30 March पुण्य-तिथि=सागरपार भारतीय क्रान्ति के दूत श्यामजी कृष्ण वर्मा
पुण्य-तिथि=सागरपार भारतीय क्रान्ति के दूत श्यामजी कृष्ण वर्मा=*
चार अक्तू.1857को कच्छ (गुजरात)के मांडवी नगर में जन्मे श्यामजी पढ़ने में बहुत तेज थे।मुम्बई के सेठ मथुरादास ने इन्हें छात्रवृत्ति देकर विल्सन हाईस्कूल में भर्ती कराया।वे नियमित अध्ययन के साथ पं. विश्वनाथ शास्त्री की वेदशाला में संस्कृत भी पढ़ने लगे।मुम्बई में एक बार महर्षि दयानन्द सरस्वती आये।उनके विचारों से प्रभावित हो श्यामजी ने भारत में संस्कृत भाषा एवं वैदिक विचारों के प्रचार का संकल्प लिया।ब्रिटिश विद्वान प्रोफेसर विलियम्स उन दिनों संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोष बना रहे थे। श्यामजी ने उनकी बहुत मदद की।इससे प्रभावित हो प्रोफेसर विलियम्स ने उन्हें ब्रिटेन आने का न्योता दिया।वहाँ श्यामजी वर्मा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत अध्यापक बने। वेदों का प्रचार भी जारी रखा।कुछ समय बाद वे भारत आये।मुम्बई में वकालत की तथा रतलाम, उदयपुर व जूनागढ़ राज्यों में काम किया।वे भारत की गुलामी से बहुत दुखी थे। लोकमान्य तिलक ने उन्हें विदेशों में आजादी हेतु काम करने की राय दी। इंग्लैण्ड जाकर भारतीय छात्रों के लिए एक मकान खरीद उसका नाम इंडिया हाउस(भारत भवन)रखा। यही भवन क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बना। उन्होंने राणा प्रताप और शिवाजी के नाम पर छात्रवृत्तियाँ शुरू कीं.
1857के स्वातंत्र्य समर का अर्धशताब्दी उत्सव ‘भारत भवन’में धूमधाम से मनाया।उन्होंने‘इंडियन सोशियोलोजिस्ट’नामक समाचार पत्र भी निकाला। उसके पहले अंक में उन्होंने लिखा=मनुष्य की आजादी सबसे बड़ी बात है,बाकी सब बाद में।उनके विचारों से प्रभावित होकर वीर सावरकर,सरदार सिंह राणा,मादाम भीकाजी कामा उनके साथ सक्रिय हो गये।लाला लाजपत राय,विपिनचन्द्र पाल भी आने लगे।विजयादशमी पर्व पर‘भारत भवन’मे वीर सावरकर और गांधी जी दोनों ही उपस्थित हुए। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के अपराधी माइकेल ओ डायर का वध करने वाले ऊधमसिंह के प्रेरणास्रोत श्यामजी ही थे। अब वे शासन की निगाहों में आ गये,अतःवे पेरिस चले गये।वहाँ उन्होंने ‘तलवार’नामक अखबार निकाला।छात्रों के लिए ‘धींगरा छात्रवृत्ति’शुरू की।
भारतीय क्रान्तिकारियों के लिए शस्त्रों का प्रबन्ध भी वे ही करते थे।भारत में होने वाले बमकांडों के तार उनसे ही जुड़े थे।अतः पेरिस की पुलिस भी उनके पीछे पड़ गयी।उनके अनेक साथी पकड़े गये। उन पर भी ब्रिटेन में राजद्रोह का मुकदमा चला ।अतःवे जेनेवा चले गये। *30मार्च,1930को श्यामजी ने* और 22 अगस्त1933 )को उनकी धर्मपत्नी भानुमति ने मातृभूमि से बहुत दूर *जेनेवा में ही अन्तिम साँस ली* श्यामजी की इच्छा थी कि आजादी बाद ही उनकी अस्थियाँ भारत में लायी जायें।उनकी यह इच्छा 73वर्ष तक अपूर्ण रही।अगस्त,2003में गुजरात के मुख्यमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी उनके अस्थि कलश भारत लाये।सादर वंदन।नमन।👏।
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