26 March जन्म दिवस: मनीषी चिन्तक कुबेरनाथ राय
जन्म दिवस:
मनीषी चिन्तक कुबेरनाथ राय= जन्म दिवस:
मनीषी चिन्तक कुबेरनाथ राय====== ========(26.03.1933)=======*
हिन्दी साहित्य में कई ललित निबन्धकार हुए हैं।इनमें श्री कुबेरनाथ राय का मुख्य स्थान है।इनका साहित्यिक व्यक्तित्व एक ऐसा विशाल वट वृक्ष है,जिसकी दूर-दूर तक फैली जड़ें भारत के वैष्णव साहित्य,श्रीराम कथा और गांधी चिन्तन से जीवन रस ग्रहण करती हैंभारतीयता पर मजबूती से खड़े हो, उनका चिन्तन सम्पूर्ण विश्व को"वसुधैव कुटुम्बकम्"के प्रेमपूर्ण बन्धन में बाँधने को तत्पर दिखाई देता है।हिन्दी ललित निबन्ध को उन्होंने एक नया आयाम दिया, जिससे पाठक के मन को भी भव्यता प्राप्त होती थी *श्री कुबेरनाथ राय का जन्म -26मार्च1933को मतसा (गाजीपुर,उ.प्र.)में हुआ* छोटे बाबा पं.बटुकदेव अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान, उच्च कोटि के पत्रकार थे।उनका व्रत था कि गुलाम भारत में मैं सन्तान उत्पन्न नहीं करूँगा।किशोरवस्था में ही घर छोड़ अविवाहित रह देश सेवा की।उन्होंने देश, तरुण,भारत,प्रताप,लोक संग्रह,प्रणवीर जैसे राष्ट्रव्यापी पत्रों का सम्पादन किया।गांधीजी,डा.राजेन्द्र प्रसाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, सहजानन्द सरस्वती, बालकृष्ण शर्मा"नवीन"से उनके निकट सम्बन्ध थे।श्री कुबेरनाथ जी पर छोटे बाबा के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा।अंग्रेजी का श्रेष्ठ ज्ञान और राष्ट्रीयता के संस्कार छोटे बाबा से ही मिले।कक्षा दस में पढ़ते समय ही उनकी रचनाएँ"माधुरी"और"विशाल भारत"जैसे विख्यात पत्रों में छपने लगी।इनमें छपने हेतु प्रतिष्ठित साहित्यकार भी लालायित रहते थे।कुबेरनाथ के मन में साहित्य का बीज किशोर अवस्था में ही पल्लवित,पुष्पित हो चुका था ।शुरू की शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू वि.वि. फिर कलकत्ता वि.वि.से उच्च शिक्षा प्राप्त की.1958-86 तक वे असम के नलबाड़ी कालेज में अंग्रेजी प्राध्यापक रहे.1986में उनकी नियुक्ति अपने गृह जनपद गाजीपुर में स्वामीसहजानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर हुई।वे 1995में सेवानिवृत्त हुए।उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं-प्रिया नीलकण्ठी,रस आखेटक, मेघमादन,निषाद बाँसुरी, विषाद योग,पर्णमुकुट, महाकवि की तर्जनी,पत्र मणिपुतुल के नाम,मन वचन की नौका,किरात नदी में चन्द्रमधु,दृष्टि अभिसार,त्रेता का बृहत साम,कामधेनु मराल आदि।श्री कुबेरनाथ ने सदा अंग्रेजी का अध्यापन किया;पर साहित्य द्वारा अपने मन की अभिव्यक्ति हेतु संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को ही श्रेष्ठ माना।वे भारतीय ज्ञानपीठ के प्रतिष्ठित "मूर्तिदेवी पुरस्कार"सहित अनेक सम्मानों से अलंकृत हुए. *05जून1996को हिन्दी के इस रससिद्ध साधक का हृदयगति रुकने से देहान्त हो गया. सादर वंदन.सादर नमन👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏* ==== ========(26.03.1933)=======*
हिन्दी साहित्य में कई ललित निबन्धकार हुए हैं।इनमें श्री कुबेरनाथ राय का मुख्य स्थान है।इनका साहित्यिक व्यक्तित्व एक ऐसा विशाल वट वृक्ष है,जिसकी दूर-दूर तक फैली जड़ें भारत के वैष्णव साहित्य,श्रीराम कथा और गांधी चिन्तन से जीवन रस ग्रहण करती हैंभारतीयता पर मजबूती से खड़े हो, उनका चिन्तन सम्पूर्ण विश्व को"वसुधैव कुटुम्बकम्"के प्रेमपूर्ण बन्धन में बाँधने को तत्पर दिखाई देता है।हिन्दी ललित निबन्ध को उन्होंने एक नया आयाम दिया, जिससे पाठक के मन को भी भव्यता प्राप्त होती थी *श्री कुबेरनाथ राय का जन्म -26मार्च1933को मतसा (गाजीपुर,उ.प्र.)में हुआ* छोटे बाबा पं.बटुकदेव अंग्रेजी के प्रकांड विद्वान, उच्च कोटि के पत्रकार थे।उनका व्रत था कि गुलाम भारत में मैं सन्तान उत्पन्न नहीं करूँगा।किशोरवस्था में ही घर छोड़ अविवाहित रह देश सेवा की।उन्होंने देश, तरुण,भारत,प्रताप,लोक संग्रह,प्रणवीर जैसे राष्ट्रव्यापी पत्रों का सम्पादन किया।गांधीजी,डा.राजेन्द्र प्रसाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, सहजानन्द सरस्वती, बालकृष्ण शर्मा"नवीन"से उनके निकट सम्बन्ध थे।श्री कुबेरनाथ जी पर छोटे बाबा के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा।अंग्रेजी का श्रेष्ठ ज्ञान और राष्ट्रीयता के संस्कार छोटे बाबा से ही मिले।कक्षा दस में पढ़ते समय ही उनकी रचनाएँ"माधुरी"और"विशाल भारत"जैसे विख्यात पत्रों में छपने लगी।इनमें छपने हेतु प्रतिष्ठित साहित्यकार भी लालायित रहते थे।कुबेरनाथ के मन में साहित्य का बीज किशोर अवस्था में ही पल्लवित,पुष्पित हो चुका था ।शुरू की शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू वि.वि. फिर कलकत्ता वि.वि.से उच्च शिक्षा प्राप्त की.1958-86 तक वे असम के नलबाड़ी कालेज में अंग्रेजी प्राध्यापक रहे.1986में उनकी नियुक्ति अपने गृह जनपद गाजीपुर में स्वामीसहजानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर हुई।वे 1995में सेवानिवृत्त हुए।उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं-प्रिया नीलकण्ठी,रस आखेटक, मेघमादन,निषाद बाँसुरी, विषाद योग,पर्णमुकुट, महाकवि की तर्जनी,पत्र मणिपुतुल के नाम,मन वचन की नौका,किरात नदी में चन्द्रमधु,दृष्टि अभिसार,त्रेता का बृहत साम,कामधेनु मराल आदि।श्री कुबेरनाथ ने सदा अंग्रेजी का अध्यापन किया;पर साहित्य द्वारा अपने मन की अभिव्यक्ति हेतु संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को ही श्रेष्ठ माना।वे भारतीय ज्ञानपीठ के प्रतिष्ठित "मूर्तिदेवी पुरस्कार"सहित अनेक सम्मानों से अलंकृत हुए. *05जून1996को हिन्दी के इस रससिद्ध साधक का हृदयगति रुकने से देहान्त हो गया. सादर वंदन.सादर नमन👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*

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