रवरी1974को कोलकाता में उनका निधन हो गया।उस समय वो 80 साल के थे.सादर वंदन.सादर नमन.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*
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